कॉप-28: 2022-23 में 23 देशों ने सूखे को लेकर घोषित किया आपातकाल, 184 करोड़ लोग प्रभावित

करीब 184 करोड़ लोग सूखे से प्रभावित हैं, जिनमें से करीब पांच फीसदी को भीषण सूखे का सामना करना पड़ा था

By Shagun, Lalit Maurya

On: Monday 04 December 2023
 
सूखे के बीच भी जीवन के लिए जद्दोजहद करती हरियाली; फोटो: आईस्टॉक

संयुक्त राष्ट्र द्वारा सूखे पर जारी नए वैश्विक मानचित्र से पता चला है कि 2022-23 के दौरान भारत सहित कम से कम 23 देशों ने सूखे का सामना किया था। जहां राष्ट्रीय और स्थानीय तौर पर सूखे की गंभीर स्थिति को देखते हुए इमरजेंसी तक की घोषणा करनी पड़ी थी। यह कहीं न कहीं वैश्विक स्तर पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देता है।

ग्लोबल ड्रॉट स्नैपशॉट 2023” रिपोर्ट में जारी आंकड़ों से यह भी पता चला है कि कुछ ही आपदाएं ऐसी हैं जो उनसे होने वाली मौतों, आर्थिक क्षति और समाज के विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों के मामले में सूखे से आगे हैं।

वहीं संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) द्वारा 101 देशों के लिए जारी आंकड़ों के मुताबिक 184 करोड़ लोग सूखे से प्रभावित हैं, जिनमें से 4.7 फीसदी भीषण सूखे की चपेट में थे। गौरतलब है कि यह रिपोर्ट एक दिसंबर, 2023 को कॉप-28 सम्मेलन के दौरान यूएनसीसीडी द्वारा जारी की गई थी।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के लिए वार्ताओं का दौर 30 नवंबर से शुरू हो चुका है। इसमें दुनिया भर के देश हिस्सा ले रहे हैं। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 तक चलने वाले इस सम्मलेन में जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ उससे जुड़े कई अहम मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।

दुनिया में सूखे की स्थिति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2022-23 के दौरान इसके चलते 23 देशों में आपातकाल तक घोषित करना पड़ा था। इनमें से सबसे ज्यादा आठ यूरोपियन देश थे, जिनमें स्पेन, इटली और यूनाइटेड किंगडम ने क्रमशः अप्रैल, मई और जुलाई 2023 में इसकी घोषणा की थी, जबकि ग्रीस, पुर्तगाल, रोमानिया और सर्बिया में जुलाई 2022 के दौरान सूखे की वजह से आपातकाल घोषित करना पड़ा।

ऐसा नहीं है कि 2022-23 के दौरान यूरोपियन देश केवल सूखे और सूखे जैसी गंभीर परिस्थितियों से परेशान थे। इस दौरान चिलचिलाती गर्मी ने भी उन्हें प्रभावित किया था। कई जगहों पर तो अब तक की सबसे गर्म गर्मियां अनुभव की गई। इसी तरह 2022 में यूरोप के सूखा प्रभावित क्षेत्रों को देखें तो वो चरम पर पहुंच गया। इस दौरान यूरोप का 6.3 लाख वर्ग किलोमीटर से ज्यादा हिस्सा सूखे की चपेट में था, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। यूरोपियन एनवायरनमेंट एजेंसी के मुताबिक 2000 से 2022 के बीच यूरोप में औसतन हर साल 1.67 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन सूखे की चपेट में आई है।

बढ़ते तापमान के साथ बढ़ रहा है सूखे का कहर

आंकड़ों की मानें तो हाल के वर्षों में सूखे का कहर बढ़ा है जो पहले से कहीं ज्यादा क्षेत्रों को अपनी चपेट में ले रहा है। मैप के मुताबिक जहां अमेरिका को जनवरी 2022 में वहीं कनाडा को भी मार्च 2023 में सूखे की आपात स्थिति की घोषणा करनी पड़ी थी।

वहीं एशिया के पांच देशों ने भी इस दौरान सूखे के आपातकाल की घोषणा की थी। भारत और श्रीलंका को जहां अगस्त 2023 में, इंडोनेशिया ने जुलाई 2023, वहीं कजाकिस्तान और चीन ने क्रमशः अप्रैल और मई 2022 में सूखे के लेकर आपात स्थिति घोषित कर दी थी।

