कलई खोलती किताब
सूचना के अधिकार कानून से हासिल दस्तावेजों को आधार बनाकर लिखी गई किताब “वादा फरामोशी” बताती है कि कल्याणकारी योजनाओं की हालत बेहद खराब है
On: Friday 24 May 2019
केंद्र में सत्ता हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार ने योजनाओं की विस्तृत श्रृंखला शुरू की और कई पुरानी योजनाओं को नया नाम देकर शुरू किया। लेकिन जिस मकसद से योजनाएं शुरू की गईं, क्या वह मकसद पूरा हुआ? गंगा कितनी साफ हुई, गोमाता की कितनी रक्षा हुई, आदिवासियों का कितना कल्याण हुआ, महिलाएं कितनी सुरक्षित और सशक्त हुईं, रेलवे ने कितनी प्रगति की, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए चल रही योजनाएं किस मुकाम पर पहुंची? कुछ ऐसे ही असहज सवालों के जवाब तलाश करती है चुनावी मौसम में प्रकाशित हुई किताब “वादा फरामोशी”। सवाल पूछने का साहस करने पर कठघरे में खड़े किए जाने वाले इस दौर में आरटीआई (सूचना का अधिकार) कार्यकर्ता संजॉय बासु, नीरज कुमार और शशि शेखर ने दर्जनों आरटीआई आवेदन दाखिल करने के बाद इस तथ्यपरक किताब को लिखा है। किताब में सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारियां ही योजनाओं की बदहाली और उनकी असफलता की कहानी कहती हैं। डाउन टू अर्थ ने गंगा और महिलाओं से जुड़े दस्तावेजों पर नजर डाली।
गंगा माई से कमाई
मौजूदा सरकार ने आस्था की प्रतीक गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिए अलग मंत्रालय बनाया लेकिन लक्ष्य के नजदीक भी नहीं पहुंचा जा सके। किताब का पहला अध्याय गंगा पर ही केंद्रित है। लेखक कहते हैं, “सजग नागरिकों को यह जानना चाहिए कि जिस नमामि गंगे के नाम पर सरकार ने करोड़ों रुपए सिर्फ विज्ञापन पर खर्च किए, उस योजना का आज क्या हाल है। किताब के अनुसार, “गंगा के नाम पर केंद्र सरकार न सिर्फ करोड़ों रुपए आम आदमी से दान के रूप में ले रही है बल्कि उसे खर्च न करते हुए साल दर साल उस पैसे पर भारी ब्याज कमा रही है। मार्च 2014 में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के खाते में जितना भी अनुदान और विदेशी लोन के तौर पर रुपए जमा थे, उस पर 7.64 करोड़ रुपए का ब्याज सरकार को मिला। मार्च 2017 में इस खाते में आई ब्याज की रकम 7.64 करोड़ से बढ़कर 107 करोड़ रुपए हो गई। यानी तीन साल में सरकार ने अकेले नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के खाते से 100 करोड़ रुपए का ब्याज कमा लिया।” इतना ही नहीं गंगाजल बेचकर भी सरकार ने दो साल के दौरान करीब 52 लाख रुपए की अतिरिक्त कमाई की। सरकार ने 119 पोस्टल सर्कल और डिवीजन के जरिए 200 और 500 मिलीलीटर गंगाजल की 2.65 लाख से ज्यादा बोतलें बेचीं।
गंगा की सफाई के नाम पर चल रही परियोजनाओं की हकीकत एक आरटीआई के जवाब से स्पष्ट होती है जिसमें जल संसाधन मंत्रालय कहता है कि नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 10 अक्टूबर 2018 तक कुल 236 प्रोजेक्ट स्वीकृत हुए। इनमें से 63 प्रोजेक्ट ही पूरे हुए हैं। इसके अलावा 114 सीवेज इन्फ्रास्ट्रक्चर और एसटीपी प्रोजेक्ट स्वीकृत हुए लेकिन केवल 27 ही पूरे हो पाए। इतना ही नहीं, नमामि गंगे के तहत बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व पश्चिम बंगाल में 113 रियल टाइम बायो मॉनटरिंग स्टेशन लगाए जाने थे जिसका फ्रेमवर्क 2001 में तैयार कर लिया गया था। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि अब तक एक भी रियल टाइम बायो मॉनिटरिंग स्टेशन नहीं लगाया गया है। यह जानकारी खुद जल संसाधन मंत्रालय ने 6 नवंबर 2018 को दी। किताब गंगा की सफाई पर कथनी और करनी के बीच फर्क स्पष्ट करती है।
कितनी सशक्त हुईं महिलाएं
