रोगाणुरोधी प्रतिरोध से हर साल लग सकती है 281.1 लाख करोड़ से ज्यादा की चपत

रिपोर्ट में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के विकसित होने और उसके पर्यावरण में फैलने के लिए मुख्य रूप से ड्रग निर्माण, कृषि व स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र से होने वाले प्रदूषण को जिम्मेवार माना है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 08 February 2023
 
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस पर ग्लोबल लीडर्स ग्रुप की बारबाडोस में हो रही मीटिंग में यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन के साथ डाउन टू अर्थ की प्रधान संपादक सुनीता नारायण; फोटो: इंगर एंडरसन/ ट्विटर

हर बीतते दिन के साथ रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेन्स कहीं ज्यादा बड़ा खतरा बनता जा रहा है। अनुमान है कि यदि इसपर अभी ध्यान न दिया गया तो इससे अगले कुछ वर्षों में हर साल वैश्विक अर्थव्यवस्था को 281.1 लाख करोड़ रूपए (3.4 लाख करोड़ डॉलर) से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ सकता है।

इतना ही नहीं इसके कारण 2.4 करोड़ अतिरिक्त लोग अत्यधिक गरीबी की मार झेलने को मजबूर हो जाएंगे।

यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) द्वारा जारी नई रिपोर्ट "ब्रेसिंग फॉर सुपरबग" में सामने आई है। यह रिपोर्ट एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध पर वैश्विक नेताओं की हो रही छठी बैठक के दौरान जारी की गई है। इस बैठक की अध्यक्षता बारबडॉस की प्रधानमंत्री मिया मोटले कर रही हैं।

रिपोर्ट से पता चला है कि आने वाले 27 वर्षों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर दोगुणा हो जाएगा। गौरतलब है कि 2019 में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से मरने वालों का आंकड़ा करीब 50 लाख था जिसके 2050 तक बढ़कर प्रतिवर्ष एक करोड़ हो जाने की आशंका जताई जा रही है। यह आंकड़ा 2020 में कैंसर से होने वाली मौतों के लगभग बराबर है।

जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक रोगाणुरोधी प्रतिरोध हर साल मलेरिया और एड्स से भी ज्यादा लोगों की जान ले रहा है। गौरतलब है कि 2019 में वैश्विक स्तर पर एड्स से 6.8 लाख लोगों की जान गई थी। वहीं मलेरिया 6.27 लाख लोगों की मौतों की वजह था। यदि संक्रमण से होने वाली मौतों को देखें तो इस लिहाज से एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का नंबर कोविड-19 और ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के बाद आता है।

ऐसे में बारबाडोस के ब्रिजटाउन में जारी इस रिपोर्ट में ड्रग निर्माताओं, कृषि व स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र से पैदा हो रहे प्रदूषण पर रोक लगाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। साथ ही इस रिपोर्ट में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के पर्यावरणीय आयामों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।

क्या है यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध

गौरतलब है कि विषाणु, जीवाणु, फफून्द और अन्य परजीवियों में समय के बीतने के साथ जो बदलाव आते हैं उनसे उनमें रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित हो जाता है। ऐसे में एंटीबायोटिक व अन्य जीवनरक्षक दवाएं इन अनेक प्रकार के संक्रमणों पर असर नहीं करती। नतीजन इनसे जुड़े रोग जल्द ठीक नहीं होते। इन्हें कभी-कभी "सुपरबग्स" भी कहा जाता है।

रिपोर्ट में ‘सुपरबग’ यानी हर तरह के एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधी हो चुके बैक्टीरिया को उभरने व फैलने से रोकने के लिए भी मजबूत कार्रवाई का आग्रह किया है। यूनेप के अनुसार रोगाणुरोधी प्रतिरोध के अन्य मामलों की भी रोकथाम की जानी चाहिए जिसका मानव, पशु व पौधों के स्वास्थ्य पर गम्भीर असर पड़ रहा है। गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने भी रोगाणुरोधी प्रतिरोध को स्वास्थ्य के लिए दस सबसे बड़े खतरों में से एक के रूप में चिन्हित किया है।

