क्या आप जानते हैं हमारे लिए नींद क्यों जरूरी है?

पीऊ ने कहा, छह घंटे में हम खेल सकते हैं, मूवी देख सकते हैं या सोशल मीडिया पर सैकड़ों अपडेट डाल सकते हैं तो फिर सोते क्यों हैं?

By Sorit Gupto

On: Tuesday 25 February 2020
 

दिसंबर की सर्द रात में पीऊ और पॉम आधी रात के बाद भी जाग रहे थे। रजाई की गर्माहट का मजा लेते हुए वे कई घंटों तक बातें करते रहे। अचानक पीऊ की मां कमरे में दाखिल हुई और उस पर चिल्लाईं, “पीऊ अब तक क्यों जाग रही हो? कल स्कूल जाने के लिए आंख कैसे खुलेगी?”

पीऊ ने कहा, “मां, मैं सोने की कोशिश कर रही हूं लेकिन मुझे नींद ही नहीं आ रही है! मैं क्या करूं?” मां ने कहा, “ठीक है, मैं सुबह तुम्हें जल्दी नहीं उठाऊंगी।” यह कहकर उन्होंने लाइटें बंद की और वहां से चली गईं।

पीऊ करवट बदलती रही जबकि पॉम उसके बगल में आराम से सो गया।

पीऊ धीरे से बोली, “सो गए क्या?”

पॉम ने कहा, “पीऊ सो जाओ! वर्ना कल स्कूल में नींद आएगी।

पीऊ ने कहा, “ठीक है, ज्यादा ज्ञान मत दो।” यह कहकर पीऊ मुंह फेरकर लेट गई। लेकिन कुछ ही देर बाद फिर से पॉम की ओर घूमकर बोली, “पॉम मुझे तुमसे कुछ पूछना है। क्या तुम सो गए?”

पॉम ने गुस्से में कहा, “मम्मी को बुलाऊं?”

पीऊ बोली, “ठीक है पॉम! नाराज होने की जरूरत नहीं है। मैं बस यह जानना चाहती थी कि हमारे लिए सोना क्यों जरूरी है। क्यों तुम्हें नहीं लगता कि सोना समय की बर्बादी है?”

पॉम ने रजाई हटाई और कहा, “शुक्रिया पीऊ, मैं उठा हुआ हूं। यह वाकई अच्छा सवाल है। देखो पीऊ, केवल इंसान ही नहीं बल्कि हर जीव के लिए नींद जरूरी है। फर्क बस हर जीव के लिए जरूरी नींद के घंटों का है।

जैसे, इंसान के लिए कम से कम छह घंटे सोना जरूरी है।”

इस पर पीऊ ने कहा, “समय की इतनी बर्बादी! जरा सोचो, छह घंटे में हम खेल सकते हैं, मूवी देख सकते हैं या सोशल मीडिया पर सैकड़ों अपडेट डाल सकते हैं!”

पॉम बोला, “रुको, पहले मुझे अपनी बात पूरी करने दो। मेरे खयाल से सोना न केवल समय की बर्बादी है बल्कि इसमें जोखिम भी है क्योंकि सोए हुए जानवर दुश्मन से अपना बचाव नहीं कर सकते। ऐसे में नींद के दौरान उन पर हमले की आशंका बहुत बढ़ जाती है। हालांकि दूसरे नजरिए से देखें तो नींद हमारे जिंदा रहने के लिए उतनी ही जरूरी है जितना कि खाना और पानी।”

पीऊ ने पूछा, “लेकिन अभी तुमने कहा कि सोने से हम पर हमले का खतरा बढ़ जाता है! तो फिर यह हमारे जिंदा रहने के लिए क्यों जरूरी है?”

पॉम बोला, “देखो, सीधी-सी बात है। जब हम जगे हुए होते हैं तो हमारे शरीर में विषैले तत्व पैदा होते हैं। सोने के दौरान ये विषैले तत्व हमारे शरीर से निकल जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो नींद हमारे शरीर की सफाई में मदद करती है।”

पीऊ बोली, “ओह, इसका मतलब है, नींद समय की बर्बादी नहीं है!”

पॉम ने कहा, “बिल्कुल नहीं। और नींद का असर केवल हमारे दिमाग पर नहीं होता बल्कि हमारी पाचनक्रिया, सांस लेने की प्रक्रिया, बीमारियों से लड़ने की क्षमता और हमारी मनोदशा में बदलाव भी इस पर निर्भर हैं।”

पीऊ ने पूछा, “अब जबकि हमें पता है कि नींद बहुत जरूरी है तो क्या तुम यह बता सकते हो कि हमें नींद क्यों आती है?”

पॉम ने जवाब दिया, “हां बिल्कुल। इसका जवाब है हमारा दिमाग। दिमाग में मूंगफली के दाने के बराबर एक चीज होती है जिसे हाइपोथेलेमस कहते हैं। यही नींद को नियंत्रित करता है। हालांकि नींद आने के कई अन्य कारण भी हैं। हमारा शरीर रोशनी और अंधेरे पर किस प्रकार से प्रतिक्रिया करता है, यह भी महत्वपूर्ण कारक है।” पॉम ने पूछा, “क्या तुम्हें पता है कि सर्केडीयन रिदम क्या है?”

