एनजीटी ने यमुना खादर में अवैध रेत खनन के आरोपों की जांच के लिए बनाई संयुक्त समिति

यह आवेदन अदालत द्वारा एक खबर के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दर्ज किया गया था

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Thursday 15 February 2024
 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 13 फरवरी 2024 को यमुना खादर क्षेत्र में अवैध रेत खनन के आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का आदेश दिया है। मामला उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के नंगलाराई गांव का है।

कोर्ट के निर्देशानुसार समिति इस साइट का दौरा करने के साथ, स्थिति का आकलन करेगी। इसके साथ ही वहां हुए अवैध खनन की सीमा निर्धारित करेगी और इसके लिए जिम्मेवार लोगों की पहचान करेगी। कोर्ट ने समिति को स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया है।

अदालत ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, मुजफ्फरनगर के कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट, लखनऊ में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय अधिकारी और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। इन सभी को अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले अपना जवाब कोर्ट में दाखिल करना होगा। इस मामले में अगली सुनवाई 24 अप्रैल 2024 को होनी है।

गौरतलब है कि यह आवेदन अदालत द्वारा एक खबर के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दर्ज किया गया था। इस खबर में नंगलाराई गांव के यमुना खादर क्षेत्र में चल रहे अवैध रेत खनन के कारोबार को उजागर किया गया था। समाचार रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि कैसे बनाया गया रेत का बांध नदी के प्रवाह को बाधित कर रहा है।

इस खबर में रेत खनन के चलते 30 फीट तक गहरे गड्ढे बनने और ओवरलोड रेत ढोने वाले वाहनों द्वारा आसपास की फसलों के नष्ट होने का भी जिक्र किया गया है। इसके अतिरिक्त, यह भी सामने आया है कि रेत की ढुलाई करने वाले ट्रकों ने बाढ़ को रोकने के लिए बनाए बांध को क्षतिग्रस्त कर दिया है, जिससे बारिश के दौरान क्षेत्र में बाढ़ आने का खतरा है।

टिहरी झील में लाइसेंस खत्म होने के बाद भी चल रहा फ्लोटिंग होटल, एनजीटी ने जांच के दिए आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 12 फरवरी, 2024 को नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) को टिहरी झील में एक तैरते होटल की जांच करने का निर्देश दिया है। आरोप है लाइसेंस अवधि पूरा होने के बावजूद यह होटल अभी भी चल रहा है। यह होटल प्रदूषण फैला रहा है और अपने कचरे को गंगा नदी में बहा रहा था।

एनएमसीजी को इस मामले की जांच कर दो महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट एनजीटी में सौंपने को कहा गया है। प्राधिकरण को यह भी देखने के लिए कहा गया है कि क्या गंगा नदी (पुनरुद्धार, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण (संशोधन) आदेश 2024 के तहत इस तरह की गतिविधि की अनुमति है।

कैमूर वन्य जीव अभ्यारण्य इको सेंसिटिव जोन पर गलत शपथ पत्र को लेकर एनजीटी ने की कार्रवाई

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की पूर्वी बेंच ने गढ़वा के कलेक्टर और सह-उपायुक्त को "जानबूझकर अदालत के समक्ष गलत हलफनामा दायर करने के लिए" स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया है। मामला कैमूर वन्य जीव अभ्यारण्य के इको सेंसिटिव जोन के संबंध में गलत जानकारी देने से जुड़ा है।

गौरतलब है कि उन्होंने अपने हलफनामे में कहा था कि कैमूर वन्यजीव अभयारण्य के इको-सेंसिटिव जोन का केवल ड्राफ्ट प्रकाशन ही उपलब्ध है, जो 1979 में प्रकाशित हुआ था। इसका अंतिम प्रकाशन अब तक नहीं किया गया है। अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया कि कलेक्टर-सह-उपायुक्त स्तर का एक अधिकारी "हलफनामे पर एक बयान दे रहा है जो बिल्कुल गलत है और जिसे रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों द्वारा नकारा गया है।"

बता दें कि 13 दिसंबर 2015 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कैमूर वन्यजीव अभयारण्य को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया था।

अदालत का कहना है कि, "कलेक्टर-सह-उपायुक्त, गढ़वा की अज्ञानता चौंकाने वाली है।" ऐसे में अदालत ने कलेक्टर को जानबूझकर गलत हलफनामा प्रस्तुत करने के बारे में स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने झारखंड के राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण और गढ़वा के प्रभागीय वन अधिकारी को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है।

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