जहरीला पंजाब : फजिल्का की इस बस्ती में धीरे-धीरे पसर रही मौत

गांव के निवासी 61 वर्षीय किसान कुलदीप सिंह के मुताबिक, पिछले 10-12 सालों में गांव में कैंसर से करीब 29 लोगों की मौत हो चुकी है।

By Rohini K Murthy

On: Wednesday 07 June 2023
 
पंजाब के फजिल्का जिले के एक छोटे से गांव बुर्ज मोहर में पिछले एक दशक में कैंसर के कारण लगभग 30 मौतें हुई हैं। फोटो: विकास चौधरी

औद्योगिक प्रदूषण की वजह से पंजाब के लुधियाना जैसे शहर ही नहीं, बल्कि गांव भी चपेट में हैं। डाउन ने ऐसे ही कुछ गांवों में जाकर ग्राउंड रिपोर्ट की। पहली कड़ी में आपने पढ़ा, जहरीला पंजाब : कैंसर और दांत संबंधी घातक बीमारियों की जद में आ रहे ग्रामीण । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा: जहरीला पंजाब : बच्चों में अल्पबुद्धि और गंभीर त्वचा रोग की जद में ग्रामीण। पढ़ें अगली रिपोर्ट

पंजाब के फजिल्का जिले के एक छोटे से गांव बुर्ज मोहर में 60-70 परिवार रहते हैं, लेकिन सभी ने अपने-अपने हिस्से की त्रासदियों का दुख बराबर भोगा है। इस गांव में पिछले एक दशक में कैंसर के कारण लगभग 30 मौतें हुई हैं और सभी तरह के आयु वर्ग के लोगों को कुछ रहस्यमयी बीमारियां भी प्रभावित करती हैं। यह बीमारियां औद्योगिक अपशिष्टों से जुड़ी हुई हैं जो ग्रामीणों के जल स्रोतों को प्रदूषित करती हैं।

परमिंदर सिंह एक ऐसे ग्रामीण हैं जिन्हें हाल ही में एक बड़ी क्षति  का सामना करना पड़ा। उनकी मां बलदेव कौर (75) को ब्लड कैंसर का पता चला और तीन दिन बाद ही उनका निधन हो गया।

डाउन टू अर्थ (डीटीई) ने गांव का दौरा किया और परमिंदर के घर पर पड़ोसियों को बलदेव कौर के खोने का शोक मनाते हुए भी देखा। परमिंदर डीटीई को बताते हैं  "मेरी मां को तीन दिन पहले ही एडवांस स्टेज के ब्लड कैंसर का पता चला था और दो दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।”

कौर पूरे समय बेहोश ही रही। उन्हें फाजिल्का जिले में अबोहर शहर के एक निजी अस्पताल बालाजी अस्पताल ले जाया गया। बुर्ज मोहर गांव में कोई सरकारी अस्पताल नहीं है।

गांव के निवासी, 61 वर्षीय किसान कुलदीप सिंह के मुताबिक, पिछले 10-12 सालों में गांव में कैंसर से करीब 29 लोगों की मौत हो चुकी है।

कैंसर के इस भारी बोझ को जल प्रदूषण से जोड़ा जा रहा है। बुर्ज मोहर में रहने वाले ग्रामीणों के पास पानी के दो स्रोत हैं: भूजल और सतलुज से निकलने वाली सरहिंद नहर के आबोहर शाखा का पानी।  सतलुज नदी का पानी सरहिंद नहर की अबोहर शाखा में प्रवेश करता है, जो फाजिल्का जिले सहित दक्षिण-पश्चिम पंजाब तक पहुंचता है।

इन दिनों स्पाइनल डिस्क की समस्या से जूझ रहे पूर्व सरपंच (1998-2011) जगदीप सिंह बताते हैं कि  “हमें पहले भाखड़ा नांगल बांध से पानी मिलता था, लगभग 50 साल पहले बांध से पानी मिलना बंद हो गया। हमारी समस्याएं तब शुरू हुईं जब हम सतलुज के पानी पर निर्भर हो गए।"

बुर्जमोहर गांव में पहुंचने वाली अबोहर नहर (सरहिंद नहर की शाखा) सतलुज का ही पानी लेकर आती है। अबोहर नहर लुधियाना शहर में बहने वाली 40 किलोमीटर लंबी धारा वाला बुड्ढ़ा नाला के कारण प्रदूषित हो जाती है। किसान कुलदीप सिंह कहते हैं “दस साल पहले, हम पीने के पानी के लिए नहर के पानी का इस्तेमाल करते थे। लेकिन अब यह बहुत गंदा हो गया है। हम इसका इस्तेमाल सिर्फ सिंचाई के लिए करते हैं।'

