महामारी के तीन वर्षों की सीख, जीवन बचा सकता है टीकाकरण: आईसीएमआर

आईसीएमआर द्वारा किए अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि कोविड​​-19 के चलते अस्पताल में भर्ती लोगों में छुट्टी के बाद मृत्यु दर 6.5 फीसदी रही

By Seema Prasad, Lalit Maurya

On: Tuesday 22 August 2023
 
बच्चे को अस्पताल में कोविड-19 का टीका लगवाते माता-पिता; फोटो: आईस्टॉक

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की क्लिनिकल स्टडीज एंड ट्रायल यूनिट के नेतृत्व में किए नए अध्ययन से पता चला है कि संक्रमण से पहले कोविड-19 टीके की कम से कम एक खुराक लेने से अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद होने वाली मृत्यु में करीब 60 फीसदी सुरक्षा मिलती है। हालांकि शोधकर्ताओं के मुताबिक 168 से 195 दिनों के बाद टीके की प्रभावशीलता घटकर 86 फीसदी रह गई थी।

सामान्य तौर पर, अध्ययन उन रोगियों के लिए सावधानीपूर्वक निगरानी के महत्व को रेखांकित करता है जिन्हें कोविड​​-19 के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था, क्योंकि अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद मरीजों में साढ़े छह फीसदी मृत्यु दर दर्ज की गई।

शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि कम या ज्यादा उम्र के साथ-साथ, पुरुष होना, मध्यम से गंभीर बीमारी और साथ ही अन्य बीमारियों का होना जैसी स्थितियां के चलते अस्पताल छोड़ने के एक साल के भीतर मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि, "हमने देखा कि पुरुषों में जिनकी उम्र 40 से अधिक थी और जिनमें कोविड-19 के साथ-साथ अन्य बीमारियां और स्वास्थ्य समस्याएं भी थी, उनमें अस्पताल से छुट्टी के एक वर्ष के भीतर मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है।" 

शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि, "मध्यम से गंभीर बीमारी और अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद मृत्यु दर, कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य को लंबे समय तक होने वाले नुकसान का भी संकेत देती है। वहीं दूसरी ओर कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया है कि निमोनिया की गंभीरता का डिस्चार्ज होने के बाद मृत्यु दर पर कोई असर नहीं पड़ता है।

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने

वहीं कई अध्ययनों से यह भी पता चला है कि  गहन देखभाल इकाई में रहना या मैकेनिकल वेंटिलेशन की आवश्यकता, अस्पताल से छुट्टी मिलने के उच्च मृत्यु दर से जुड़ा है। इसके अलावा, वर्तमान विश्लेषण से यह भी पता चला है कि 18 वर्ष से कम उम्र के प्रतिभागियों में अस्पताल छोड़ने के बाद मृत्यु की संभावना 1.7 गुना अधिक थी।

अध्ययन के मुताबिक, "हमारी पिछली रिपोर्टों से पता चला है कि भर्ती के समय जिन बच्चों को कोविड-19 के साथ अन्य बीमारियां जैसे कैंसर, किडनी सम्बन्धी बीमारियां या रक्त सम्बन्धी विकार होते हैं वो कहीं ज्यादा गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।“

रिसर्च के अनुसार 17.1 फीसदी प्रतिभागियों में पोस्ट-कोविड स्थिति (पीसीसी) पाई गई और उनमें अस्पताल से छुट्टी के बाद मृत्यु की आशंका 2.7 गुना अधिक थी। पोस्ट-कोविड स्थिति (पीसीसी), जैसा कि रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) द्वारा परिभाषित किया गया है, में ऐसे लक्षण शामिल होते हैं जो प्रारंभिक संक्रमण के चार सप्ताह या उससे अधिक समय तक बने रहते हैं या विकसित होते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसके तहत न्यूरोलॉजिकल से लेकर, कार्डियोवैस्कुलर और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल तक लक्षणों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल किया है।

रिसर्च में सामने आया है कि पहले फॉलो-अप के बाद (चार से आठ सप्ताह के बीच) मरने की संभावना सह-रुग्णता वाले लोगों और पीसीसी की रिपोर्ट करने वालों के लिए अधिक थी। वहीं "पहले फॉलो-अप के बाद, उन लोगों में मृत्यु की आशंका कुछ हद तक कम थी, जिनमें अस्पताल में भर्ती होने के दौरान मध्यम से गंभीर बीमारी थी और उन्हें सार्स-कॉव-2 का टीका मिला था। हालांकि शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया कि यह लिंक सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं था।

अध्ययन के दौरान कुल 14,419 प्रतिभागियों को अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद चार सप्ताह से एक वर्ष की अवधि के भीतर कम से कम एक बार फॉलोअप किया गया। इस दौरान 942 मौतों में से करीब 18.6 फीसदी यानी 175 मौतों में मृतक की आयु 18 से 45 वर्ष के बीच थी।

भारत सहित दुनिया के अन्य देशों में कोविड-19 की मौजूदा स्थिति के सम्बन्ध में जानकारी आप डाउन टू अर्थ के कोविड-19 ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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