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे के बीच बेटियों के लिए चल रही योजनाओं की पड़ताल भी किताब में की गई है। किताब निर्भया फंड, महिला शक्ति केंद्र, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, किशोरी शक्ति योजना और फैमिली काउंसलिंग सेंटर की हकीकत आंकड़ों से ही सामने रखती है। मसलन, निर्भया फंड से इमरजेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम (ईआरएसएस) के लिए 2016-17 और 2017-18 में क्रमश: 217 करोड़ रुपए और 55.39 करोड़ रुपए 17 राज्यों के वितरित किए गए। लेकिन जनवरी 2019 तक केवल दो राज्यों ने ही ईआरएसएस के तहत तहत सिंगल इमरजेंसी नंबर 112 शुरू किया।
महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सरकार ने नवंबर 2017 में महिला शक्ति केंद्र योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत तीन चरणों में 640 जिलों को जिला स्तरीय महिला केंद्र (डीएलसीडब्ल्यू) के तहत कवर किया जाना था। 2017-18 के दौरान पहले चरण में 220 जिलों को, 2018-19 के दौरान दूसरे चरण में 220 जिलों और 2019-20 के दौरान तीसरे चरण में 200 जिलों को इसमें शामिल करना है। महिला शक्ति केंद्र की स्थापना के लिए 115 सबसे पिछड़े जिलों पर विशेष ध्यान दिया गया था। योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए केंद्र सरकार ने 2017-18 के दौरान 36 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को 61.40 करोड़ और 2018-19 के दौरान 52.67 करोड़ रुपए जारी किए। आरटीआई से पता चलता है कि केवल 22 जिलों में अब तक डीएलसीडब्ल्यू को कार्यात्मक बनाया गया है जिनमें भारत के केवल पांच सबसे पिछड़े जिले शामिल हैं। इस योजना के तहत बिहार को 12.8 करोड़ रुपए मिले लेकिन वहां एक भी डीएलसीडब्ल्यू कार्यशील नहीं हो सका। झारखंड में 19 पिछड़े जिले हैं लेकिन 18.65 करोड़ रुपए जारी होने के बावजूद यहां कोई केंद्र चालू नहीं हो सका।
गर्भवती महिलाओं के कल्याण के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना की हालत भी बेहद खराब है। किताब के अनुसार, 30 नवंबर 2018 तक सरकार ने 18 लाख 82 हजार 708 लाभार्थियों को योजना की सहायता राशि देने के लिए 1,655.53 करोड़ रुपए जारी किए। इस सहायता राशि के वितरण के लिए सरकार ने 6,966 करोड़ रुपए प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर खर्च कर दिए। इसका अर्थ है कि योजना के तहत किसी लाभार्थी को 100 रुपए देने के लिए सरकार ने उससे साढ़े चार गुणा अधिक राशि प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर खर्च कर दी।
इसके अलावा 2006-07 में लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए शुरू की गई किशोरी शक्ति योजना को 1 अप्रैल 2018 को सरकार ने बंद कर दिया और इसकी जगह स्कीम फॉर अडॉलसेंट गर्ल (एसएजी) शुरू कर दी। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने आरटीआई के जवाब में बताया कि 2010 में पूरे देश में किशोरी शक्ति योजना के तहत 6,118 प्रोजेक्ट चल रहे थे। एसएजी शुरू होने के बाद इन प्रोजेक्ट की संख्या घटकर 4,194 हो गई। यानी किशोरी शक्ति योजना से करीब 33 प्रतिशत ब्लॉक को बाहर कर दिया गया। कुछ ऐसी ही स्थिति 1983 से चल रहे परिवार परामर्श केंद्रों की भी है। इन केंद्रों की हालत 2018 में बहुत खराब हो गई। पिछले पांच साल में ऐसे 219 केंद्र बंद हो चुके हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इनका खर्च लगातार बढ़ता गया। साल 2014-15 के दौरान 895 केंद्र काम रहे थे। तब कुल खर्च था 16.45 करोड़ रुपए। 31 अक्टूबर 2018 तक ऐसे केंद्रों की संख्या घटकर 676 हो गई लेकिन खर्च बढ़कर 18 करोड़ रुपए हो गया।
लेखक शशि शेखर बताते हैं, “किताब का मकसद सरकार की आलोचना नहीं बल्कि सच को सामने लाना था जो मीडिया और राजनीति के गठजोड़ में कहीं फंस गया था। हमने अपनी तरफ से कुछ नहीं लिखा है। सरकार ने जो दस्तावेज दिए हैं, उसी को किताब की शक्ल दी है। ये दस्तावेज बताते हैं कि कैसे सरकार की बहुप्रचारित योजनाएं साफ नीति व नीयत के अभाव में दम तोड़ रही हैं।”
“सरकार नहीं चाहती मजबूत आरटीआई”डाउन टू अर्थ ने पुस्तक के लेखक संजॉय बासु से बात की |