बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण के साथ जैवविविधता के लिए बन रहा खतरा

15,343 टन प्लास्टिक वेस्ट प्रतिदिन जो कि भारत के 60 बड़े शहरों से निकलता है। इसका केवल 60 फीसदी रिसाइकल किया जाता है 

By Ashish Kumar Chauhan

On: Friday 10 February 2023
 

भारत के चार प्रमुख शहरों में से तीन शहर समुद्र के तट पर स्थित हैं। देश की लगभग 14.2% (ग्राफ -१ ) जनसंख्या समुद्र तट से लगे जिलों में निवास करती है। आयतन की दृष्टि से लगभग 95% और मूल्य की दृष्टि से लगभग 68% भारतीय व्यापार इन्हीं वॉटरवेज / जलआधारित मार्ग से किया जाता है।

ग्राफ -१ समुद्र तटीय जनसंखयया प्रतिशत/ स्त्रोत : सी एस ई, 2022

भारतीय समुद्री तट की लंबाई कुल 7517 किलोमीटर है। इन समुद्री तटों पर बहुत सारी समुद्री वनस्पतियों एवं जीव जंतुओं का विकास एवं पोषण आधारित होता है। जिस प्रकार से मानव की जीवन शैली है उससे पिछले 50 सालों में कूड़े की मात्रा जमीन सहित जलीय निकायो में भी बढ़ाया है।

डाउन टू अर्थ ने पाया कि वर्ष 2019 में “यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू कैसल ऑस्ट्रेलिया” के द्वारा समुद्र में मरीन पॉल्यूशन को लेकर एक शोध किया गया। समुद्र आधारित सभी प्रकार के जीवो में नैनो प्लास्टिक एवं अन्य प्रकार के प्लास्टिक के कण प्राप्त हुए है जो बाद में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आहार श्रृंखला / फूड चेन का हिस्सा बनते हैं। शोध के अनुसार यह बताया गया कि लोगों के द्वारा लगभग 5 ग्राम प्रति सप्ताह नैनो प्लास्टिक का विभिन्न माध्यमों से उपभोग किया जा रहा है।

मरीन लिटर / समुद्री मलवे में प्लास्टिक

"मरीन लिटर इन साउथ एशियन सी" रिपोर्ट वर्ष 2018 में यूनाइटेड नेशन इन्वायरमेंट प्रोग्राम के द्वारा तैयार की गई है जिसमें यह बताया गया है कि 15,343 टन प्रतिदिन प्लास्टिक वेस्ट जो कि भारत के 60 बड़े शहरों से निकलता है। इस निकले हुए वेस्ट प्लास्टिक का सिर्फ 60% ही प्लास्टिक वेस्ट को रिसाइकल किया जाता है और प्रभावी संग्रहण और रीसाइक्लिंग के अभाव में शेष 40% प्लास्टिक वेस्ट अंततोगत्वा मरीन डिब्रिस का एक हिस्सा बनता है।

डाउन टू अर्थ के अनुसार मरीन डेब्रिस में मौजूद विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक जैसे - कैर्री बैग, रस्सिया, फिशिंग नेट, बॉटल्स, कैप्स, पलॉयसट्रीन,फोम, सिगरेट बड्स, प्लास्टिक आधारित कप, प्लेट्स, कटलरीस, पस्टिक पैकेजिंग आदि समुद्र तट सहित समुद्र के विभिन्न जलीय खंडो में घनत्व और भार के अनुसार जमा होते रहते है। समुद्र में प्लास्टिक आधारित वस्तु और प्रयोग कर फेके गए घोस्ट नेट/ फिशिंग नेट में फसकर एक बड़ी मात्रा में समुद्र जींवो और सी बर्ड की मृत्यु हो जाती है

