सर्दी में वायु प्रदूषण के हॉटस्पॉट क्यों बन रहे हैं बिहार के शहर

सर्दी के मौसम की शुरुआत के साथ गंगा के मैदानी भाग में बसे उत्तर बिहार के शहरों पर वायु प्रदूषण कहर बरपा रहा है जो “हेल्थ इमरजेंसी” से कम नहीं है

By Kushagra Rajendra

On: Monday 09 January 2023
 
मोतीहारी में हाइवे के किनारे कचरे को जलाया जा रहा है। फोटो : शशि शेखर

राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक लागू होने के बाद से ही दिल्ली का वायु प्रदूषण मीडिया और आमजन के बीच बहस का केंद्र रहा है। लेकिन 2022 में मुंबई सरीखे समुद्रतटीय महानगरों तथा लचर औद्योगिक विकास और पिछड़ी अर्थव्यवस्था वाले बिहार के अनेक छोटे शहरों ने खराब वायु के मामले में दिल्ली सरीखे शहरों को पीछे छोड़ दिया। हालांकि मुंबई शहर की गिरती वायु गुणवत्ता के वाजिब कारण गिनाए जा रहे हैं, जिसमें स्थानीय वाहनों, औद्योगिक उपक्रमों तथा निर्माण कार्य से निकलने वाले प्रदूषण के अलावा चक्रवात मंदौस के बाद हवा की गति का शांत हो जाना शामिल है। यहां तक की वैश्विक मौसमी परिस्थिति ला-लीना से भी इसके तार जोड़े जा रहे हैं।

मुंबई के अलावा इस साल सर्दी के मौसम की शुरुआत के साथ गंगा के मैदानी भाग में बसे उत्तर बिहार के शहरों पर वायु प्रदूषण कहर बरपा रहा है जो “हेल्थ इमरजेंसी” से कम नहीं है। इन छोटे शहरों की वायु गुणवत्ता लगातार गंभीर श्रेणी (एक्यूआई 400 या उससे ऊपर) में बनी हुई है, जो स्वस्थ लोगों को भी गंभीर रूप से बीमार करने के लिए काफी है, साथ-साथ श्रम उत्पादकता को बुरी तरह प्रभावित करती है। जाड़े की शुरुआत से ही गंगा के मैदानी इलाकों के शहर वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति एक पहेली जैसी है। पहेली इसलिए भी कि बिहार का मैदानी इलाका लगभग उद्योगविहीन है और उसकी अर्थव्यवस्था केवल परम्परागत कृषि पर टिकी  हुई है और यहां वायु प्रदूषण का प्रथम दृष्ट्या कोई स्रोत दिखता नहीं है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित तमाम केन्द्रीय एजेंसियां के कारणों के पड़ताल में लगी हैं और छिटपुट कयास लगाने के अलावा कोई ठोस प्रतिक्रिया आना अभी भी बाकी है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राष्ट्रीय मॉनिटरिंग नेटवर्क में बिहार के अनेकों नेटवर्क के इसी साल शामिल होने का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि मौजूदा आंकड़ों के आधार पर इस समस्या से निवारण की रणनीति में मदद मिलेगी।

Photo credit: Yadvendraवायु प्रदूषण की चपेट में आए बिहार के ये अनजान से शहर वैसे पिछले साल भी कभी-कभार खबरों में आए जरूर, लेकिन कभी वायु प्रदूषण के बहस के केंद्र में नहीं आ पाए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल द्वारा दिए गए एक इंटरव्यू में सर्वाधिक प्रदूषित शहरों के रूप में मोतिहारी, दरभंगा और कटिहार सरीखे शहरों के नाम का जिक्र आने के बाद गंगा के मैदानी इलाकों की इस व्यापक समस्या ने राष्ट्रीय पटल पर सभी का ध्यान खींचा। तब से लेकर अब तक पूरे प्रदेश, खासकर गंगा के मैदानी इलाकों में एक्यूआई अपने उच्चतम स्तर (गंभीर) पर बरकरार है। तब से कभी कटिहार, कभी सीवान, मोतिहारी, बेगुसराय तो कभी दरभंगा देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शुमार होते आ रहे हैं। सर्दी के साथ (नवंबर से) एक्यूआई का जो गिरना शुरू हुआ वो नए साल तक आते-आते और विकराल रूप लेता चला गया।