पीऊ का चेहरा ही बता रहा था कि उसे इसका जवाब नहीं पता। तब पॉम ने समझाना शुरू किया, “पृथ्वी को अपनी धुरी के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 24 घंटे लगते हैं।”

पीऊ बोली, “हां मुझे मालूम है। इसी वजह से जो हिस्सा सूरज से सामने पड़ता है वहां दिन होता है और बाकी जगह रात होती है। लेकिन इससे हमारी नींद का क्या लेना-देना?” पॉम बोला, “हम दिन में नहीं सोते, है ना?

हमेशा रात में ही सोते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो रोशनी और अंधेरे का हमारी नींद पर सीधा असर पड़ता है।” पीऊ बोली, “मुझे समझ नहीं आया कि हम दिन में क्यों नहीं सो सकते?”

पॉम बोला, “जब सूरज डूबता है तो अंधेरा हमारे दिमाग में कई प्रकार की रासायनिक प्रतिक्रियाएं करता है। यह हमारे दिमाग में मेलाटोनिन नाम का हार्मोन निकालता जो दिमाग को सोने के लिए प्रेरित करता है। सुबह होने पर सूरज की रोशनी मेलाटोनिन को अपनी ओर खींच लेती है और दिमाग को जागने के लिए मजबूर करती है।” पीऊ बोली, “काफी रोचक बात है!”

पॉम ने बताया, “इस चक्र को सर्केडीयन साइकिल के नाम से भी जाना जाता है और यह हमारी जैविक घड़ी के समान है। यह घड़ी हमें बताती है कि कब सोना है और कब जागना है।”

पीऊ बोली, “तुम्हारा मतलब है कि हम सबके अंदर एक घड़ी है? मेरी जैविक घड़ी में जरूर कुछ गड़बड़ है। मैंने आज तक इसकी टिक-टॉक वाली आवाज नहीं सुनी। जरूर किसी ने इसकी बैटरी निकाल दी है!” यह कहकर वह हंसते-हंसते लोट-पोट हो गई।

पॉम बोला, “अच्छा मजाक था। अब मुझे समझाने तो दो कि यह घड़ी काम कैसे करती है। हालांकि हर जीव में जैविक घड़ी होती है लेकिन सारी घड़ियां एक तरह काम नहीं करती हैं। यह हर प्रजाति का अपना टाइम जोन होने जैसा है।”

पीऊ ने हैरानी से पूछा, “अलग टाइम जोन! यह कैसे संभव है?”

पॉम ने समझाया, “देखो मैंने उदाहरण दिया है। बताता हूं कि मेरा क्या मतलब है। हम जानते हैं कि जब पेरिस में लोग सो रहे होते हैं तो भारत में लोग दिन की रोशनी में काम में लगे होते हैं। इसी तरह, जब एक प्रजाति सो रही होती है तो दूसरी शिकार पर जा सकती है।”

पीऊ बोली, “तुम्हारा मतलब है कि हर जीव का सोने और काम करने के घंटे एक निश्चित तरीके पर आधारित होते हैं। और यह तरीका जीवों में लगी जैविक घड़ी पर आधारित होता है।”

पॉम ने कहा, “बिल्कुल! जैविक घड़ी से न केवल सोने का समय तय होता है बल्कि सोने का तरीका और अवधि भी तय होती है।”

पीऊ बोली, “कभी-कभी तुम बहुत किताबी और उबाऊ बातें करते हो! क्या तुम खुलकर समझा सकते हो?” पॉम ने कहा, “ठीक है। क्या तुम्हें पता है कि कुछ जानवरों का आधा दिमाग नींद में भी पूरी तरह सक्रिय रहता है? और ऐसा जानवरी भी है जो दिन में 20 घंटे सोता है?”

पीऊ हैरान होकर बोली, “क्या यह सच है?”

पॉम ने बताया, “हां यह सच है। चूहे और बड़े भूरे चमगादड़ दिन में 20 घंटे सोते हैं। जबकि पानी में रहने वाले कुछ जीव जैसे डॉल्फिन यूनीहेमिस्फेरिक स्लो-वेव स्लीप लेते हैं।”

पीऊ बोली, “यह क्या होता है?”

“डॉल्फिन और व्हेल की कुछ प्रजातियों का आधा दिमाग सोता है और बाकी का आधा दिमाग आने वाली बाधाओं और खतरों को देखने के लिए सजग रहता है। पक्षियों का भी सोने का अनोखा तरीका होता है। वे सीधे खड़े रहते हैं और सोते हुए उनकी आंखें खुली रहती हैं। डॉल्फिन की तरह ही, यह दुश्मनों और खतरों से बचने के लिए सजग रहने का उनका तरीका है।”

पीऊ बोली, “इसका मतलब मैं गलत थी। हमारे जिंदा रहने के लिए नींद वाकई में बहुत अहम है।”

पॉम ने कहा, “हां। क्रमिक विकास की लंबी अवधि के दौरान अलग-अलग प्रजातियों ने सोने की अपनी विशेष प्रकृति और व्यवहार विकसित किया है।”

पॉम पीऊ की ओर मुड़ा जो अब तक सो चुकी थी और बोला “अच्छे से सोना पीऊ!” और फिर वह खुद भी सो गया।

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