तय सीमा से पांच गुणा ज्यादा पाया गया प्रदूषण, नॉर्दर्न कोलफील्ड्स पर 4.43 करोड़ का जुर्माना

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Tuesday 25 April 2023
 

नॉर्दर्न कोलफील्ड्स की बीना परियोजना, वायु अधिनियम, 1981 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है। यह बात उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी 25 अप्रैल, 2023 को कोर्ट में सबमिट रिपोर्ट में कही है। मामला उत्तर प्रदेश में सोनभद्र का है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अभी भी 1,29,236.85 मीट्रिक टन कोयला साइट पर मौजूद है।

वहीं गूगल सैटेलाइट इमेज से पता चला है कि कृष्णाशिला रेलवे साइडिंग में 2017 के दौरान कोयले की डंपिंग नहीं देखी गई थी। वहीं 2018 में दो छोटे पैच देखे गए थे, जो 2020 तक लगातार बढ़ रहे थे।

गूगल द्वारा उपग्रह से ली छवियों से पता चला है कि यह महत्वपूर्ण कोयला भंडार दिसंबर 2022 में उस क्षेत्र में देखा गया था जो मेसर्स नॉर्दर्न कोलफील्ड की बीना परियोजना के अधिकार क्षेत्र में आता है।

पता चला है कि कोयले के स्वयं जलने के कारण क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। ऐसे में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा क्षेत्र में वायु गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है। रिपोर्ट के मुताबिक वहां पीएम 10 का स्तर 460 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया जोकि तय सीमा (100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से करीब पांच गुणा ज्यादा है।

ऐसे में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नॉर्दर्न कोलफील्ड्स पर 4.43 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा 16 नवंबर, 2022 को दिए निर्देश के मद्देनजर कोर्ट में सबमिट की गई है।

नंधौर वन्यजीव अभ्यारण्य के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र में नदी की ड्रेजिंग के दिए गए निर्देश

नैनीताल के जिला मजिस्ट्रेट ने चोरगलिया में बाढ़ से बचने के लिए संबंधित अधिकारियों को नंधौर के ऊपर नदी को चैनलाइज करने के निर्देश दिए हैं। यह निर्देश 24 फरवरी, 2023 को एनजीटी द्वारा दिए आदेश पर जारी किए गए हैं। मामला उत्तराखंड के नैनीताल जिले का है।

गौरतलब है कि इससे पहले उत्तराखंड सरकार ने 7 जनवरी 2022 को एक पत्र के माध्यम से उत्तराखंड रिवर ड्रेजिंग पॉलिसी 2021 के तहत नंधौर नदी पर तटीकरण के काम को अनुमति दी थी।

जानकारी दी गई है कि इससे चोरगलिया, नानकमत्ता और सितारगंज गांवों के लोगों को बाढ़ की स्थिति से बचने में मदद मिलेगी। वहीं नैनीताल के जिलाधिकारी द्वारा जारी निर्देशों को ध्यान में रखते हुए वन विभाग, राजस्व विभाग एवं सिंचाई विभाग के अधिकारियों की एक संयुक्त समिति का गठन किया गया है। इससे पहले बाढ़ की स्थिति से बचने के लिए नौ जून 2021 को क्षेत्र का संयुक्त निरीक्षण किया गया था।

जांच में पता चला है कि देवाठे नदी के मुहाने पर आरबीएम निकली है। वहीं कैलाश नदी के मुहाने पर बड़ी मात्रा में सड़क आधार सामग्री (आरबीएम) और मिट्टी जमा हो गई है। इसके चलते नदी की धारा को आबादी की ओर मोड़ दिया गया है। ऐसे में नदी के तटीकरण के कार्य की तत्काल आवश्यकता है। इससे बाढ़ की स्थिति से बचने में मदद मिलेगी।

पता चला है कि नदी के तटीकरण एवं आरबीएम की सफाई एवं निकासी के लिए एक जनवरी 2022 को छह माह की अवधि के लिए आरबीएम को हटाने की अनुमति दी गई है। राज्य सरकार द्वारा यह भी निर्देश दिया गया है कि हटाई गई आरबीएम सामग्री का उपयोग नदी तट के निर्माण में किया जाएगा।

एनजीटी ने बेतवा नदी तल से हुए मोरम खनन पर संयुक्त समिति से मांगा जवाब

एनजीटी ने बेतवा नदी तल से हुए मोरम खनन के मामले में संयुक्त समिति से जवाब मांगा है। मामला उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में सरिला तहसील का है। जहां मोरम खनन के मामले में पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन की शिकायत मिली थी। इस संयुक्त समिति में हमीरपुर के जिलाधिकारी और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य शामिल होंगे।

आरोप है कि परियोजना प्रस्तावक के पास आवश्यक पर्यावरण मंजूरी और स्थापित करने के लिए सहमति (सीटीई) नहीं है। न ही संचालन के लिए सहमति (सीटीओ) मिली है। इसके बावजूद नियमों को ताक पर रख नदी तल से खनन किया जा रहा है।

पता चला है कि वहां इसकी बहाली के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है। एनजीटी के समक्ष आवेदन में जानकारी दी गई है कि खनन के लिए भारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जा रहा है। 

गौरतलब है कि मोरम एक गौण खनिज है जो ग्रेनाइट चट्टानों के अपक्षय और विघटन से प्राप्त होता है। वहीं एक अन्य प्रकार का मोरम जिसे 'रेड मोरम' भी कहा जाता है, वो लेटराइट मिट्टी है जो पुरानी अपक्षय सतहों वाली ऊंची जमीन पर पाई जाती है।

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