आवरण कथा, जहरीली हवा का दंश, भाग-एक: गर्भ से ही हो जाती है संघर्ष की शुरुआत

जहरीली हवा का पहला शिकार देश के भविष्य की अगली पीढ़ी हो रही है, जो या तो समय से पहले मारे जा रहे हैं या विकृतियों भरे जीवन की ओर बढ़ रहे हैं

By Anumita Roychowdhury

On: Saturday 09 December 2023
 

भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के कारण बच्चों की सेहतभरी जिंदगी के साल लगातार कम होते जा रहे हैं। किसी भी आयु वर्ग के मुकाबले बच्चे इसके सबसे बड़े शिकार हैं। यह देश की आर्थिक और सामाजिक खुशहाली पर गहरी चोट कर रहा है। गर्भ में पल रहे बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं। जहरीली हवा के प्रभाव से न केवल जन्म के समय बच्चों में विकृतियां आ रही हैं, बल्कि इसके दीर्घकालिक असर ने उनका जीवन और भी कष्टमय बना दिया है। डाउन टू अर्थ ने हवा में बढ़ रहे इस जहर का बच्चों पर पड़ रहे प्रभाव की पड़ताल की। पढ़ें, पहला भाग:  

वायु प्रदूषण का जहरीला सफर गर्भ से शुरू होता है। गर्भावस्था के दौरान जब माएं प्रदूषित हवा के संपर्क में आती हैं तो गर्भ में पल रहे बच्चे को गंभीर खतरा पैदा हो जाता है। यही हवा नवजात शिशु से लेकर किशोर तक को जीवन भर का बोझ का कारण बन जाती है। वायु प्रदूषण भारत सहित पूरे ग्लोबल साउथ (विकासशील एवं गरीब देश) में भयावह स्तर पर पहुंच चुका है। भारत इस बात के लिए बदनाम है कि वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में जन्म के एक महीने के भीतर होने वाली शिशुओं की मृत्यु में से एक-चौथाई यहीं होती हैं।

स्थानीय और वैश्विक स्तर पर बढ़ते प्रमाण और अच्छी तरह से डिकोड किए गए विज्ञान में उन जैविक मार्गों को परिभाषित किया जा चुका है, जिनके माध्यम से प्रदूषक शरीर में प्रवेश करते हैं और अंगों को प्रभावित करते हैं। इनसे न केवल शिशुओं को प्रभावित करने वाले निचले श्वसन संक्रमण का पता चला है, बल्कि जन्म के समय कम वजन और समय पूर्व जन्म के कारण बच्चों की सेहत पर होने वाले असर के तथ्य सामने आए हैं। जीवन के पहले पड़ाव में बच्चे बेहद नाजुक होते हैं, वायु प्रदूषण उनके जीवन को बेहद असुरक्षित बना देता है। खासकर गरीब घरों के बच्चों को इसका खतरा अधिक होता है।

हवा में व्याप्त विषाक्त धूल कणों के संपर्क में आने वाली मां के गर्भ में पल रहे भ्रूण के जीवित रहने की संभावना कम हो सकती है। प्रदूषित हवा के कारण मृत बच्चे का जन्म, समय से पहले जन्म और जन्म के समय कम वजन जैसी घटनाएं हो सकती है। उन्हें बाद के जीवन में अंतःस्रावी (इंडोक्राइन) और चयापचय (मेटाबोलिक) के साथ-साथ मधुमेह जैसी कई बीमारियों का खतरा रहता है। यदि वायु प्रदूषण मां के श्वसन स्वास्थ्य पर असर डालता है तो गर्भ में पल रहे भ्रूण में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी का कारण भी बन सकता है।

गर्भाशय में फेफड़ों के खराब विकास से वायुमार्ग की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। वैज्ञानिक समझाते हैं कि कणीय पदार्थ यानी पार्टिकुलेट मैटर की वजह से मांताओं की इम्युनिटी कम हो सकती है। समय से पहले या मृत बच्चे का जन्म या अविकसित दिमाग वाले बच्चे के जन्म का खतरा बढ़ सकता है। पैदा होने वाले कमजोर बच्चे अधिक संवेदनशील होते हैं और निचले फेफड़ों का संक्रमण (एलआरआई), दस्त, मस्तिष्क क्षति और सूजन, रक्त विकार और पीलिया के जोखिम का सामना नहीं कर सकते हैं। प्रदूषित हवा के जल्दी संपर्क में आने से 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। यह मस्तिष्क व तंत्रिका संबंधी विकास, फेफड़ों की कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है और मोटापे का कारण बन सकता है। इसके अलावा मानसिक विकार पैदा हो सकते हैं, जैसे: ध्यान में कमी, कम बुद्धि, अविकसित दिमाग आदि। यहां तक कि बच्चों के फेफड़ों की कार्यक्षमता में स्थायी कमी हो सकती है, जिससे वे बड़े होने के बाद भी फेफड़ों की बीमारी की पुरानी बीमारी की चपेट में आ सकते हैं, जो उनके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।

भारत में वायु प्रदूषण के प्रभाव से बच्चों की मृत्यु, गंभीर श्वसन संक्रमण, समय से पहले और मृत जन्म, स्टंटिंग, अनीमिया, एलर्जिक राइनाइटिस (हे फीवर) और दिमागी विकास जैसी बीमारियों के पुख्ता प्रमाण बढ़ रहे हैं। खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन का उपयोग करने वाले घरों में गर्भावस्था के दौरान माताओं और जन्म के समय कम वजन के शिशुओं के मामले सामने आ चुके हैं। वायु प्रदूषण की वजह से बच्चों के जीने और उनके भविष्य के अधिकार का गंभीर उल्लंघन हो रहा है। ऐसे में हमें चेतने की जरूरत है और कुछ बड़े कदम उठाने होंगे। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) में ऐसे कार्य शामिल करने होंगे, जो वायु प्रदूषण की वजह से स्वास्थ्य को हो रहे नुकसान को कम कर सकें। हमें पुख्ता निगरानी के साथ-साथ ठोस कदम उठाने होंगे। ताकि प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोतों में कमी लाई जा सके। इससे हवा की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ बच्चों की बीमारी का बोझ कम होगा।

सर्दी के मौसम में स्मॉग के दौरान स्कूलों में प्रदूषण की छुट्टियों की घोषणा करना कोई समाधान नहीं है। हमें सभी घरों और उद्योगों के लिए स्वच्छ ईंधन, शून्य उत्सर्जन वाले वाहन, कारों पर कम निर्भरता, कचरे को जलाने से रोकने के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वायु प्रदूषण से होने वाले बीमारियों पर अंकुश लगाने के लिए राज्यों में “स्वास्थ्य अनुकूलन योजना” शुरू की है। ऐसे में अब एनसीएपी को मजबूत होने की जरूरत है।

बुजुर्गों की तुलना में बच्चों की बीमारी के बोझ के कारण स्वस्थ जीवन के वर्षों की कमी ज्यादा खलती है। यह आर्थिक और सामाजिक समृद्धि को नष्ट कर रहा है। बच्चों को इस जहरीले जोखिम से बचाना स्वच्छ वायु नीति का दायित्व है।

आगे पढ़ें : आवरण कथा, जहरीली हवा का दंश, भाग-दो: बच्चों पर भारी बीता नवंबर का महीना

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