लुधियाना क्षेत्र में मौजूद उद्योगों और नगरपालिका से निकलने वाले कचरे को बुड्ढ़ा नाले में फेंक दिया जाता है, जिसके कारण धारा एकदम काली हो गई है और उसमें दुर्गंध भी आती है। कई अध्ययनों ने धारा में भारी धातुओं की उपस्थिति का भी दस्तावेजीकरण किया है।

वर्ष 2022 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार क्रोमियम, निकल, आर्सेनिक और मरकरी जैसी भारी धातुएं कैंसरकारी हैं। ये खतरनाक तत्व मस्तिष्क, फेफड़े, गुर्दे, यकृत, रक्त संरचना और अन्य महत्वपूर्ण अंगों के कामकाज को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने बुड्ढ़ा नाले में मिलने से पहले सतलज नदी की जल गुणवत्ता को श्रेणी सी (कीटाणुशोधन और पारंपरिक उपचार के बाद पीने लायक) के रूप में वर्गीकृत किया है। लेकिन सतलुज में दो जल निकायों के मिलने के बाद पानी की गुणवत्ता श्रेणी ई कक्षा तक गिर जाती है, जो सिर्फ सिंचाई, औद्योगिक शीतलन के लिए ही उपयुक्त है। इसका इस्तेमाल पीने के लिए नहीं किया जा सकता। बुर्ज मोहर के निवासी पीने के लिए भूजल का उपयोग करते हैं। लेकिन यह पानी भी दूषित और पीने लायक नहीं है।

कुलदीप ने कहा, " उपचार वाला पानी प्रदान करने वाली कंपनियों ने हमें बताया है कि भूजल में कुल घुलित ठोस (टीडीएस) का स्तर 500 मिलीग्राम प्रति लीटर की अनुमेय सीमा से अधिक है।"

टीडीएस  सस्पेंडेड कार्बनिक पदार्थ और सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, क्लोराइड, बाइकार्बोनेट और सल्फेट सहित अकार्बनिक लवण का प्रतिनिधित्व करता है।

गांव में लगभग 10 साल पहले एक सामान्य रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) प्रणाली स्थापित की गई थी, लेकिन यह स्थायी रूप से खराब स्थिति में है। परमिंदर और कुलदीप ने अपने घर में एक आरओ सिस्टम लगा रखा है, लेकिन जसकरन सिंह (40) जैसे कई अन्य इसे वहन नहीं कर सकते।

जसकरन मैकेनिक हुआ करते थे। लेकिन अचानक 2018 में उन्होंने चलने की क्षमता खो दी। वह कमर से नीचे लकवाग्रस्त है। उन्होंने लुधियाना, जयपुर, दिल्ली और बीकानेर में कई डॉक्टरों से परामर्श किया है लेकिन कोई निश्चित निदान नहीं मिला है।

लगभग 10-12 लाख रुपये खर्च करने के बाद, जसकरन ने अब उम्मीद छोड़ दी है और सभी चिकित्सा उपचार बंद कर दिए हैं। उसकी पत्नी घर चलाने के लिए किराने की दुकान चलाती है और उसका 17 वर्षीय बेटा मजदूरी करता है।

कुलदीप के परिवार के ज्यादातर सदस्य भी तरह-तरह की बीमारियों से जूझ रहे हैं। उन्हें दिल की बीमारी है और दो साल पहले उनके सीने में स्टेंट लगाया गया था। उनकी पत्नी पुष्पिंदर कौर को 2017 में स्तन कैंसर का पता चला था और वर्तमान में उनका इलाज चल रहा है। दंपति के बेटे तिजिंदर सिंह को बोलने में दिक्कत है।

कुलदीप ने कहा, 'आपको लगभग हर घर में मरीज मिल जाएंगे।' निवासियों को पाचन, यकृत की समस्याएं और जोड़ों के दर्द की समस्या है। उन्होंने बताया "50 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों को उठने में परेशानी होती है," उन्होंने कहा।

माखन सिंह (66) पिछले दो साल से जोड़ों के दर्द से परेशान हैं। उन्हें घुटने की रिप्लेसमेंट सर्जरी कराने के लिए कहा गया था। वह बताते हैं "मेरे पास इसके लिए पैसे नहीं हैं। हम जो भी पैसा कमाते हैं वह खेती या दवा में चला जाता है।"

यह रिपोर्ट प्रदूषण के कारण पंजाब के लोगों को होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं पर आधारित एक श्रृंखला का हिस्सा है।

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