भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से बंध बरेठा अभयारण्य में अवैध खनन का खेल, जांच के निर्देश

वहां अवैध खनन और गैरकानूनी गतिविधियों के चलते पर्यावरण को भारी नुकसान होने के साथ-साथ सरकारी खजाने को भी नुकसान हो रहा है

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Saturday 09 March 2024
 
बंध बरेठा अभयारण्य; फोटो: बंध बरेठा वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी, फेसबुक

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और प्रधान मुख्य वन संरक्षक को स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत और भ्रष्टाचार से जुड़े आरोपों की जांच के निर्देश दिए हैं। मामला बंध बरेठा वन्यजीव अभयारण्य के भीतर अवैध खनन और परिवहन से जुड़ा है।

यह अभयारण्य के राजस्थान के भरतपुर से 45 किलोमीटर और उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी से 76 किलोमीटर दूर स्थित है। इसमें अवैध खनन और गैरकानूनी गतिविधियों के चलते पर्यावरण को भारी नुकसान होने के साथ-साथ सरकारी खजाने को भी नुकसान हो रहा है।

इनमें अभयारण्य के भीतर सड़कों को नुकसान, चारदीवारी को तोड़ना, पेड़ों को काटना, बिजली के लिए जनरेटर का अनधिकृत उपयोग, खनन के लिए भारी मशीनरी और क्रेन के उपयोग के साथ ही पत्थर के ब्लॉकों के परिवहन के लिए बड़े पैमाने पर ट्रकों का उपयोग शामिल है।

अदालत ने कहा है कि अधिकारियों ने इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध खनन की पुष्टि की है। इसके लिए न तो पर्यावरण अधिनियम, 1986 के अनुसार उचित पर्यावरण मंजूरी ली गई और न ही जल अधिनियम, 1974, या वायु अधिनियम, 1981 के तहत सहमति ली गई थी।

इसके साथ ही 2016 के सतत रेत खनन और प्रबंधन दिशानिर्देश का भी पालन नहीं किया जा रहा है। इसके चलते वहां की पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहे हैं। इसके अतिरिक्त, वहां क्षेत्र की बहाली के लिए कोई प्रबंधन योजना भी तैयार नहीं की गई थी।

ऐसे में एनजीटी ने मुख्य सचिव और प्रधान मुख्य वन संरक्षक को इस मामले की जांच के लिए दो स्वतंत्र वरिष्ठ विभागीय अधिकारियों को नामित करने का सुझाव दिया है। यह दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ-साथ अवैध खनन की जांच और उसके नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए इसके बारे में कोर्ट को अवगत कराएंगे। इसके साथ ही इस खनन की वजह से सरकारी खजाने को जो नुकसान पहुंचा है यह अधिकारी उसका भी आंकलन करेंगे।

आदेश में कहा गया है कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में तय जुर्माना और सीपीसीबी द्वारा उल्लिखित पर्यावरणीय मुआवजे का मूल्यांकन किया जाना चाहिए और उसकी वसूली डिफॉल्ट इकाइयों से की जानी चाहिए।

इसके अलावा जो वाहन अवैध खनन के लिए उपयोग किए जा रहे हैं उनकों नियमों के तहत जब्त किया जाना चाहिए। साथ ही उन्हें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) या एनजीटी द्वारा तय किए गए दंड या पर्यावरण मुआवजे के भुगतान के बाद ही छोड़ा जाना चाहिए।

एनजीटी ने इस आदेश की प्रतियां राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों, और प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के साथ दोनों राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के सदस्य सचिवों को भी भेजने के निर्देश दिए हैं ताकि वो नियमों के अनुरूप आवश्यक कार्रवाई कर सके। इस मामले में क्या कार्रवाई की गई उसपर एक रिपोर्ट अगले चार सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करनी होगी। मामले की अगली सुनवाई 22 अप्रैल, 2024 को होगी।

लुधियाना सब्जी मंडी में कचरे की स्थिति पर पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोर्ट में सौंपी रिपोर्ट

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने लुधियाना की सब्जी मंडी में अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दों पर अपनी रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट कर दी है। मामला मंडी में कचरे की अनुचित डंपिंग और कूड़ा फैलाने से जुड़ा है।

रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब मंडी बोर्ड को दो महीनों के भीतर ठोस कचरे प्रबंधन के लिए मैकेनिकल कंपोस्टर या कंपोस्ट पिट उपलब्ध कराने थे, लेकिन वे अब तक ऐसा करने में विफल रहे हैं। लुधियाना के जिला मंडी अधिकारी के मुताबिक नगर निगम ने पहले सब्जी मंडी में एक कॉम्पैक्टर स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन आवश्यक जमीन न होने की वजह से इस प्रक्रिया में देरी हुई।

वर्तमान में, मंडी परिसर के भीतर अपशिष्ट प्रसंस्करण के लिए कोई सुविधा मौजूद नहीं हैं, लेकिन मंडी परिसर में अलग से कचरा एकत्र करने की व्यवस्था की गई है।

वहीं लुधियाना नगर निगम के सहायक इंजीनियर का कहना है कि एमसीएल के तकनीकी सलाहकार बायो-मेथेनेशन प्लांट के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने में मंडी बोर्ड की सहायता कर सकते हैं। लुधियाना में नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि एमसीएल ने पहले ही लुधियाना में मंडी बोर्ड को कचरे का उचित प्रबंधन न करने के लिए 37,55,000 रुपये का मुआवजा भरने को कहा था।

एनजीटी के समक्ष आवेदक कपिल देव ने अपने आवेदन में कहा कि बायोडिग्रेडेबल और गैर-बायोडिग्रेडेबल दोनों प्रकार के कचरे को जलाने के बाद जेसीबी का उपयोग करके अवैध रूप से जमीन में डंप किया गया था।

अष्टमुडी और वेम्बनाड-कोल आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिए उठाए गए है कदम: रिपोर्ट

कोल्लम में अधिकारियों ने अष्टमुडी और वेम्बनाड-कोल आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिए कदम उठाए हैं। यह जानकारी केरल सरकार द्वारा दायर एक हालिया रिपोर्ट में सामने आई है। इनके संरक्षण के लिए स्थानीय स्वशासन विभाग, जल संसाधन विभाग, केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केरल राज्य वेटलैंड प्राधिकरण जैसे विभिन्न विभाग एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

इनकी संरक्षण योजना में ऑफलाइन और ऑनलाइन निरीक्षण के साथ-साथ नियामक उपाय और अपशिष्ट उपचार संयंत्र (एसटीपी/ईटीपी/एफएसटीपी) की स्थापना शामिल है। इन आद्रभूमियों को संरक्षित करने के लिए करीब 335.5 करोड़ रुपये का बजट आबंटित किया गया है।

इसका उपयोग कोल्लम के कुरीपुझा और एलमकुलम में सीएसटीपी और चेरथला में एफएसटीपी जैसी परियोजनाओं के लिए किया जाएगा।

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