क्या कृत्रिम मिठास 'एस्पार्टेम' से हो सकता है कैंसर? जानिए इस बारे में क्या है डब्ल्यूएचओ की राय

ज्वाइंट एक्सपर्ट कमेटी ऑन फूड एडिटिव्स के मुताबिक शरीर के प्रति किलोग्राम वजन के हिसाब से एस्पार्टेम का हर दिन 40 मिलीग्राम सेवन सुरक्षित है

By Lalit Maurya

On: Monday 17 July 2023
 
फोटो: आईस्टॉक

कृत्रिम मिठास के लिए इस्तेमाल हो रहे एस्पार्टेम से कैंसर होता है या नहीं इसको लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) दुविधा में है। यही वजह है कि उसने इसे 'संभावित रूप से कैंसरकारी' बताया है।

इस बारे में शुक्रवार, 14 जुलाई 2023 को इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी), विश्व स्वास्थ्य संगठन और ज्वाइंट एक्सपर्ट कमेटी ऑन फूड एडिटिव्स (जेईसीएफए) ने संयुक्त बयान जारी करते हुए इसे उन उत्पादों की लिस्ट “आईएआरसी ग्रुप 2बी” में वर्गीकृत किया है, जिनसे कैंसर हो सकता है।

हालांकि, डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा है कि इस बात के सीमित सबूत मिले हैं कि एस्पार्टेम से इंसानों को कैंसर हो सकता है। यानी इंसानों में इस आर्टिफिशियल स्वीटनर से कैंसर होता है या नहीं, यह सीधे तौर पर नहीं कहा जा सकता। इसी तरह पशुओं पर किए अध्ययन में भी इस बात के सीमित साक्ष्य मिले हैं कि यह कृत्रिम मिठास कैंसर की वजह बन सकती है।

रिपोर्ट के अनुसार एक निश्चित सीमा तक इसका उपयोग सुरक्षित है। ज्वाइंट एक्सपर्ट कमेटी ऑन फूड एडिटिव्स (जेईसीएफए) के मुताबिक हर दिन शरीर के वजन के हिसाब से इसका 40 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम सेवन सुरक्षित है।

इस बारे में जेईसीएफए का निष्कर्ष है कि मूल्यांकन किए गए आंकड़ों में एस्पार्टेम की तय सीमा जोकि शरीर के वजन के लिहाज से  0 से 40 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम निश्चित की गई है उसे बदलने का कोई पर्याप्त कारण नहीं मिला है।

इसका उदाहरण देते हुए समझाया है कि एक डाइट सॉफ्ट ड्रिंक कैन में यदि 200 से 300 मिलीग्राम एस्पार्टेम होता है तो किसी 70 किलोग्राम वजन वाले वयस्क को इसकी तय सीमा से अधिक सेवन के लिए नौ से 14 कैन का सेवन करना होगा। बशर्ते उस इंसान ने किसी अन्य खाद्य उत्पाद में एस्पार्टेम का सेवन न किया हो।  

खांसी की दवाओं के साथ-साथ विटामिन की गोलियों में भी होता है इसका उपयोग

डब्ल्यूएचओ के अनुसार एस्पार्टेम, एक केमिकल युक्त आर्टिफिशियल स्वीटनर है। इसका उपयोग 80 के दशक से विभिन्न खाद्य उत्पादों और पेय पदार्थों में व्यापक तौर पर किया जाता रहा है। इन उत्पादों में पेय पदार्थ जैसे डाइट सोडा, च्यूइंग गम, जिलेटिन, टूथपेस्ट, आइसक्रीम, डेयरी उत्पाद जैसे दही, और खाने पीने के अन्य सामान के साथ-साथ कफ सिरप और विटामिन आदि की दवाएं शामिल हैं।

कैंसर और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से एस्पार्टेम कितना हानिकारक है ज्वाइंट एक्सपर्ट कमेटी ऑन फूड एडिटिव्स (जेईसीएफए) ने तीसरी बार और आईएआरसी ने पहली बार, इससे जुड़े अध्ययनों का मूल्यांकन किया है।

एस्पार्टेम की खोज 1965 में अमेरिकी वैज्ञानिक जेम्स एम श्लैटर ने की थी। यह स्वीटनर चीनी की तुलना में 180 से 200 गुणा ज्यादा मीठा होता है। चीनी के विकल्प के तौर पर उपयोग किए जाने वाला यह आर्टिफिशियल स्वीटनर 'एस्पार्टेम' सेहत के लिए अच्छा है या बुरा, यह लम्बे समय से चर्चा का विषय रहा है।

हालांकि एस्पार्टेम युक्त उत्पादों को विज्ञापनों में आम तौर पर 'डाइट', 'शुगर-फ्री' के साथ 'कम या बिना कैलोरी (जीरो शुगर)' के रूप में दर्शाया जाता है। लेकिन वैज्ञानिक शोध दर्शाते हैं कि यह आर्टिफीशियल स्वीटनर कैंसर, हृदय रोग, अल्जाइमर, स्ट्रोक, बढ़ते वजन सहित कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े हैं।

एस्पार्टेम और कैंसर के बीच के संबंधों को लेकर किए एक अध्ययन के अनुसार एस्पार्टेम दुनिया भर में चीनी के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल होना वाला एक प्रमुख आर्टिफिशियल स्वीटनर है, जिसे 5,000 से ज्यादा खाद्य उत्पादों में उपयोग किया जाता है। इस अध्ययन ने भी पुष्टि की थी कि इसकी वजह से कैंसर हो सकता है।

इसको लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के पोषण और खाद्य सुरक्षा विभाग के निदेशक डॉक्टर फ्रांसेस्को ब्रैंका ने अपने बयान में कहा है कि, "कैंसर दुनिया भर में होने वाली मौतों का प्रमुख कारक है। हर छठे इंसान की मौत के लिए कैंसर जिम्मेवार है। ऐसे में विज्ञान इस बात का लगातार प्रयास कर रहा है जिससे इसके मामलों और लोगों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।"

एस्पार्टेम के बारे में उनका कहना है कि इस स्वीटनर के संभावित नुकसान के बारे में हमने आगाह किया है, जिन्हें पुख्ता तौर पर साबित करने के लिए और अधिक शोध करने की आवश्यकता है।

गौरतलब है कि इससे पहले भी आर्टिफिशियल स्वीटनर को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो दिशानिर्देश जारी किए थे उनमें इसे सेहत के लिए खतरनाक माना था। ऐसे में डब्ल्यूएचओ ने आगाह किया था कि मिठास के इन कृत्रिम और प्राकृतिक विकल्पों के सेवन से बचना चाहिए।

देखा जाए तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एस्पार्टेम को कैंसर के मामले में पूरी तरह क्लीन चिट नहीं दी है। मतलब की अभी भी उसे संदेह के घेरे में रखा है। यही वजह है कि आईएआरसी और डब्ल्यूएचओ ने इससे जुड़े नए साक्ष्यों पर निगरानी रखने की बात कही है। साथ ही उन्होंने अन्य वैज्ञानिकों से भी एस्पार्टेम के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बीच संबंधों की जांच के लिए अपील की है।

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