सुलग रही है भोपाल की लैंडफिल साइट, कई इलाकों में फैला जहरीला धुआं

प्रदूषण का स्तर तीन गुणा अधिक बढ़ने के कारण आसपास की कॉलोनियों और गांवों में लोगों का जीना मुहाल हो गया है 

By DTE Staff

On: Friday 26 April 2019
 
Photo : Raju Dubey

राजा दुबे

पांच दिन बाद दिन भोपाल से 18 किलोमीटर के फासले पर स्थित आदमपुर छावनी गांव में स्थित लैंडफिल साइट (कचरा खंती) पर लगी आग बुझ पाई है। कचरे से उठ रहा धुएं की वजह से पैदा जहरीली गैस के कारण आसपास की रिहाइशी कॉलोनियों और गांवों में लोगों का जीना मुहाल हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि वे पहले ही नगर निगम को चेता चुके थे कि कचरा खंती में कभी भी आग लग सकती है, लेकिन निगम प्रशासन ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। 

आदमपुर स्थित नगर निगम की अस्थाई लैंडफिल साइट (कचरा खंती) में 21 अप्रैल, रविवार दोपहर करीब सवा दो बजे आग लगी जो रात आठ बजे तक खंती के 60 फीसदी से अधिक हिस्से में फैल गई। धुएं का गुबार आसपास के आधा दर्जन गांवों में छा गया। जिससे लोगों को सांस लेने में परेशानी और आंखों में जलन की समस्या होने लगी। गांवों और बस्तियों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया।

निगम प्रशासन की 15 दमकलें और टैंकर आग बुझाने में लगाये गये, मगर इस अग्निकांड ने शहर की अग्रिशमन क्षमताओं की अपर्याप्तता की पोल खोल दी । पानी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण आग बुझाने में बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ा । आग से निकला धुआं आसपास के 30 किलोमीटर क्षेत्र में फैल गया है।

पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सुभाष सी पांडे का कहना है कि उन्होंने प्रशासन के सामने पहले ही खंती में आग लगने की आशंका जताई थी मगर प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया। उन्होंने आग लगने से निकलने वाली फ्यूरेन, डॉइआक्सिन, कार्बन मोनो आक्साइड व कार्बन डाइआक्साइड जैसी जहरीली गैसों से मानव व वन्यप्राणियों को नुकसान की आशंका जताई है ।

हवा की दिशा भोपाल की तरफ न होकर गांवों की तरफ थी इसके कारण  शहर की तरफ ज्यादा असर देखने को नहीं मिला। फिर भी आदमपुर छावनी से सटे पटेल नगर, आनंद नगर समेत 5 से अधिक रिहाइशी कॉलोनियों तक धुएं का हल्का असर हुआ, जबकि आदमपुर छावनी, पडरिया, कोलुआ समेत आसपास के 10 गांवों पर भी  धुएं की असर की बात सामने आई ।

खंती में तैनात निगम कर्मचारी गोवर्धन यादव ने बताया कि दोपहर करीब दो बजे वह पोकलेन से काम कर रहा था तभी आग लगी और  तेज हवा के झोंके से पोकलेन के चारों ओर धुआं फैल गया, इससे दम घुटने लगा। तैनात निगमकर्मियों ने आग देखकर मशीन छोड़कर भागकर अपनी जान बचाई । 

आदमपुर छावनी में गत मई 2018 में भी भीषण आग लगी थी, उस दौरान कचरे की मात्रा कम थी फिर भी आग पर काबू पाने में 24 घंटे का समय लगा था। एक साल पहले भोपाल की भानपुर खंती कचरा खंती में बायो रेमिडिएशन का काम शुरू हुआ था, जिसके बाद यहां कचरा डालना बंद कर दिया गया था  फिर जनवरी 2018 से शहर का पूरा कचरा आदमपुर छावनी की इस लैंडफिल साइट में भेजा जाने लगा था ।

भोपाल नगर निगम ने वर्ष 2018 में एस्सेल इंफ्रा को आदमपुर छावनी में कचरे से बिजली बनाने का जिम्मा सौंपा था। नवंबर 2018 से कंपनी ने काम करने की तैयारी भी शुरु  कर दी थी लेकिन राज्य सरकार , भोपाल नगर निगम और कम्पनी एस्सेल के बीच -" पॉवर परचेज एग्रीमेंट " न होने के कारण कंपनी प्रोजेक्ट पर काम ही नहीं कर रही है।

इस अग्रिकाण्ड के समय  भी कंपनी का कोई कर्मचारी वहां मौजूद नहीं था । इस प्रोजेक्ट पर 468 करोड़ रुपए खर्च होना है लेकिन बिजली बनना तो दूर अभी तक यहां लैंडफिल साइट भी नहीं बन पाई है ।

आदमपुर छावनी की खंती में लगी आग और तीस किलोमीटर क्षेत्र में फैले धुएं पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। बोर्ड की रपट में इस दुर्घटना से घटनास्थल के आसपास का पीएम -10 का स्तर जो सामान्य वातावरण में 100 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होता है, वो ‌‌‌‌आग से निकले धुएं के कारण तीन गुना बढ़कर 317 हो गया है। इसी प्रकार पी.एम.-2.5  का संयंत्र भी जो सामान्य तौर पर 60  माइक्रो ग्राम प्रति मीटर होति वह भी धुएं के दुष्प्रभाव के कारण 164 तक पंहुच गया है ।

आदमपुर छावनी खंती में लगी आग से हवा में प्रदूषण काफी बढ़ गया है और आसपास के गांवों में लोगों को सांस लेने में भी परेशानी हो रही है। इस आग को बुझाने में शासन-प्रशासन की गंभीरता का अंदाज़ आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आग बुझाने के लिए छ: फायर फाइटर और तीन वॉटर टैंकर लगे हैं जो नाकाफी हैं और पांच दिन बाद भी खंती में आग धधक रही है मगर शासन-प्रशासन अग्रिशमन दस्ते बढ़ाने के प्रति गंभीर नहीं है।

आदमपुर छावनी की इस खंती में भोपाल सहित आठ निकायों से 1,060 टन कचरा प्रतिदिन एकत्र किया जाता है । यह सारा कचरा शहरी बस्तियों और गांवों से होकर गुजरता है  जो रास्ते में बिखरता है और इस गंदगी और बदबू से रहवासियों को भारी परेशानी होती है और पर्यावरण को भी गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है।

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