नवजातों में कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है, गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण का संपर्क

गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क से आने से नवजातों के शरीर में मौजूद प्रोटीन में बदलाव हो सकता है, जो 'ऑटोफैगी' जैसी कोशिकीय प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है

By Lalit Maurya

On: Friday 15 September 2023
 
फोटो: पिक्साबे

गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण का संपर्क नवजातों में आगे चलकर कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है। वायु प्रदूषण एक ऐसा खतरा है जो हमारे स्वास्थ्य को हमारे अनुमान से कहीं ज्यादा प्रभावित कर रहा है।

शरीर पर जितना ज्यादा हम इसके प्रभावों को समझते हैं, इससे जुड़े उतनी ही नई जानकारियां हमारे सामने आती रहती है। इस बारे में किए गए एक नए अध्ययन से पता चला है कि नवजात के गर्भ में रहते हुए वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से उनके शरीर में मौजूद प्रोटीन में बदलाव आ सकता है। जो कोशिकाओं से जुड़ी 'ऑटोफैगी' जैसी प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है।

बता दें कि 'ऑटोफैगी' एक प्राकृतिक और आवश्यक कोशिकीय प्रक्रिया है, जो हमारी कोशिकाओं के भीतर एक रीसाइक्लिंग प्रणाली की तरह काम करती है। यह कोशिका के क्षतिग्रस्त हिस्सों को साफ करके उसे स्वस्थ रखती है। यह प्रक्रिया कोशिकाओं को स्वास्थ्य रखने में मदद करती है और जरूरत पड़ने पर ऊर्जा प्रदान करती है। साथ ही कीटाणुओं और रोगाणुओं जैसे घुसपैठियों को रोकने में मदद करती है।

अध्ययन और स्विट्जरलैंड की यूनिवर्सिटी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल की शोधकर्ता डॉक्टर ओल्गा गोरलानोवा के मुताबिक स्वस्थ नवजात शिशु गर्भावस्था के दौरान अपनी मां के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने पर अलग तरह से प्रतिक्रिया कर सकते हैं। इससे पता चलता है कि कुछ बच्चे दूसरों की तुलना में वायु प्रदूषण के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील होते हैं, भले ही वे ऐसे स्थानों पर पैदा हुए हों जहां प्रदूषण का स्तर कम था। इस अध्ययन के नतीजे मिलान में यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी की इंटरनेशनल कांग्रेस के दौरान जारी किए गए हैं।

गौरतलब है कि डॉक्टर गोरलानोवा और उनके सहयोगियों द्वारा इससे पहले किए अध्ययन में सामने आया है कि गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से नवजातों में फेफड़े और प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित हो सकती है।

वहीं अपने इस नवीनतम अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने उन प्रोटीनों की जांच की है जो 'ऑटोफैगी', कोशिकाओं की उम्र बढ़ने और उनके पुनर्निर्माण जैसी प्रक्रियाओं से जुड़े हैं। साथ ही उन्होंने यह भी समझने का प्रयास किया है कि जन्म से पहले वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से इन प्रोटीनों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।

किस प्रोटीन को कैसे प्रभावित करता है वायु प्रदूषण

इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने 449 स्वस्थ नवजात शिशुओं के गर्भनाल में मौजूद रक्त और उसमें पाए गए 11 प्रोटीनों का अध्ययन किया है। साथ ही उन्होंने इस बात की भी जांच की है कि गर्भावस्था के दौरान माएं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर (पीएम10) के कितने महीन कणों के संपर्क में आई थी।

ये कण वाहनों से निकले धुएं, टायर और ब्रेक के घिसाव और धुएं जैसे स्रोतों से पैदा हुए थे। उन्होंने पाया कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पीएम10 के कण 'ऑटोफैगी' और उससे सम्बंधित प्रोटीन में आते बदलावों से जुड़े थे।

निष्कर्ष से पता चला है कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क में आने से एसआइआरटी1 और आईएल-8 प्रोटीन की गतिविधि में कमी आई थी और यह बेकलिन-1 प्रोटीन के स्तर में वृद्धि से जुड़े थे। जो ऑटोफैगी की शुरूआत में अहम भूमिक निभाते हैं। वहीं प्रोटीन एसआइआरटी1 तनाव से निपटने के साथ-साथ सूजन और बढ़ती उम्र को नियंत्रित करने में मदद करता है। वहीं आईएल-8 नामक प्रोटीन जो सूजन से जुड़ी कुछ कोशिकाओं में काम करता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार साथ ही यह अध्ययन इस बात की पुष्टि भी करते हैं कि जिस तरह मानव कोशिकाएं, वायु प्रदूषण के प्रति प्रतिक्रिया करती हैं, उसमें ऑटोफैगी से संबंधित तंत्र भी शामिल हैं।

