2023 में 34 फीसदी तक ज्यादा प्रदूषित रहे दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों के महीने: सीएसई

सीएसई के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 के स्तर में गिरावट का जो सिलसिला 2015-17 में शुरू हुआ था वो 2023 की सर्दियों में थम गया

By Lalit Maurya

On: Thursday 04 January 2024
 
सांसों में घुलता जहर बड़ों के साथ-साथ बच्चों के स्वास्थ्य को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है; फोटो: विकास चौधरी/ सीएसई

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने अपने नए विश्लेषण में खुलासा किया है कि साल 2023 में सर्दियों के महीने यानी जनवरी, नवंबर और दिसंबर 2022 में इन महीनों की तुलना में 12 से 34 फीसदी ज्यादा प्रदूषित रहे। कुल मिलकर कहें तो 2023 की सर्दियां कहीं ज्यादा प्रदूषित रही।

वहीं मार्च से जून 2023 के बीच गर्मियों के महीनों को देखें तो वो 2022 में इन महीनों की तुलना में कहीं ज्यादा साफ रहे। आंकड़ों के अनुसार इस दौरान प्रदूषण 14 से 36 फीसदी कम रहा। वहीं यदि फरवरी, जुलाई, सितंबर और अक्टूबर को देखें तो उस दौरान वायु गुणवत्ता में बहुत ज्यादा अंतर नहीं देखा गया। मानसून के महीने भी सामान्य से अधिक साफ रहे।

सीएसई के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के महीन कणों पीएम 2.5 के स्तर में गिरावट का जो सिलसिला 2015-17 में शुरू हुआ था वो 2023 में सर्दियों के दौरान थम गया। रिपोर्ट में इसके लिए कमोबेश मौसम सम्बन्धी कारकों को जिम्मेवार माना है।

2023 के दौरान इस क्षेत्र में गर्मी और मानसून का मौसम सामान्य से कहीं ज्यादा साफ रहा। सर्दियों की बात करें तो इस साल उत्तरी राज्यों में पराली जलाने से हुआ प्रदूषण पिछले वर्षों की तुलना में कम रहा। लेकिन सर्दियों के दौरान सतह के पास हवा की गति असामान्य रूप से कम थी। गौरतलब है कि नवंबर 2023 के दौरान दिल्ली में हवा की रफ्तार 9.8 मीटर प्रति सेकेंड थी, जो पिछले छह वर्षों में सबसे कम रही।

हवा की मंद गति का मतलब है कि स्थानीय प्रदूषण, जो पहले से ही बहुत अधिक था वो वहीं फंसकर रह गया, जिसकी वजह से इस क्षेत्र में सर्दियों के दौरान प्रदूषण के स्तर में इजाफा दर्ज किया गया।

दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण में मौसम का भी रहा हाथ

इस बारे में सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी का कहना है कि, "सर्दियों में असामान्य परिस्थितियों के चलते, पूरे वर्ष के औसत प्रदूषण का स्तर ऊंचा रहा और यहां तक कि स्थिति पहले से कहीं ज्यादा बदतर हो गई। इसकी वजह से प्रदूषण में जो लम्बे समय से गिरावट का सिलसिला चला आ रहा था वो थम गया।"

उनके मुताबिक इस साल दिल्ली के प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान कम होने के साथ, नवंबर में अधिक बारिश और कम सर्द होने की वजह से वार्षिक स्तर में और सुधार आना चाहिए था। लेकिन दुर्भाग्य से, मौसम की खराब स्थिति, जैसे हवा की धीमी रफ्तार, ने हालात को और बदतर बना दिया, क्योंकि वहां स्थानीय प्रदूषण पहले से ही बहुत अधिक था। ऐसे में उनके अनुसार दिल्ली को उत्सर्जन कम करने और राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

सीएसई द्वारा जारी इस नई रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में 2015-17 के बाद से पीएम 2.5 के स्तर में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि यह गिरावट की  सकारात्मक प्रवृत्ति 2023 में आकर रुक गई। यदि 29 दिसंबर 2023 तक के आंकड़ों को देखें तो 2023 के दौरान दिल्ली में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत स्तर 100.9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया, जो 2022 की तुलना में करीब दो फीसदी अधिक है। 

