वायु प्रदूषण का 'सुरक्षित' स्तर भी बच्चों के दिमागी विकास को पहुंचा सकता है नुकसान

रिसर्च के अनुसार लम्बे समय तक सुरक्षित माने जाना वाला प्रदूषण का स्तर भी समय के साथ मस्तिष्क के विकास को प्रभावित कर सकता है

By Lalit Maurya

On: Friday 23 June 2023
 

वायु प्रदूषण जोकि स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। इसके बारे में स्पष्ट हो चुका है कि वो कई बीमारियों की जड़ है। यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और देशों ने इसके लिए अपने-अपने आधार पर कड़े मानक तय किए हैं। अमेरिका में भी एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) ने इसके लिए मानक तय किए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रदूषण के जिस स्तर को लम्बे समय तक सुरक्षित माना जाता था वो भी दिमाग के साथ-साथ स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य समस्याओं को बढ़ा सकता है।

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैलिफोर्निया (यूएससी) के केक स्कूल ऑफ मेडिसिन से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि लम्बे समय तक सुरक्षित माने जाना वाला प्रदूषण का स्तर भी समय के साथ मस्तिष्क के विकास को प्रभावित कर सकता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुए हैं।

हालांकि इससे पहले के शोधों में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि वायु प्रदूषण, न्यूरो डेवलपमेंट यानी की तंत्रिका के विकास में देरी से जुड़ा है। लेकिन क्या वो दिमागी नेटवर्क के विकास में भी दीर्घकालिक बदलाव कर सकता है, इस बारे में अब तक अध्ययन नहीं किया गया है।

इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में 9,497 अमेरिकी बच्चों की दिमागी जांच और स्कैन से जुड़े आंकड़ों का उपयोग किया है। अध्ययन में शामिल सभी बच्चों की उम्र नौ से दस साल के बीच थी। बच्चों के स्कैन से जुड़े यह आंकड़े किशोर मस्तिष्क संज्ञानात्मक विकास (एबीसीडी) अध्ययन से लिए गए हैं

। इस अध्ययन के दौरान बच्चों के दिमाग के कुल 13,824 स्कैन किए गए हैं। गौरतलब है कि यह अमेरिका में बच्चों के मस्तिष्क के स्वास्थ्य पर किया गया अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सूक्ष्म कणों (पीएम2.5), ओजोन (ओ3) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के स्तर का बच्चों के दिमाग में फंक्शनल कनेक्टिविटी (एफसी) पर पड़ने वाले असर की जांच की है।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सूक्ष्म कणों (पीएम2.5), ओजोन (ओ3) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के स्तर का बच्चों के दिमाग में फंक्शनल कनेक्टिविटी (एफसी) पर पड़ने वाले असर की जांच की है। अध्ययन में विशेषज्ञों ने पाया कि वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने वाले बच्चों के मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों के बीच जुड़ाव में महत्वपूर्ण बदलाव आ गए थे। शोधकर्ताओं को जहां दिमाग के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से अधिक कनेक्शन मिले, वहीं अन्य में सामान्य से कम जुड़ाव सामने आया है।

कैसे बच्चों के दिमागी विकास को प्रभावित कर रहा है प्रदूषण

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डेविन एल कॉटर का कहना है कि, "अमेरिका में औसतन देखें तो वायु प्रदूषण का स्तर काफी कम है, लेकिन इसके बावजूद भी हम मस्तिष्क पर इसके महत्वपूर्ण प्रभावों को देख रहे हैं।"

उनके मुताबिक मस्तिष्क के विकास के सामान्य प्रक्षेप पथ से किसी भी दिशा में विचलन, चाहे वो मस्तिष्क के नेटवर्क में बहुत अधिक कनेक्टिविटी हो या उनके जुड़ाव में कमी हो, वो आगे चलकर भविष्य में उसके विकास के लिए हानिकारक हो सकता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार मस्तिष्क के अलग-अलग क्षेत्रों के बीच यह संचार हमें अपने दिन के लगभग हर पल को नेविगेट करने में मदद करता है। किस तरह से हम अपने परिवेश के बारे में जानते हैं, उससे लेकर हम क्या सोचते या महसूस करते हैं। इनमें से कई बातों का महत्वपूर्ण संबंध नौ से 12 साल की उम्र के बीच विकसित होता है। जो इस बात को प्रभावित कर सकता है कि बच्चों में सामान्य या असामान्य संज्ञानात्मक और भावनात्मक विकास होता है या नहीं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बच्चों के दिमागी विकास का दो वर्षों तक अध्ययन किया था। साथ ही वो जिस जगह रह रहे थे उन्होंने उस क्षेत्र में मौजूद पीएम 2.5, ओजोन और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर से जुड़े आंकड़े भी एकत्र किए थे।

उन्होंने बच्चों के दिमागी कनेक्टिविटी और प्रदूषण के स्तर में सम्बन्ध को जांचने के लिए सांख्यिकीय तकनीकों का उपयोग किया था। जिससे यह समझा जा सके कि वायु प्रदूषण का स्तर समय के साथ दिमाग के अलग-अलग हिस्सों के बीच कनेक्टिविटी में बदलावों को कैसे प्रभावित कर रहा है। या फिर यह कह सकते हैं कि क्या ज्यादा प्रदूषण के संपर्क में आने से इन बच्चों का दिमाग अलग तरह से विकसित हो रहा था।

रिसर्च के अनुसार पीएम 2.5 का अधिक स्तर दिमाग के क्षेत्रों के बीच फंक्शनल कनेक्टिविटी में सापेक्ष वृद्धि से जुड़ा था। वहीं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का अधिक संपर्क बच्चों के दिमाग में हिस्सों के बीच कनेक्टिवित में आई कमी से जुड़ा था। इसी तरह ओजोन के संपर्क में आने से मस्तिष्क के कॉर्टेक्स के भीतर कनेक्शनों में जुड़ाव अधिक था।

वहीं कॉर्टेक्स और अन्य हिस्सों जैसे एमिग्डाला और हिप्पोकैम्पस के बीच कनेक्शन कम देखे गए थे। गौरतलब है कि एमिग्डाला, भय, डर, खतरे, उत्तेजना, चिंता, अवसाद आदि से जुड़ी जानकारियों को प्रोसेस करता है। वहीं हिप्पोकैम्पस दीर्घकालीन स्मृति व स्थानिक दिशा-निर्देशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मोटे तौर पर देखें तो मस्तिष्क के यह महत्वपूर्ण हिस्से भावना, सीखने की क्षमता, स्मृति और अन्य जटिल संज्ञानात्मक कार्यों में शामिल होते हैं।

हालांकि यह अध्ययन अमेरिकी बच्चों पर किया गया था, लेकिन यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश के कई क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की स्थिति उनसे कहीं ज्यादा खराब है। ऐसे में भारतीय बच्चों के दिमागी विकास पर इस बढ़ते प्रदूषण का क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसका अंदाजा आप स्वयं ही लगा सकते हैं।

भारत में वायु प्रदूषण के बारे में ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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