बता दें कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब नवजातों में वायु प्रदूषण के बढ़ते दुष्प्रभावों को उजागर किया गया है। इससे पहले भी कई शोधों में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि बढ़ता प्रदूषण नवजातों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर रहा है। ऐसा ही कुछ हाल ही में जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में सामने आया था, जिसमें पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण के सूक्ष्म कणों के संपर्क में आने से नवजातों का वजन सामान्य से कम रह सकता है, जो जन्म के तुरंत बाद उनकी मृत्यु का कारण बन सकता है।

रिसर्च के मुताबिक प्रदूषण के यह महीन कण सांस के जरिए गर्भवती महिलाओं के फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा होता है। इसके साथ-साथ यह हार्मोन के स्तर को भी प्रभावित करता है, जिसका सीधा असर भ्रूण के विकास पर पड़ता है। इसकी वजह से जन्म के समय नवजातों का वजन सामान्य से कम रह जाता है।

भारत में भी नवजातों के लिए बड़ा खतरा बन चुका है वायु प्रदूषण

इस तरह जर्नल प्लोस मेडिसिन में प्रकाशित एक अन्य शोध में सामने आया है कि वायु प्रदूषण के चलते हर साल दुनिया भर में करीब 59 लाख नवजातों का जन्म समय से पहले हो जाता है। इतना ही नहीं इसके चलते करीब 28 लाख शिशुओं का वजन जन्म के समय सामान्य से कम था। वहीं जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक शोध के हवाले से पता चला है कि वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से गर्भपात का खतरा करीब 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा किए ऐसी ही एक शोध से पता चला है कि बढ़ता वायु प्रदूषण दिमाग के शुरूआती विकास पर असर डाल सकता है।

एक रिसर्च के मुताबिक भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण हर साल दो लाख से ज्यादा अजन्मों को गर्भ में मार रहा है। अध्ययन से पता चला है कि वातावरण में पीएम 2.5 का हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से स्टिलबर्थ का खतरा 11 फीसदी तक बढ़ सकता है।

देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर बढ़ता प्रदूषण दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है। आज दुनिया की 99 फीसदी से ज्यादा आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो उन्हें हर दिन मौत की ओर ले जा रही है।

ऐसा ही कुछ भारत में रहने वाले लोगों के साथ हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 130 करोड़ भारतीय आज ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं, जहां प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी दिशानिर्देशों से कहीं ज्यादा है। ऐसे में यदि हर भारतीय साफ हवा में सांस ले तो उससे जीवन के औसतन 5.3 साल बढ़ सकते हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा दिल्ली-एनसीआर में देखने को मिलेगा जहां रहने वाले हर इंसान की आयु में औसतन 11.9 वर्षों का इजाफा हो सकता है।

हालांकि विडम्बना देखिए कि इसके बढ़ते खतरे के बावजूद वायु प्रदूषण को रोकने के लिए 34 फीसदी देशों में जरूरी कानून नहीं हैं। वहीं केवल 33 फीसदी देशों ने वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करने संबंधी दायित्वों को लागू किया है, जबकि केवल 49 फीसदी देशों ने इसे खतरे के रूप में मान्यता दी है।

भारत में वायु गुणवत्ता संबंधी कानून तो हैं, लेकिन वो साफ हवा की गारंटी नहीं देते। इसकी सबसे बड़ी वजहों में से एक जनता में जागरूकता और इच्छाशक्ति की कमी होना है। देखा जाए तो भारत में साफ हवा को संविधान के आर्टिकल 21 के तहत एक संवैधानिक अधिकार बनाया गया है, जिसे एम सी मेहता बनाम भारत सरकार के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किया गया था। हालांकि इसके बावजूद देश में कितने लोग साफ हवा में सांस ले रहे हैं, यह एक गंभीर चिंतन का विषय है।

भारत में वायु प्रदूषण से जुड़ी ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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