रिपोर्ट में 2019 के दौरान वैश्विक स्तर पर करीब 12.7 लाख लोगों की मौत के लिए सीधे तौर पर दवाओं के लिए विकसित हुए प्रतिरोधी संक्रमण को जिम्मेवार माना गया है। कुल मिलाकर, दुनिया भर में करीब 50 लाख मौतों के लिए कम से कम एक दवा प्रतिरोधी संक्रमण जिम्मेवार था।

रिपोर्ट में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के विकसित होने और उसके पर्यावरण में फैलने के लिए मुख्य रूप से ड्रग निर्माण, कृषि व स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र से होने वाले प्रदूषण को जिम्मेवार माना है। इसके अलावा साफ-सफाई की पर्याप्त व्यवस्था का आभाव, और सीवर एवं जल प्रणालियों में होने वाले प्रदूषण को भी इसके फैलने की वजह माना है। 

ऐसा नहीं है कि यह समस्या सिर्फ इंसानों में बढ़ रही है। आज जिस तरह से पशुओं से प्राप्त होने वाले प्रोटीन की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है, उसकी वजह से इन पर भी धड़ल्ले से एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है। नतीजन इन पशुओं में भी रोगाणुरोधी प्रतिरोध तेजी से बढ़ रहा है। इसका खामियाजा भी इनका सेवन करने वालों को भुगतना पड़ रहा है।

आंकड़े दर्शाते हैं कि 2000 से लेकर 2018 के बीच मवेशियों में पाए जाने वाले जीवाणु तीन गुना अधिक एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स हो गए हैं, जोकि एक बड़ा खतरा है, क्योंकि यह जीवाणु बड़े आसानी से मनुष्यों के शरीर में भी प्रवेश कर सकते हैं। 

बचाव के लिए जरूरी है कारगार उपाय

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन  का कहना है कि पृथ्वी तिहरे संकट का सामना कर रही है जिनमें जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैवविविधता को हो रहा नुकसान शामिल है। इन खतरों के कारण ही यह समस्या उपजी है।

उनके अनुसार वायु, मिट्टी और जलमार्गों में होता प्रदूषण, इंसान के स्वस्थ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को कमजोर कर रहा है। उनका आगे कहना है कि जो कारक पर्यावरण में आती गिरावट के लिए जिम्मेवार हैं उनके कारण ही रोगाणुरोधी प्रतिरोध की स्थिति बद से बदतर हो रही है। ऐसे में उन्होंने सचेत किया है कि इसके प्रभाव हमारी स्वास्थ्य और खाद्य प्रणालियों को तबाह कर सकते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार रोगाणुरोधी प्रतिरोधी की चुनौती पर पार पाने के लिए विविध क्षेत्रों में जवाबी कार्रवाई की जरूरत होगी। साथ ही ऐसा करते समय आम लोगों, पशुओं, पौधों और पर्यावरण के स्वास्थ्य का भी ध्यान में रखना होगा। देखा जाए तो इन सभी का स्वास्थ्य आपस में गहराई से जुड़ा है, यह सभी एक दूसरे पर निर्भर है।

गौरतलब है कि ऐसी ही समस्याओं को ध्यान में रखते हुए यूनेप, एफएओ, विश्व स्वास्थ्य संगठन और पशु स्वास्थ्य के लिए गठित वैश्विक संगठन ने वन हेल्थ फ्रेमवर्क जारी किया है। रिपोर्ट में पर्यावरण को होते नुकसान और पैदा होते रोगाणुरोधी प्रतिरोध को रोकने के लिए जो समाधान प्रस्तुत किए गए हैं उनमें साफ-सफाई की खराब व्यवस्था, सीवर, कचरे से होने वाले प्रदूषण से निपटने और साफ पानी जैसे मुद्दों से कारगर तरीके से निपटने की वकालत की गई है।

इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर शासन व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने, योजनाएं बनाने व नियमों और कानूनी फ्रेमवर्क पर बल देने की बात कही है। इसके साथ ही रिपोर्ट में एकीकृत जल प्रबन्धन में बेहतरी के लिए वैश्विक प्रयासों को बढ़ाने की भी दरकार की है।

एक डॉलर = 82.68 भारतीय रुपए

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