सर्वाधिक प्रदूषित 10 शहर बिहार से 

18 दिसम्बर को देश के दस सर्वाधिक वायु प्रदूषित शहरों की सूची में सारे के सारे शहर बिहार के थे और उसके बाद तो परिस्थितियां सुधरने के बजाय और बिगड़ी ही हैं। वहीं नववर्ष के पहले दिन के सीपीसीबी द्वारा जारी भारत के सबसे प्रदूषित 176 शहरों की सूची में ऊपर के सभी बारह शहर बिहार के थे, जहां एक्यूआई 400 के ऊपर (गंभीर श्रेणी) रिकॉर्ड किया गया।

इन शहरों का वायु प्रदुषण का स्तर परम्परागत रूप से सर्वाधिक प्रदूषित दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद से कहीं अधिक, गंभीर और खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। हालांकि उसी दिन बिहार से सटे उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों के शहर बिहार के मुकाबले अपेक्षाकृत अच्छी वायु गुणवत्ता (वाराणसी-106, प्रयागराज- 165, गोरखपुर-201, लखनऊ- 264) के थे। जबकि पश्चिम बंगाल के आसनसोल (341) और सिलीगुड़ी (242) को छोड़, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आकड़ों के अनुसार, झारखण्ड के प्रमुख शहरों (रांची, जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो) में वायु प्रदूषण का आंकड़ा इस मौसम में 100 से 200 के बीच ही रहा (सीपीसीबी  के मॉनिटरिंग नेटवर्क में झारखण्ड का एक ही केंद्र है)।

बिहार और इससे सटे बंगाल में आश्चर्यजनक रूप से बढ़े वायु प्रदूषण के कारणों पर प्रदूषण नियंत्रण से जुड़ी एजेंसियां भी कयास लगाती ही दिखीं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मानव जनित निर्माण कार्य और सड़क की धूल, गाड़ियां, घर में जलाये जाने वाले लकड़ी के चूल्हों, कृषि अपशिष्ट और खुले में कचरे के जलने और औद्योगिक इकाई आदि से निकले धुएं को कारण के रूप में चिन्हित किया। इसके अलावा सर्दी में तापमान के इन्वरसन और वायु के न्यूनतम बहाव तथा भौगोलिक परिस्थितियां जैसे जलोढ़ मिट्टी, बाढ़ आदि के कारण उपजी धूल को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना। पर ये सारी स्थितियां एक्यूआई में आए सामान्य से डेढ़ से दोगुने बढ़ोतरी के लिए काफी नाकाफी जान पड़ती हैं।

भारत के एक्यूआई को मापने के लिए राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक सितंबर 2014 में नई दिल्ली में लॉन्च किया गया था, जिसकी शुरुवात भारत के छह शहरों- नई दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पुणे और अहमदाबाद में एक सतत निगरानी प्रणाली के रूप हुई और आज इसका दायरे में देश के लगभग 210 से अधिक शहर शामिल हैं। राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक में छह एक्यूआइ्र श्रेणियां निर्धारित की हैं: अच्छा, संतोषजनक, मध्यम प्रदूषित, खराब, बहुत खराब और गंभीर। हवा में मौजूद आठ प्रमुख प्रदूषकों- पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5 और पीएम10), ओजोन (ओ3), कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ), नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (एनओ2), सल्फर डाईऑक्साइड (एसओ2), लेड (पीबी) और अमोनिया (एनएच3) के उत्सर्जन को मापकर एक्यूआई की गणना की जाती है। पीएम2.5 और पीएम10 वायु गुणवत्ता को सबसे अधिक और व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं। पीएम2.5 मुख्य रूप से जलने और रासायनिक प्रक्रिया से गैस के सूक्ष्म कणों में बदल जाने से बनते हैं, वही अपेक्षाकृत बड़े कण पीएम10 यांत्रिक प्रक्रिया और टूट फुट से बनते हैं। दरअसल एक्यूआई इन आठ में से किसी एक प्रदूषक का सबसे ज्यादा वाला सबइंडेक्स वैल्यू होता है।

