कोलेरू वन्यजीव अभयारण्य में अतिक्रमण के खिलाफ दर्ज किए गए हैं 670 मामले: एसपीसीबी रिपोर्ट

आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि कोल्लेरु झील में किसी भी औद्योगिक निर्वहन की अनुमति नहीं है

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Friday 05 April 2024
 
कोलेरू झील/ फोटो: जेएम गर्ग/विकिपीडिया

आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एपीपीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट में एनजीटी को जानकारी दी है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नियमित रूप से कोलेरू झील की निगरानी कर रहा है। उनके विश्लेषण के अनुसार, नालों और झील दोनों का पानी मानकों को पूरा करता है, जिसमें मानकों से ज्यादा कोई कीटनाशक अवशेष नहीं पाया गया है। इसके अतिरिक्त, कोल्लेरु झील में किसी भी औद्योगिक निर्वहन की अनुमति नहीं है।

रिपोर्ट के मुताबिक अटापाका और माधवपुरम में दो इको-टूरिज्म स्थल विकसित किए गए हैं, जो स्थानीय लोगों के लिए जीविका के अवसर प्रदान करते हैं। इसके साथ ही आगे के इको-टूरिज्म स्थलों की योजना पर विचार किया जा रहा है और उनकी पहचान की प्रक्रिया चल रही है।

लिडार तकनीक का उपयोग करके कोलेरू झील का पुन:र्सर्वेक्षण किया जा रहा है, और उसके परिणाम जल्द आने की उम्मीद है। निजी स्वार्थ में मछली टैंक निर्माण के लिए झील पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं और कानूनी कार्रवाई की जा रही है। 2006 से कोलेरू वन्यजीव अभयारण्य में अतिक्रमण के खिलाफ करीब 670 मामले दर्ज किए गए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक निरीक्षण के दौरान, यह पाया गया कि एलुरु ग्रामीण मंडल के पाइडिचिन्थापाडु गांव में मछली तालाबों के लिए कोई अवैध खुदाई नहीं हो रही थी। उच्च ज्वार के चलते झील का पानी खारा हो रहा था। वहां करीब 10,111.16 एकड़ जमीन का उपयोग अवैध मछलीपालन के लिए किया जा रहा है।

23 जनवरी, 2024 को एनाडु अखबार में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक कोलेरू झील में मछली पालन के लिए अवैध तालाब खोदे जा रहे थे, जिससे प्रदूषण फैल रहा है। इसके अलावा, समुद्र के पानी को कोलेरू झील में पहुंचने से रोकने और कृषि भूमि को खारेपन से बचाने के लिए निर्माण अब तक शुरू नहीं हुआ है।

एनओसी मिलने के बाद ही जलाशयों को साफ करने के लिए ड्रेनजाइम का किया जाएगा उपयोग: पुणे नगर निगम

पुणे नगर निगम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च से एनओसी मिलने के बाद ही ड्रेनजाइम के उपयोग की योजना बनाई जाएगी। गौरतलब है कि ड्रेनजाइम, एक एंजाइम आधारित उत्पाद है, जिसकी मदद से जलाशयों को साफ करने पर विचार किया जा रहा है।

गौरतलब है कि बावधान से बहने वाली रामनदी में सीवेज प्रदूषण से निपटने के लिए, मेसर्स क्विनक्वेंट इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड ने ड्रेनजाइम नामक अपने उत्पाद के साथ पुणे नगर निगम से संपर्क किया था। ड्रेनजाइम एक एंजाइम-आधारित उत्पाद है, जिसे पारिस्थितिकी तंत्र में बैक्टीरिया की सहायता के लिए डिजाइन किया गया है।

हालांकि इसमें जीवित बैक्टीरिया नहीं होते, लेकिन इसकी सहायता से पारिस्थितिकी तंत्र में मौजूदा बैक्टीरिया को पोषक तत्वों का अधिक कुशलता से उपयोग करने में मदद मिलती है। इससे आधुनिक सीवेज में जटिल अपशिष्ट को तोड़ने के लिए आवश्यक एंजाइमों के उत्पादन पर स्वयं ऊर्जा खर्च नहीं करनी पड़ती, इससे ऊर्जा व्यय कम हो जाता है।

गुजरात की चरोतर यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने जलीय जीवों पर ड्रेनजाइम के प्रभावों का परीक्षण किया है। साथ ही इसमें जहरीले तत्व नहीं हैं और यह सुरक्षित है ऐसा प्रमाण पत्र भी जारी किया गया है। इसके साथ ही नीरी ने अपनी लैब रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी है कि ड्रेनजाइम के उपयोग से लैब के नमूनों में मौजूद प्रदूषण के स्तर में गिरावट देखी गई है।

वहीं जलकुंभी पर इसके प्रभाव का आंकलन करने के लिए छोटे पैमाने पर परीक्षण किया गया है। यह परीक्षण रामनदी के किनारे एक स्थिर तालाब में जलकुंभी से प्रभावित 40 वर्ग फुट क्षेत्र पर किया गया था। यह देखा गया कि इसके उपयोग के कुछ दिनों बाद ही वहां मौजूद जलकुंभी सूख गई थी।

मुजफ्फरनगर में केवल तीन औद्योगिक इकाइयों में है एसटीपी: संयुक्त निगरानी रिपोर्ट

मुजफ्फरनगर में औद्योगिक समूहों पर जारी संयुक्त निगरानी रिपोर्ट के अनुसार, 32 औद्योगिक इकाइयों में से केवल तीन ने घरेलू सीवेज के उपचार के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित किए हैं। यह रिपोर्ट निरामय जन उत्थान संस्थान बनाम उत्तर प्रदेश और अन्य के मामले में प्रस्तुत की गई है। मामला उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर का है।

रिपोर्ट के मुताबिक मुजफ्फरनगर की 32 में से केवल तीन औद्योगिक इकाइयों ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित किए हैं। हालांकि सभी औद्योगिक इकाइयों को जारी की गई संचालन या स्थापना की सहमति (सीटीई) में इसकी स्थापना की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है।

संयुक्त समिति ने फार्मास्युटिकल उद्योगों से निकलते दूषित अपशिष्ट का अवलोकन किया है। यह देखा गया है कि कभी-कभी शून्य तरल निर्वहन (जेडएलडी) वाली औद्योगिक इकाइयां बहुत सारा गंदा पानी नालियों में छोड़ रही हैं जहां इन्हें नालियों में समय-समय पर साफ करने पर ध्यान दिया जाता है। रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया है कि उद्योगों द्वारा एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) के खराब संचालन और रखरखाव के चलते एफ्लुएंट डिस्चार्ज मानकों का पालन नहीं हो रहा है।  इसकी वजह से जिन नालों और जल निकायों में यह एफ्लुएंट डिस्चार्ज हो रहा है वहां जल गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।

इसके साथ ही वहां प्लास्टिक अपशिष्ट (46.79 मीट्रिक टन प्रति दिन), बॉयलर राख (195.52 मीट्रिक टन प्रति दिन), और ईटीपी कीचड़ (23.80 मीट्रिक टन प्रति दिन) का अनुचित निपटान किया गया था।

यह 1042 पेजों की रिपोर्ट मुजफ्फरनगर के सिटी मजिस्ट्रेट, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) के   लखनऊ क्षेत्रीय कार्यालय, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, सहित उत्तर प्रदेश भूजल विभाग के अधिकारियों की एक टीम द्वारा तैयार की गई है।

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