बता दें कि साल 2023 में भीषण गर्मी ने कई रिकॉर्ड तोड़े हैं। 17 नवंबर, 2023 को वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया था। यह वो सीमा है जिसको पार न करने की लगातार वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं। ऊपर से सूखे को लेकर जो भयावह तस्वीर जारी की गई है वो किसी चेतावनी से कम नहीं। ऐसे में यदि इसपर अभी गंभीरता से कदम न उठाए गए तो भविष्य में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

इसमें कोई शक नहीं की सूखे के व्यापक प्रभाव पड़ते हैं। इसकी वजह से जहां जलाशयों में जमा पानी घट जाता है, वहीं सिंचाई की कमी फसलों की पैदावार को कम कर देती है। इसी तरह इसका खामियाजा जैवविविधता को भी झेलना पड़ता है। इतना ही नहीं फसलों के प्रभावित होने से न केवल लोगों को खाने की कमी का सामना करना पड़ता है साथ ही कीमते भी आसमान छूने लगती हैं। इसकी वजह से वैश्विक खाद्य आपूर्ति शृंखला पर भी असर पड़ता है। रिपोर्ट ने भी संकेत दिया है कि इस आपदा से हर साल अरबों डॉलर का आर्थिक नुकसान हो रहा है।

साथ ही इस दौरान दक्षिण अमेरिकी देश उरुग्वे के साथ-साथ अफ्रीकी देश जैसे नाइजर, जिबूती, काबो वर्डे और मॉरिटानिया ने भी सूखे की आपात स्थिति का सामना किया था। इसके अतिरिक्त, किरिबाती, मार्शल द्वीप और तुवालु जैसे देश भी सूखे से गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं।

हॉर्न ऑफ अफ्रीका ने किया चार दशकों में सबसे भीषण सूखे का सामना

वहीं हॉर्न ऑफ अफ्रीका को अपने पिछले 40 वर्षों के इतिहास में सबसे भीषण सूखे का सामना करना पड़ा है। विशेष तौर पर इथियोपिया, केन्या और सोमालिया में हालात बेहद नाजुक रहे। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा 2023 के लिए जारी आंकड़ों के मुताबिक बारिश के सीजन के लगातार पांचवी बार विफल रहने से पूर्वी अफ्रीका के बड़े हिस्से को भारी तबाही का सामना करना पड़ा। नतीजन वहां कृषि उत्पादकता, खाद्य असुरक्षा के साथ-साथ खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी इजाफा दर्ज किया गया।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि मानव-प्रेरित सूखे के परिणाम अब सामने आने लगे हैं। यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहिम थियाव के मुताबिक, "मीडिया का ध्यान आकर्षित करने वाली अन्य आपदाओं के विपरीत, सूखा चुपचाप आता है, और अक्सर किसी का ध्यान उसपर नहीं जाता। ऐसे में उसपर तत्काल सार्वजनिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया देने में विफल रहते हैं।"  उनका आगे कहना है कि यह मौन विनाश उपेक्षा के चक्र को जारी रखता है, जिससे प्रभावित समुदायों को अकेले बोझ उठाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

हालांकि पिछले दो दशकों में, केवल 26 फीसदी वैज्ञानिक अध्ययनों में इस बात को समझने पर ध्यान केंद्रित किया है कि समाज किस हद तक सूखे के खतरों की अवधि और तीव्रता प्रभावित करता है। वहीं यूएनसीसीडी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि बहुत कम करीब दस फीसदी शोधकर्ता समाज और सूखे के जोखिम के बीच के दीर्घकालिक संबंधों का अध्ययन कर रहे हैं।

बता दें कि यूएनसीसीडी 1992 में रियो डी जनेरियो में हुए पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान स्थापित तीन सम्मेलनों में से एक है। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर यूएनएफसीसीसी और जैव विविधता के मुद्दे पर "जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन" की स्थापना की गई थी।

आंकड़े बताते हैं कि सूखे से प्रभावित 85 फीसदी लोग निम्न या मध्यम आय वाले देशों में रह रहे हैं। इसके अतिरिक्त, 2022 के दौरान जो 3.26 करोड़ लोग आपदाओं से विस्थापित हुए थे, उनके विस्थापन के लिए तूफान, बाढ़ और सूखे जैसे मौसम से जुड़ी आपदाएं जिम्मेवार थी।

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