बाढ़ और भारी बारिश से 65 साल में 1 लाख लोगों की मौत, 4 लाख करोड़ रुपए का नुकसान

संसद की स्थायी समिति (जल संसाधन) ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह देश में बाढ़ प्रबंधन की जिम्मेवारी ले

By Raju Sajwan

On: Thursday 05 August 2021
 
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एनडीआरएफ की टीम लोगों को बाढ़ से बचाव करते हुए। फोटो: twitter/@NdrfRrc

भारत का लगभग 4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्रफल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। देश में 1953 से लेकर 2018 के दौरान बाढ़ और भारी बारिश के कारण 1,09,374 लोगों की जान गई, जबकि 61,09,628 पशुओं की जान गई। अनुमान है कि इन 65 सालों के दौरान देश को लगभग 4,00,097 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।

17वीं लोकसभा के लिए संसद की स्थायी समिति (जल संसाधन) द्वारा दोनों सदनों में प्रस्तुत रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि राष्ट्रीय बाढ़ आयोग का यह आंकड़ा बहुत प्रचंड है। हर साल बाढ़ से होने वाले भारी नुकसान के लिए खराब योजना, बाढ़ नियंत्रण नीतियों की असफलता, अधूरी तैयारियां और निष्प्रभावी आपदा प्रबंधन जिम्मेवार है।

स्थायी समिति ने कहा कि जिस तरह से हर साल बाढ़ का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। उसे देखते हुए अब केंद्र व राज्य सरकारें एक दूसरे पर दोष नहीं मढ़ सकते, जैसा कि समिति के संज्ञान में आया है। जबकि सभी को यह समझना चाहिए कि बाढ़ का प्रबंधन करना हरेक की जिम्मेवारी है। समिति ने जोर देकर कहा है कि एक दूसरे पर जिम्मेवारी को टालने का रवैया खत्म करना होगा। समिति ने सिफारिश की है कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय पूरे देश में बाढ़ प्रबंधन की जिम्मेवारी ले।

स्थायी समिति ने केंद्र से भी कहा है कि जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता में एक स्थायी नेशनल इंटिग्रेटेड फ्लड मैनेजमेंट ग्रुप (एनआईएफएमजी) बनाया जाए, जिसमें हर राज्य के संबंधित मंत्रियों को भी शामिल किया जाए और साल में कम से एक कम बैठक अवश्य की जाए। कमेटी ने सिफारिश की है कि इस रिपोर्ट के संसद में पेश होने के तीन माह के भीतर इस ग्रुप की पहली बैठक बुलाई जाए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अब समय आ गया है, जब केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम करने की दिशा में काम करें। समिति ने एक इंटिग्रेटेड रिवर बेसन मैनेजमेंट प्लान बनाने का सुझाव दिया है, जिसमें सभी बाढ़ प्रभावित राज्यों के साथ-साथ पड़ोसी देशों को शामिल किया जाए, ताकि पड़ोसी देशों की नदियों के पानी का भी प्रबंधन किया जा सके।

स्थायी समिति ने अपनी इस रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश के पैटर्न में काफी बदलाव आया है। जहां बारिश के कुल दिनों में कमी आई है, वहीं एक साथ भारी बारिश की घटनाएं बढ़ी हैं। इसलिए अब बहुत जरूरी हो गया है कि योजनाकार बाढ़ नियंत्रण की रणनीति पर नए सिरे से काम करें।

स्थायी समित ने सरकार से कहा है कि डैम सेफ्टी बिल, रिवर बेसिन मैनेजमेंट बिल को जल्द से जल्द पारित कराया और साथ ही मौजूदा आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 को सही ढंग से लागू किया जाए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अब तक कई राज्यों में फ्लड प्लेन जोनिंग को चिह्नित तक नहीं किया गया है। केंद्र सरकार ने फ्लड प्लेन जोनिंग कानून का मॉडल बिल राज्यों को भेजा था, लेकिन अब तक केवल मणिपुर, राजस्थान उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में इस दिशा में काम किया गया है। हालांकि फ्लड प्लेन को चिह्नित करने का काम भी यहां पूरी तरह से नहीं किया गया है। लेकिन सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, आसाम और ओडिशा में यह कानून बनाने की दिशा में कोई भी काम नहीं किया गया है।

दिलचस्प बात यह है कि जहां पिछले 65 सालों में बाढ़ की वजह से देश को लगभग 4 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, वहीं अगर बाढ़ प्रबंधन के मामले में केंद्र सरकार के बजट की बात की जाए तो जल संसाधन विभाग के सचिव ने स्थायी समिति को बताया कि बाढ़ प्रबंधन को लेकर मंत्रालय का कुल बजट मात्र 500 करोड़ रुपए का है।

वहीं, अगर आपदा प्रबंधन की बात की जाए तो आम बजट 2021-22 में नेशनल डिजास्टर रिस्पोंस फोर्स का के लिए 1209 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया।

 

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