100 करोड़ के जुर्माने के मामले में एनजीटी ने लुधियाना नगर निगम के आवेदन को किया खारिज

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Monday 22 August 2022
 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने लुधियाना नगर निगम द्वारा समीक्षा के लिए दायर आवेदन को खारिज कर दिया है। मामला एनजीटी द्वारा लुधियाना नगर निगम पर लगाए 100 करोड़ के जुर्माने से जुड़ा है। इस आवेदन में लुधियाना नगर निगम ने एनजीटी द्वारा 25 जुलाई, 2022 को दिए उसके आदेश की समीक्षा की मांग की थी।

25 जुलाई, 2022 को एनजीटी द्वारा दिया यह आदेश ठोस अपशिष्ट प्रबंध नियम, 2016 और अन्य पर्यावरणीय मानदंडों का पालन कर पाने में लुधियाना नगर निगम की विफलता से जुड़ा था। उसकी इस विफलता के कारण पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा था।

गौरतलब है कि यह मुद्दा अप्रैल, 2022 में उस समय सुर्ख़ियों में आ गया था, जब वहां एक डंप साइट पर आग लगने से सात लोगों की मौत हो गई थी।

इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बड़ी कार्रवाई करते हुए लुधियाना नगर निगम पर लगाया 100 करोड़ का जुर्माना लगाया था। जुर्माने की इस राशि को अंतरिम मुआवजे के रूप में लुधियाना के जिला मजिस्ट्रेट के पास जमा करने का निर्देश दिया गया था।

वहीं अब न्यायमूर्ति जसबीर सिंह की अध्यक्षता वाली निगरानी समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए एनजीटी ने नगर निगम के 18 अगस्त, 2022 को दायर समीक्षा आवेदन को खारिज कर दिया है। 15 मई, 2022 को इसपर दायर रिपोर्ट में दर्शाया गया था कि इस साइट पर वैज्ञानिक रूप से कचरे को संभालने और डंप साइट के प्रबंधन में राज्य अधिकारी पूरी तरह से विफल रहे हैं।

रिपोर्ट में पाया गया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण को लगातार होते नुकसान के साथ-साथ वहां नियमों और आदेशों का भी उल्लंघन किया गया था। साथ ही यह पूरी तरह से प्रशासन की विफलता को भी दर्शाता है क्योंकि उस डंप साइट के आसपास 200 से 300 कचरा बिनने वालों को रहने की अनुमति दी गई थी। जिसकी वजह से लोगों की जान जा सकती थी।

साथ ही रिपोर्ट से पता चला है कि उस स्थान पर मीथेन गैस का रिसाव हो रहा था। वहां कचरे को बिना अलग किए ऐसे ही डंप कर दिया गया था साथ ही आग को रोकने के लिए फायर हाइड्रेंट स्थापित नहीं किए गए थे और न ही अलार्म और सायरन लगाए गए थे। साइट पर बड़ी मात्रा में गन्दा पानी बह रहा था। इसके अलावा वहां से निकलने वाले गंदे पानी को सतलुज नदी में डाला जा रहा था।

अरावली के 1.24 हेक्टेयर क्षेत्र में किया गया अवैध खनन, रिपोर्ट में आया सामने

मैसर्स सुंदर मार्केटिंग एसोसिएटेड ने अरावली वन क्षेत्र के करीब 1.24 हेक्टेयर क्षेत्र में अवैध खनन किया था। यह जानकारी हरियाणा अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (हरसैक) द्वारा हरियाणा सरकार को सौंपी रिपोर्ट में सामने आई है। अवैध खनन का यह मामला हरियाणा के भिवानी जिले में दादम हिल्स इलाके में सामने आया है। इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह सामने आया है कि इस क्षेत्र में मैसर्स गोवर्धन माइंस एंड मिनरल्स द्वारा भी 0.097 हेक्टेयर क्षेत्र में अवैध खनन किया गया था।