जैव विविधिता और समुद्री जीवो का बचाव का प्रयास

सुपरजा धारीनी जो ट्री फाउंडेशन की चेयरपर्सन और संस्थापक भी है।
अब तक 31,01,000 आलिव रिडिली प्रजाति के कछुओं (शिशु कछुओं) को संस्था की "सी टर्टल प्रोटेक्शन फोर्स" के 363 सदस्यों की सहायता से समुद्र में वापस छोड़ा गया है।

2 ओलिव रिडिली टर्टल, 1 ग्रीन टर्टल को सेटेलाइट टैग करने वाली देश पहली संस्था भी हैं। 57 ओलिव रिडिली टर्टल, 7 ग्रीन टर्टल और 05 हाक्सबिल टर्टल को भी संस्था ने अपने प्रयासों से पुनः समुद्र में वापस छोड़ा हैं।

उड़ीसा, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, फिशरीज डिपार्टमेंट, इंडियन कोस्टल गार्ड और मरीन पुलिस की मदद से समुद्री कछुए एवं खतरे में श्रेणीबद्ध की गई समुद्री प्रजातियां को सुरक्षा और वापस से समुद्र में छोड़ने का कार्य संस्था के द्वारा किया जा रहा है। संस्था द्वारा जिला एवं राज्य स्तर के लगभग 4000 कर्मचारियों एवं फिशिंग कम्युनिटी को मरीन इकोसिस्टम और समुद्री कछुए के बचाव के संबंध में विभिन्न कार्यालयों के माध्यम से जागरूक किया गया है।

वर्ष 2021 में संस्था के द्वारा घोस्ट नेट के पुनः प्राप्त करने के लिए अभियान चलाया गया जिसमें लगभग 58,000 किलोग्राम घोस्ट नेट को पुनः समुद्री तटों से और समुद्र के अंदर से प्राप्त किया गया। इसके अतिरिक्त संस्था के द्वारा "ट्री फाउंडेशन ओशन गार्जियन स्कूल प्रोग्राम" भी चलाया जा रहा है। यह प्रोग्राम 348 स्कूलों में चलाते हुए लगभग 2,55,000 से अधिक स्कूली छात्र छात्राओं को समुद्री मालवा/ मरीन पॉल्यूशन और समुद्री जीवों के संरक्षण के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया गया।

आवश्यकता है समाधान की-

  1. नेशनल मरीन लिटर पॉलिसी बनाए जाने की घोषणा भारत सरकार के द्वारा 2018 में की गई है जिसे अभी तक फॉर्मूलेट नहीं किया गया जिसे शीघ्र बनाए एवं लागू किए जाने की आवश्यकता है।
  2. फिशिंग एक्टिविटीज की सघन मॉनिटरिंग किए जाने की आवश्यकता है जिससे कि घोस्ट नेट जैसी समस्या उत्पन्न ना हो।
  3. भारतीय राज्य सरकारों ने सिंगल यूज प्लास्टिक उपयोग को प्रतिबंधित किया है फिर भी प्लास्टिक का उपयोग खुलेआम और समुद्री तटों के किनारे/कोस्टल बीच पर प्रयोग किया जाता है। जिसे संबंधित नगर निकायों एवं ग्राम निकायों के द्वारा प्रभावी मॉनिटरिंग करते हुए उल्लंघनकर्ता के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की आवश्यकता है।
  4. मादा कछुए के द्वारा दिए गए 1000 अंडे में से सिर्फ 10 ही वयस्क कछुआ में परिवर्तित हो पाते हैं। कछुए एक प्रकार से समुद्री जैव विविधता और आहार श्रृंखला का एक हिस्सा है। कछुए एक प्रकार से समुद्री वनस्पतियों और कोरल रीफ का संरक्षण करते हैं अतः इस प्रकार की जलीय जीव जंतुओं के घोस्ट नेट में फंसने और पोचिंग / अवैध शिकार से बचाव हेतु संरक्षण योजना और प्रभावी क्रियान्वन की आवश्यकता है।

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