दूसरा सबसे बड़ा हत्यारा है बैक्टीरियल इन्फेक्शन, हर साल ले रहा 1.37 करोड़ जानें

वैश्विक स्तर पर होने वाली 13.6 फीसदी मौतों के लिए 33 बैक्टीरियल पैथोजन जिम्मेवार हैं, जोकि एंटीबायोटिक्स के प्रति संवेदनशील होने के साथ-साथ उसके प्रतिरोधी भी हैं

By Lalit Maurya

On: Thursday 24 November 2022
 
लो टेम्परेचर इलेक्ट्रॉन माइक्रोग्राफ से 10,000 गुणा बड़ा करके लिया बैक्टीरिया इशचेरिचिया कोलाई (ई कोलाई) के एक समूह का छायाचित्र; फोटो: विकिपीडिया

लैंसेट में प्रकाशित एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि ह्रदय रोग के बाद बैक्टीरियल इन्फेक्शन दुनिया का सबसे बड़ा हत्यारा है। ह्रदय रोगों में दिल का दौरा भी शामिल है। पता चला है कि 2019 में इन्फेक्शन की वजह से दुनिया भर में 1.37 करोड़ लोगों की मौत हुई थी।

मतलब कि हर आठ में से एक मौत के लिए यह इन्फेक्शन ही जिम्मेवार था। इनमें से 77 लाख मौतों के लिए केवल 33 जीवाणु रोगजनक जिम्मेवार थे, जोकि रोगाणुरोधी प्रतिरोधी और अतिसंवेदनशील दोनों ही हैं। देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर होने वाली कुल मौतों में से 13.6 फीसदी मौतों के लिए यह 33 बैक्टीरियल पैथोजन ही जिम्मेवार हैं। वहीं यदि इनसे होने वाली मृत्युदर की बात करें तो वो प्रति लाख की आबादी पर 99.6 दर्ज की गई है। 

यही वजह है कि जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित इस नई रिसर्च में 204 देशों में इन 33 जीवाणु रोगजनकों और 11 प्रकार के संक्रमणों से होने वाली मौतों का अध्ययन किया गया है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने 34.3 करोड़ मेडिकल रिकॉर्ड का विश्लेषण किया है। यह रिसर्च ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज फ्रेमवर्क के तहत की गई है।

रिपोर्ट से पता चला है कि सेप्सिस, जिसे रक्त विषाक्तता या सिस्टेमिक इन्फ़्लमेटरी रिस्पांस सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है उसके कारण होने वाली 56.2 फीसदी मौतों के पीछे की वजह भी यह 33 जीवाणु रोगजनक थे।

इतना ही नहीं रिसर्च से पता चला है कि इन 33 बैक्टीरियल पैथोजन से होने वाली करीब 55 फीसदी मौतों के लिए केवल पांच बैक्टीरिया स्टैफिलोकोकस ऑरियस, इशचेरिचिया कोलाई (ई-कोलाई), स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया, क्लेबसिएला निमोनिया और स्यूडोमोनास एरुगिनोसा जिम्मेवार थे। इनमें से अकेले बैक्टीरिया स्टैफिलोकोकस ऑरियस ही 2019 में होने वाली 10 लाख से ज्यादा मौतों की वजह था। 

गौरतलब है कि स्टैफिलोकोकस ऑरियस, एक ऐसा जीवाणु है जो आमतौर पर मानव त्वचा और नाक में पाया जाता है, लेकिन यह कई बीमारियों के लिए जिम्मेवार है। देखा जाए तो एक बार यदि यह बैक्टीरिया रक्त प्रवाह या फिर भीतरी ऊतकों में प्रवेश कर जाए तो यह निमोनिया, हृदय वॉल्व और हड्डियों के गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है।

वहीं ई-कोलाई आमतौर पर खाद्य विषाक्तता का कारण बनता है। यह बैक्टीरिया आमतौर पर इंसानों और पशुओं के पेट में पाया जाता है। इस बैक्टीरिया के ज्यादातर रूप हानिरहित हैं, लेकिन इनमें से कुछ ऐसे हैं जो पेट में मरोड़ और दस्त जैसे लक्षण पैदा करते हैं, जिससे कई बार गुर्दे काम करना बंद कर सकते हैं और इससे संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।

उप-सहारा अफ्रीका में सबसे ज्यादा है इन बैक्टीरियल पैथोजन से होने वाली मृत्युदर

देखा जाए तो इस अध्ययन में एक और बात जो सामने आई है वो है अमीर और गरीब देशों के बीच का अंतर। पता चला है कि जहां उप-सहारा अफ्रीका में इन बैक्टीरियल पैथोजन से होने वाली मृत्युदर सबसे ज्यादा थी जोकि प्रति लाख आबादी पर 230 मौतों के रूप में दर्ज की गई थी। वहीं दूसरी तरफ यह उच्च आय वाले देशों में सबसे कम दर्ज की गई। जहां इनसे होने वाली मृत्युदर प्रति लाख की आबादी पर 52 दर्ज की गई थी।

रिसर्च से पता चला है कि एस ऑरियस, 135 देशों में बैक्टीरिया से होने वाली सबसे ज्यादा मौतों की वजह था। साथ ही यह दुनिया भर में 15 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में सबसे ज्यादा मौतों से जुड़ा था। वहीं यदि पांच वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों की बात करें तो एस निमोनिया सबसे ज्यादा मौतों से जुड़ा रोगजनक था।

अध्ययन से पता चला है की 2019 में तीन बैक्टीरियल इन्फेक्शन सिंड्रोम के चलते 60 लाख से ज्यादा जानें गई थी। इनमें से सांस से जुड़े संक्रमण और रक्तप्रवाह में हुए संक्रमण दोनों में से हर एक ने 20 लाख से ज्यादा लोगों की जान ली थी। वहीं पेरिटोनियल और पेट का संक्रमण 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत की वजह था।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने इनसे निपटने के लिए नए टीकों के साथ विकासशील देशों में इनके प्रसार को रोकने के लिए मौजूदा फण्ड में बढ़ोतरी करने का आह्वान किया है। साथ ही लोगों को एंटीबायोटिक के बढ़ते अनुचित उपयोग को लेकर भी चेताया है।

गौरतलब है कि एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स आज एक बड़ी समस्या बन चुका है, जिसे अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह सीधे तौर पर हर साल 12.7 लाख लोगों की जान ले रहा है। अनुमान है कि 2019 में मरने वाले 49.5 लाख लोग कम से कम एक दवा प्रतिरोधी संक्रमण से पीड़ित थे। इसी को ध्यान में रखते हुए लोगों को इस बारे में जागरूक बनाने के लिए हर साल 18 से 24 नवंबर को विश्व रोगाणुरोधी जागरूकता सप्ताह के रूप में मनाया जाता है।

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