मॉनसूनी बारिश का पैटर्न बदल सकती हैं नदियों को जोड़ने की परियोजनाएं: रिपोर्ट

अध्ययन में नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाओं के सिंचाई लक्ष्यों का अनुकरण किया और साथ ही देश के कुछ शुष्क क्षेत्रों में सितंबर की वर्षा में 12 फीसदी तक की कमी का आकलन किया गया

By Dayanidhi

On: Thursday 28 September 2023
 
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, ए जे टी जॉनसिंह, केन नदी

एक नए अध्ययन से पता चला है कि, प्रस्तावित 'इंटर बेसिन वॉटर ट्रांसफर' या 'नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाएं' मॉनसूनी बारिश के स्थानीय पैटर्न को बदल सकती हैं। अध्ययन में बताया गया है कि सितंबर में होने वाली बारिश पर सबसे अधिक असर पड़ेगा, क्योंकि यह सतह की नमी पर निर्भर करती है।

अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने नदियों को जोड़ने की परियोजनाओं को लागू करने से पहले एक व्यापक वायुमंडलीय अध्ययन की जरूरत पर जोर दिया।

यह अध्ययन बॉम्बे के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के सिविल इंजीनियरिंग और जलवायु अध्ययन में कार्यक्रम विभाग के शोधकर्ता,  पुणे के भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के सहयोग से किया गया है। अध्ययन में हैदराबाद विश्वविद्यालय के नदियों को जोड़ने की परियोजनाओं के वायुमंडलीय प्रभाव का अध्ययन किया गया।

नेचर पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन की अगुवाई, प्रोफेसर सुबिमल घोष और आईआईटी बॉम्बे की शोधकर्ता तेजस्वी चौहान द्वारा की गई है।

शोधकर्ताओं ने भारत की प्रमुख नदी घाटियों गंगा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा, कावेरी और नर्मदा-तापी का विश्लेषण किया। उन्होंने इस बात को उजागर करने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया, कि ये नदी घाटियां आपस में जुड़ी हुई हैं।

जैसे ही नदी घाटियों से पानी वाष्पित होता है या जब नदी घाटियों में बारिश होती है, तो भूमि वायुमंडल से जुड़ी होती है। घाटियों के पार, जैसे-जैसे हवाएं पानी ले जाती हैं, आपस में वायुमंडलीय संबंध बनते हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाएं बड़े पैमाने पर सिंचाई, भारतीय मॉनसून के स्थानीय पैटर्न को बदल सकती है। उन्होंने नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाओं के सिंचाई लक्ष्यों का अनुकरण किया, और साथ ही देश के कुछ शुष्क क्षेत्रों में सितंबर की वर्षा में 12 फीसदी तक की कमी और अन्य क्षेत्रों में सितंबर की वर्षा में 10 फीसदी की वृद्धि देखी।

शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि प्रस्तावित नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं की योजना बनाते समय मॉनसून के स्थानीय पैटर्न में बदलाव पर विचार किया जाना चाहिए।

अध्ययन के हवाले से सह-अध्ययनकर्ता, सुबिमल घोष ने कहा, यह अध्ययन दिखता है कि स्थलीय जल चक्र में परिवर्तन वायुमंडलीय प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, नदियों को आपस मैं जोड़ने जैसी बड़े पैमाने की हाइड्रोलॉजिकल परियोजनाओं की योजना बनाते समय, मौसम संबंधी परिणामों के कठोर, मॉडल-निर्देशित मूल्यांकन को शामिल करने की तत्काल जरूरत है।

उन्होंने कहा, हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि, इन परियोजनाओं में हमारे कृषि प्रधान देश के जल संकट को कम करने की क्षमता है, ऐसी परियोजनाओं के लिए समग्र मूल्यांकन और भूमि-वायुमंडल प्रतिक्रिया, पारिस्थितिकी प्रभाव, भूजल संपर्क, समुद्री परिवर्तन आदि को शामिल करते हुए कुशल और टिकाऊ जल संसाधन प्रबंधन के लिए योजना बनाने की आवश्यकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि, सिंचाई भूमि-वायुमंडल प्रतिक्रिया के माध्यम से अगस्त और सितंबर में इसके बाद के चरणों में भारतीय मॉनसून को नमी प्रदान करती है। भूमि से वाष्पीकरण-उत्सर्जन हवा में नमी में योगदान देता है, जो फिर बारिश के रूप में बदल जाती है जिसे 'पुनर्नवीनीकरण वर्षा' कहा जाता है।

सितंबर में होने वाली मॉनसूनी बारिश में पुनर्चक्रित वर्षा का योगदान लगभग 25 फीसदी है। इसका मतलब यह है कि नदी घाटी पहले से ही वायुमंडलीय मार्गों के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े हुए हो सकते हैं।

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