आंकड़ों के मुताबिक जहां 2018 में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत स्तर 115.8 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया था वो 2019 में 109.2, 2020 में 95.1, 2021 में 106.2, और 2022 में घटकर 98.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रह गया। विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि एक तरफ जहां गर्मियों में हवा स्वच्छ होती जा रही हैं, वहीं सर्दियां के दौरान प्रदूषण के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई है।

इसी तरह यदि 2020 की तुलना में देखें तो जो वर्ष महामारी की वजह से असामान्य रूप से साफ रहा उसकी तुलना में प्रदूषण का स्तर छह फीसदी अधिक दर्ज किया गया। हालांकि इसके बावजूद 2023 की सर्दियों में प्रदूषण का औसत स्तर 2018 से 2022 के बीच सर्दियों में प्रदूषण के औसत स्तर से कम रहा।

वहीं एक अक्टूबर से 29 दिसंबर 2023 के बीच, देखें तो दिल्ली में केवल तीन दिन वायु गुणवत्ता 'संतोषजनक' रही। वहीं इस दौरान एक भी दिन ऐसा नहीं रहा जब वायु गुणवत्ता को बेहतर कहा जा सके। यदि पिछले दो वर्षों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो इसी दौरान इन दिनों की संख्या कहीं ज्यादा थी। 2023 में 13 नवंबर को यानी दीवाली के अगले दिन प्रदूषण का स्तर अपने शिकार पर 349 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया था। जो पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम है। इससे पहले 2022 में यह 401 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर जबकि 2019 में 546 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया था।

2023 में 24 दिनों तक रहा सांसो पर आपातकाल

रिपोर्ट की माने तो सर्दियों में हुए प्रदूषण ने पूरे वर्ष के औसत को प्रभावित किया है। 2023 में, करीब 151 दिन वायु गुणवत्ता, राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों पर खरी रही। जो करीब-करीब 2021 जैसी ही स्थिति है। वहीं 2020 में जिस साल लॉकडाउन लगा था उस साल यह आंकड़ा 174 दिन दर्ज किया गया था। वहीं 2022 में केवल 117 दिन ही प्रदूषण का स्तर मानकों पर खरा उतरा था। इनमें से ज्यादातर दिन गर्मी और मानसून के मौसम के दौरान देखे गए।

हालांकि 2023 में 'बेहतर' वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या में उल्लेखनीय रूप से गिरावट देखी गई। 2022 में 41 दिनों की तुलना में 2023 में केवल 24 दिन वायु गुणवत्ता का स्तर 50 या उससे कम रहा। इस बीच 2023 में 'बेहद खराब' या 'गंभीर' श्रेणी के वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या 107 रिकॉर्ड की गई। इनमें वो 24 दिन भी शामिल हैं जब दिल्ली-एनसीआर में पीएम2.5 का स्तर 'गंभीर' यानी आपात स्थिति में पहुंच गया था।

वहीं 2022 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो इस दौरान 106 दिन 'बेहद खराब' या 'गंभीर' श्रेणी के थे। वहीं केवल नौ दिनों में ही प्रदूषण का स्तर आपात स्थिति तक पहुंचा था। देखा जाए तो यह आंकड़ा 2023 की तुलना में आधे से भी कम है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले छह वर्षों के दौरान 2023 में धुंध की सबसे अधिक घटनाएं सामने आई हैं। दिल्ली में आम तौर पर नवंबर और दिसंबर के बीच दो बार स्मॉग की घटनाओं का सामना करना पड़ता है। इसका मतलब है कि लगातार कम से कम तीन दिनों तक हवा की गुणवत्ता 'गंभीर' श्रेणी में पहुंच जाती है। 2023 में, 24 दिसंबर तक, पहले से ही ऐसे तीन एपिसोड रिकॉर्ड किए गए। वहीं 30 दिसंबर को, दिल्ली ने लगातार तीसरे दिन 'गंभीर' वायु गुणवत्ता का अनुभव किया था, जो शहर में स्मॉग की चौथी घटना की शुरुआत थी।

ऐसे में विश्लेषण के मुताबिक दिल्ली में साफ हवा के लिए वाहनों, उद्योगों, अपशिष्ट, ठोस ईंधन और निर्माण से होने वाले प्रदूषण में भारी कटौती करने की आवश्यकता है। इससे वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने में मदद मिलेगी और सर्दियों के दौरान खराब मौसम के कारण प्रदूषण में होने वाली वृद्धि को रोका जा सकेगा।

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