वहीं हरियाणा मुख्य सचिव द्वारा एनजीटी को सौंपी गई रिपोर्ट से पता चला है कि खान और भूविज्ञान विभाग ने 2 मई, 2022 को दिए अपने एक आदेश के तहत दादम पत्थर खदान से खनन के साथ-साथ वहां से खनिजों को अन्य स्थानों पर भेजने से रोक दिया है।

साथ ही जिन कंपनियों को वहां पट्टा दिया गया है, उन्हें खदानों को सुरक्षित बनाने के लिए सिर्फ बहाली संबंधी कार्य करने की ही अनुमति दी गई है। इसके साथ ही गोवर्धन माइंस एंड मिनरल्स द्वारा किए अवैध खनन के लिए उसपर 29.6 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है।

चंडीगढ़ में हर दिन 430 टन कचरा नहीं हो रहा प्रोसेस

एनजीटी द्वारा 18 अगस्त को दिए आदेश में कहा है कि चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों से पता चलता है कि 430 टन प्रतिदिन (टीपीडी) का जो अंतर है वो दर्शाता है कि वहां वेस्ट प्रोसेस सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। जानकारी मिली है कि वहां छह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटस (एसटीपी) में से केवल चार ठीक तरह से चल रहे हैं।

हालांकि वो भी 85.1 एमएलडी स्थापित क्षमता में से केवल 59.25 की अपनी न्यूनतम सीमा तक ही काम कर रहे हैं। वहीं करीब 157.5 एमएलडी सीवेज को बिना साफ़ किए ही सुखना चो, पटियाला की राव और फरीदा के माध्यम से निपटाया जा रहा है, जो अंततः पंजाब के रास्ते घग्गर नदी में जा रहा है।

इस मामले में एनजीटी के न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की पीठ का कहना है कि इस बारे में चंडीगढ़ के प्रशासकीय सलाहकार को एक वरिष्ठ नोडल अधिकारी नियुक्त करने के बारे में सोचना चाहिए, जो जो नियमित रूप से इस खाई को पाटने से संबंधित प्रगति का आकलन कर सके। 

पंजाब और हरियाणा में 31 दिसंबर, 2022 तक कार्य करती रहेंगी निगरानी समितियां: एनजीटी

एनजीटी ने 18 अगस्त को दिए अपने निर्देश में स्पष्ट कर दिया है कि पंजाब और हरियाणा में पर्यावरण से जुड़े जरुरी मुद्दों पर ट्रिब्यूनल के निर्देशों के अनुपालन की निगरानी के लिए बनाई समितियां 31 दिसंबर, 2022 तक कार्य करती रहेंगी। कोर्ट का कहना है कि इससे समितियां जिला पर्यावरण योजनाओं के पूरा होने और कार्यान्वयन की स्थिति के संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अपना काम पूरा कर पाएंगी।

साथ ही आदेश में यह भी कहा गया है कि 1 जनवरी, 2023 से उक्त समितियों द्वारा किए जा रहे निगरानी कार्य को संबंधित मुख्य सचिवों द्वारा अपने अधीन उचित प्रशासनिक निगरानी तंत्र के माध्यम से लिया जा सकता है।

गौरतलब है कि एनजीटी ने 14 अगस्त, 2022 को न्यायमूर्ति जसबीर सिंह और न्यायमूर्ति प्रीतम पाल से, जो निगरानी समितियों का नेतृत्व कर रहे थे, प्राप्त पत्र के जवाब में मामले को उठाया था। इन समितियों को 31 अगस्त, 2022 तक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है।

समितियों ने पत्र के माध्यम से स्पष्टीकरण मांगा है कि यदि उन्हें केवल 31 अगस्त, 2022 तक कार्य करना है तो वो उस तारिख तक की स्थिति रिपोर्ट कैसे प्रस्तुत कर सकती हैं, क्योंकि रिपोर्ट जमा करने में समय का लगना तय है। साथ ही जिन मुद्दों पर नजर रखी जा रही है उनमें से एक जिला पर्यावरण योजनाओं को अंतिम रूप देना और उनका क्रियान्वयन भी करना है।

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