पीएम2.5 प्रदूषण की बड़ी वजह 

बिहार के एयर क्वॉलिटी के पिछले साल के अक्टूबर से अब तक के आंकड़े देखें तो पार्टिकुलेट मैटर पीएम10 और पीएम2.5 सहित अन्य प्रदूषकों जैसे सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि में बेतहाशा वृद्धि बिहार के लगभग सारे शहरों और यहां तक गैर शहरी इलाकों में जिसमें मंगुराहा भी शामिल है, एक साथ हुई है। यह वृद्धि सर्दी की शुरुआत में तापमान के इन्वरसन से पृथ्वी की सतह के आसपास बने “स्थायी वायुमंडल” जो कि वायुमंडल में प्रदूषण के फैलाव को रोक देता है, के कारण हुई है। अत्यंत कम गति से हवा का बहाव भी एक्यूआई में आयी गिरावट का एक प्रमुख कारण रहा है। बिहार के नवम्बर से अब तक के एक्यूआई के आंकड़े स्पष्ट रूप से पीएम2.5 जनित है। यह मानव जनित उन कारणों की तरफ इशारा करते हैं, जिसमें किसी भी पदार्थ का व्यापक स्तर पर जलना शामिल। ऐसे में पहेली यह है कि आखिर बिहार के लगभग उद्योगविहीन गंगा का मैदानी इलाके में पीएम2.5 के कौन से मानव जनित स्रोत हैं?

बिहार के गंगा का मैदानी इलाका भारत के सबसे सघन आबादी का क्षेत्र है जहां बेतरतीब और बेतहाशा फैलता शहरी क्षेत्र आधारभूत व्यवस्था की कमी से जूझ रहा है। इसमें म्युनिसिपल वेस्ट तथा मेडिकल वेस्ट निस्तारण की आधारभूत संसाधन का सिरे से अभाव और व्यापक कुव्यवस्था भी शामिल है। बिहार के लगभग सभी शहर ब्रिटिश दौर के प्रशासनिक शहर हैं या पुराने बाजार/कस्बे रहे हैं। यहां की आंतरिक सड़कें वर्तमान यातायात जरूरतों के लिए नाकाफी हैं। नतीजतन, सभी शहर छोटे वाहन, कार, मोटरसाइकिल और टेंपो के ट्रैफिक जाम से ग्रसित हैं और बिना किसी अपवाद के लगातार छोटे स्तर पर डीजल और पेट्रोल के धुंए के स्रोत है। 

एक अनुमान के मुताबिक बिहार में प्रतिदिन औसतन 36 मीट्रिक टन मेडिकल कूड़ा निकलता है, जिसका अधिकांश हिस्सा खुले में जलाया जाता है। वहीं शहरों के बाईपास म्युनिसिपल कूड़े के निस्तारण के केंद्र है, जिससे निजात खुले में जला के पाया जा रहा है। हाल के वर्षों में कुछ शहरों में विकेंद्रीकृत बायोमेडिकल इन्सीनरेटर लगाए गए हैं जो छोटे-छोटे कस्बे में फैले मेडिकल उद्योग से निकले कचरे के लिए नाकाफी हैं।

