हिंद महासागर में लगातार बढ़ रहा है माइक्रोप्लास्टिक, समुद्री जीवों के लिए बना आफत: शोध
हिंद महासागर के निकट-सतह के पानी में प्रति घन मीटर में 50 माइक्रोप्लास्टिक कणों और फाइबर की औसत मात्रा पाई गई, जो खुले महासागर में अब तक पाई गई मात्रा से बहुत अधिक है।
On: Monday 11 July 2022
शोधकर्ताओं ने पानी के नमूनों से माइक्रोप्लास्टिक के कणों की पहचान कर उसे अलग करने के लिए एक नई विधि बनाई है। इसका उपयोग करके उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में पानी के नमूनों की जांच की गई।
माइक्रोप्लास्टिक के कण छोटे हो सकते हैं, लेकिन वे लोगों और पर्यावरण के लिए समस्या पैदा करते हैं। प्लास्टिक के वे कण जिनका व्यास एक माइक्रोन और पांच मिलीमीटर के बीच होता है। पिछले तरीकों से उनका सटीक विश्लेषण करना एक बड़ी चुनौती थी।
अब एक नई विधि, लेजर डायरेक्ट इन्फ्रारेड (एलडीआईआर) रासायनिक इमेजिंग का उपयोग करके माइक्रोप्लास्टिक का काफी बेहतर विश्लेषण किया जा सकता है।
डॉ. डेनियल प्रोफ्रॉक के नेतृत्व में अकार्बनिक पर्यावरण रसायन विज्ञान विभाग में प्रोटोकॉल विकसित किया गया था। माइक्रोप्लास्टिक कणों के रासायनिक गुणों का वर्णन उनके इंफ्रारेड लाइट के अवशोषण पर आधारित है।
अध्ययनकर्ता डॉ. लार्स हिल्डेब्रांट बताते हैं कि इस अध्ययन में, क्वांटम कैस्केड लेजर नामक उपकरण का उपयोग किया गया है, जिसने पानी के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक कणों के विश्लेषण में काफी मदद मिली। यह विधि तेज और स्वचालित है, जो भविष्य की मानक प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है।
पानी की ऊपरी परतों में मिली माइक्रोप्लास्टिक की भारी मात्रा
उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर के निकट-सतह के पानी में प्रति घन मीटर पानी में 50 माइक्रोप्लास्टिक कणों और फाइबर की औसत मात्रा पाई गई, जो अप्रत्याशित रूप से खुले महासागर के लिए बहुत अधिक है। प्लास्टिक के सबसे आम प्रकार पेंट कण 49 प्रतिशत थे, जो हो सकता है जहाज की पेंटिंग के घर्षण से उत्पन्न हुए थे, इसके बाद पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) की 25 प्रतिशत की हिस्सेदारी देखी गई। अन्य बातों के अलावा, पीईटी का उपयोग सिंथेटिक कपड़ों में पॉलिएस्टर माइक्रोफाइबर के रूप में और पेय की बोतलों के उत्पादन के लिए किया जाता है।
यह कपड़े धोने के माध्यम से पर्यावरण में पहुंचता है। माइक्रोप्लास्टिक कण भी पीईटी बोतलों के टूटने से बनते हैं, टूटने की यह घटना यांत्रिक तनाव या सौर विकिरण के कारण होती है। हाल के वर्षों से पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। प्लास्टिक के कण अब लगभग सभी जांचे गए जीवों में पाए गए हैं।
सह-अध्ययनकर्ता फादी एल गारेब कहते हैं कि हमारे नतीजे बताते हैं कि पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीस्टाइनिन और पॉलीथीन जैसे कई माइक्रोप्लास्टिक कण जमीन के स्रोतों से खुले समुद्र में पहुंच जाते हैं। इस तरह वे जीवों द्वारा और भी आसानी से निगल लिए जाते हैं। सुमात्रा और जावा के बीच एक स्ट्रेट सुंडा के माध्यम से, पाए गए प्लास्टिक कचरे का एक बड़ा हिस्सा हिंद महासागर में प्रवेश कर सकता है, जिससे यह माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के मामले में एक हॉटस्पॉट बन गया है।
दुनिया के प्लास्टिक कचरे का एक बड़ा भारी हिस्सा हिंद महासागर की सीमा से लगे देशों तक पहुंच जाता है। सही तरीके से कचरे का प्रबंधन न होने के कारण, हर साल चीन और इंडोनेशियाई द्वीपसमूह से लगभग 50 लाख टन प्लास्टिक का कचरा समुद्री वातावरण में मिल जाता है।
माइक्रोप्लास्टिक को लेकर भविष्य पर एक नजर
आगे की जांच में अध्ययनकर्ता नई विश्लेषण पद्धति का उपयोग करके अन्य महासागरों में माइक्रोप्लास्टिक की जांच करना चाहते हैं। इंस्टीट्यूट फॉर कोस्टल एनवायर्नमेंटल केमिस्ट्री के डॉ ट्रिस्टन जिमर्मन कहते हैं कि हम इस अगस्त में ग्रीनलैंड के पूर्वी तट पर अनुसंधान पोत मारिया के साथ एक क्रूज के दौरान आर्कटिक के पानी का नमूना लिया जाएगा।
यहां माइक्रोप्लास्टिक के कणों के संबंध में आंकड़े अभी भी बहुत स्पष्ट नहीं है। शोधकर्ता इस प्रश्न का उत्तर देना चाहते हैं कि बहुत अधिक दूर वाले इलाकों में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण कितना फैल गया है और क्या यह अपेक्षा से अधिक गंभीर है? यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल पॉल्यूशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।