वायु प्रदूषण के चलते बच्चियों में समय से पहले सामने आ रहे युवा होने के लक्षण: अध्ययन

रिसर्च से पता चला है कि जो बच्चियां जन्म से पहले या बचपन में ऐसे क्षेत्रों में रह रही थी, जहां हवा में प्रदूषण का स्तर बेहद ज्यादा था, उनमें माहवारी की शुरूआत कम उम्र में हो गई थी

By Lalit Maurya

On: Wednesday 25 October 2023
 
भारत के दिल्ली जैसे शहरों में प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं बच्चियां; फोटो: आईस्टॉक

वैसे तो बढ़ता वायु प्रदूषण हर साल दुनिया में न केवल लाखों लोगों की जान ले रहा है, साथ ही अनगिनत बीमारियों की वजह भी बन रहा है। लेकिन इसको लेकर की गई एक नई रिसर्च में हैरान कर देने वाली जानकारी सामने आई है। इस रिसर्च से पता चला है कि वायु प्रदूषण के चलते बच्चियों में समय से पहले ही युवा होने के लक्षण सामने आ रहे हैं, जो बेहद चिंताजनक है।

वैज्ञानिकों को हाल ही में किए अध्ययन में बचपन में बच्चियों के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने और माहवारी की जल्द शुरूआत का अनुभव करने के बीच संबंध का पता चला है। यह अध्ययन एमोरी और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।

जर्नल एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स में प्रकशित इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि जो बच्चियां बचपन में ऐसे क्षेत्रों में रह रही थी, जहां हवा में प्रदूषण के महीन कणों का स्तर बेहद ज्यादा था, उनमें माहवारी की शुरूआत कम उम्र में हो गई थी। बता दें कि यह अध्ययन अमेरिका में 5,200 से ज्यादा बच्चियों के बारे में प्राप्त जानकारी पर आधारित है। जिनकी उम्र 10 से 17 वर्ष के बीच थी और उनमें से कुछ में माहवारी की शुरुआत हो गई थी।

अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच की है कि यह बच्चियां कितने प्रदूषण के संपर्क में आई थी। इनमें विभिन्न आकार के छोटे कण भी शामिल थे। इसकी सटीक जानकारी के लिए शोधकर्ताओं ने हर दो वर्षों के दौरान उनके आवास क्षेत्रों में मौजूद प्रदूषण के बारे में जानकारी को अपडेट किया था। साथ ही इस अध्ययन में उन अन्य कारणों पर भी गौर किया गया है जो इसके परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं।

अध्ययन के मुताबिक बच्चियों में पहली बार माहवारी का अनुभव 12.3 साल की उम्र में हुआ था। जो बच्चियां जन्म से पहले या बचपन के दौरान चार माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा अतिरिक्त पीएम 2.5 कणों के संपर्क में आई थी, तो उनमें समय से पहले माहवारी की शुरूआत होने की आशंका अधिक पाई गई थी। बता दें कि अध्ययन के दौरान यह बच्चियां 4.8 से 32.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पीएम 2.5 के संपर्क में थी। वहीं पीएम 10 का औसत स्तर 21.9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था।

माहवारी की जल्द शुरूआत से बच्चियों में हो सकती हैं कई बीमारियां

शोध से यह भी पता चला है कि जिन बच्चियों में माहवारी की शुरूआत जल्द हो जाती है, उनमें बड़े होने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होने की कहीं ज्यादा आशंका रहती है। इसकी वजह से इन बच्चियों में आगे चलकर हृदय संबंधी रोगों, मधुमेह और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।

ऐसे में शोध में कारों, ट्रकों, लकड़ी और दूषित ईंधन सहित अन्य स्रोतों से होने वाले प्रदूषण को कम करने पर जोर दिया गया है, जिससे युवाओं को उनके जन्म से पहले ही स्वस्थ वातावरण दिया जा सके, ताकि आगे चलकर उन्हें स्वस्थ भविष्य दिया जा सके।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ शोधकर्ता और एमोरी विश्वविद्यालय के रोलिंस स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर ऑड्रे गास्किन्स, ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "50 साल पहले की तुलना में अब बच्चियों में माहवारी की शुरूआत समय से पहले क्यों हो रही है उसकी एक वजह यह दूषित हवा हो सकती है।"

उनके मुताबिक पार्टिकुलेट मैटर इसकी प्रवृत्ति को समझाने में मददगार हो सकता है। उनका आगे कहना है कि इसपर अभी और शोध करने की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा लगता है कि जब बच्चियां छोटी होती हैं तो वो अपने वातावरण में जो अनुभव करती हैं, वह वास्तव में यह निर्धारित करने में महत्वपूर्ण हो सकता है कि वे कितनी तेजी से बढ़ती हैं। जो उनके शारीरिक विकास की गति को प्रभावित का सकता है।

हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं ने यह बात भी कही है कि यह पता लगाने के लिए अभी और अधिक शोध करने की आवश्यकता है कि कैसे प्रदूषण के यह महीन कण बच्चियों में समय से पहले माहवारी की शुरूआत की वजह बन सकते हैं। साथ ही अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने केवल प्रदूषण के महीन कणों (पार्टिकुलेट मैटर) पर ध्यान दिया है। लेकिन वायु प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं।

ऐसे में वायु प्रदूषण के यह सभी प्रकार एक साथ मिलकर कैसे प्रभाव डाल सकते हैं और क्या वे बच्चियों के स्वास्थ्य को अलग तरह से प्रभावित कर सकते हैं, इसकी अभी जांच करनी बाकी है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पार्टिकुलेट मैटर, प्रदूषण के उन तरल और ठोस कणों का मिश्रण है जो हवा में मुक्त होते हैं। वे सूक्ष्म कणों से लेकर धुआं, कालिख, धूल कणों के साथ तरल कणों के रूप में हो सकते हैं।

हालांकि यह अध्ययन अमेरिका में बच्चियों पर की गई रिसर्च पर आधारित है, लेकिन भारत, बांग्लादेश जैसे देशों में जहां वायु प्रदूषण की स्थिति बेहद विकट है वहां यह बच्चियों के स्वास्थ्य को कहीं ज्यादा प्रभावित कर सकता है। ऐसे में बढ़ते प्रदूषण पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, क्योंकि अब भारत जैसे देशों में जो प्रदूषण शहरों की समस्या था उसने गांवों और छोटे शहरों का रुख कर लिया है। जहां महिलाएं और बच्चियां आज भी माहवारी से जुड़ी अनगिनत स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहीं हैं, जिनके बारे में बात करना भी किसी अपराध से कम नहीं।

भारत में वायु प्रदूषण के सम्बन्ध में ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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