धुंए के ये तीनों प्रमुख स्रोत (शहरी ट्रैफिक, मेडिकल और म्युनिसिपल कूड़े के जलने से व्यापक रूप निकलने वाला धुंआ) हर शहर में समान रूप से व्याप्त है, चाहे यूपी से सटे मोतिहारी, बेतिया, छपरा या फिर गंगा के किनारे बसे हाजीपुर, बेगुसराय, समस्तीपुर या फिर सुदूर पूर्णिया, कटिहार या सहरसा हो। भौगोलिक और मौसमी कारण पूरे गंगा के मैदानी क्षेत्र में समान रूप से प्रदूषण में बढ़ोतरी करता है। परंतु मैदानी इलाकों में बसे शहर वायु प्रदूषण खासकर सूक्ष्मतम कण पीएम2.5 सहित अन्य रासायनिक उत्सर्जन के छोटे-छोटे और स्थानीय संकेंद्रीय स्रोत के रूप में काम कर रहे हैं।

शहरी ट्रैफिक और कूड़े के जलने से उत्पन्न धुएं में उपस्थित सूक्ष्म कण (पीएम2.5) या तो वायुमंडल में सीधे मिल रहे हैं या धुएं के जटिल मिश्रण से बारीक कण में बदल रहे हैं। अक्टूबर- नवम्बर में धान के पराली के जलने से निकले धुएं का भी खराब एक्यूआई में योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता, पर अगर वायु प्रदूषण के हालत जनवरी के शुरुवात तक गंभीर बनी हुई हुई है तो पराली का जलना इसका मुख्य कारण प्रतीत नहीं होता। हालांकि मंगुराहा (पश्चिमी चंपारण) को छोड़कर बिहार में उपलब्ध सारे वायु प्रदूषण मापन केंद्र शहर में है। मंगुराहा के आंकड़े, जिसमें सर्दी में आई एक्यूआई में बढ़ोतरी शहरों जैसा ही है, पर पीएम10 का योगदान ज्यादा है।

सीपीसीबी के पिछले कुछ महीनों के उपलब्ध एयर क्वॉलिटी के आंकड़े और स्थानीय शहरों का मुआयना के आधार पर ये बात कही जा सकती है कि भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियां सर्दी में वायु प्रदूषण को काफी हद तक बढ़ा देती है, जो शहरी क्षेत्र में ट्रैफिक और कूड़े के जलने से लगातार निकलते धुएं से मिलकर बिहार के मैदानी इलाकें के शहरों को पॉल्यूशन हॉटस्पॉट में बदल दे रही है।   

तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत

ऐसे में जरूरत है त्वरित स्तर पर प्रथम दृष्ट्या प्रदूषण स्रोतों जैसे शहरों के आंतरिक ट्रैफिक को दुरुस्त किया जाए, म्युनिसिपल कचरे पर सरकार श्वेत पत्र जारी कर उनके निष्पादन के तरीके ढूंढे, खुले में जलाने पर रोक हो, मेडिकल कचरे पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की पिछले कई सालों के प्रयासों को अमल में लाया जाए। साथ ही साथ समुचित आकड़ों के आधार पर प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों और उनके समयक समाधान को सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है। उद्योगविहीन बिहार के शहरों में आई वायु प्रदूषण की सुनामी इस बात की ओर स्पष्ट इशारा करती है कि प्रकृति के मूल तत्वों का प्रदूषण को सोखने या निस्तारित करने की क्षमता में गुणात्मक रूप से कमी आ रही है, चाहे वो वायुमंडल हो या नदियां, तालाब। यहां तक कि समुद्र भी अब वायु प्रदूषण या जल प्रदूषण को निस्तारित करने या सोखने में नाकाफी साबित हो रहे हैं। इन सब के मूल मानवजनित प्रदूषण है। इसका समाधान है बिना किसी किंतु परंतु, लाग लपेट के प्रदूषण पर लगाम।

(लेखक एमिटी यूनिवर्सिटी हरियाणा में स्कूल ऑफ अर्थ एंड एनवायरमेंटल  साइंस के प्रमुख हैं)

 

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