रेन वाटर हार्वेस्टिंग मामला : डीपीसीसी ने एनजीटी से की 50 हजार से 5 लाख जुर्माना लगाने की सिफारिश

वहीं, ट्रिब्यूनल में डीपीसीसी ने गैर आवासीय भवनों में जुर्माने में 50 फीसदी अधिक जुर्माना वसूलने की सिफारिश भी की है।

By Vivek Mishra

On: Monday 08 January 2024
 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की तरफ से हाल ही में दाखिल की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे भवन जिनमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था ठीक तरीके से नहीं हैं उनसे पर्यावरणीय उपकर वसूलने के लिए एक उचित आदेश पारित किया जाए। 

मौजूदा नियम के मुताबिक दिल्ली में सभी भवन जो 100 वर्ग मीटर से अधिक में फैले हुए हैं उन्हें रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना होगा। यदि संबंधित भवन ऐसा करने में विफल होते हैं तो उन पर दिल्ली जल बोर्ड की बिल का 50 फीसदी अधिक जुर्माना लगाने का प्रावधान है। 

एनजीटी में दाखिल डीपीसीसी रिपोर्ट में एनजीटी से मांग की गई है कि 100 वर्ग मीटर से 5000 वर्ग मीटर तक के मकानों के लिए जिनमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं हैं या त्रुटिपूर्ण हैं उन पर क्रमशः ट्रिब्यूनल 50 हजार रुपए से लेकर 5 लाख रुपए तक के जुर्माना वसूलने का आदेश पारित करें। 

वहीं, ट्रिब्यूनल में डीपीसीसी ने गैर आवासीय भवनों में जुर्माने में 50 फीसदी अधिक जुर्माना वसूलने की सिफारिश भी की है। डीपीसीसी ने अपनी सिफारिश में कहा है कि उनके अलावा दिल्ली जल बोर्ड और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को इस जुर्माने को लगाने का अधिकार होना चाहिए साथ ही जो राशि जुर्माने के तौर पर मिले उससे दिल्ली में वर्षा जल संचय कामों में लगाया जाना चाहिए। 

डीपीसीसी ने अपनी सिफारिशी रिपोर्ट में एक संयुक्त समिति के गठन का प्रस्ताव भी रखा है जिसमें डिवीजनल कमिश्नर, दिल्ली विकास प्राधिकरण, डीजेबी और दिल्ली नगर निगम के प्रतिनिधियों के शामिल होने की बात कही गई है। यह  वर्षा जल संचयन निर्देशों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करेंगे और मुख्य सचिव को प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। डीपीसीसी ने दिल्ली के सभी जिलों के उपायुक्तों से 100 वर्ग मीटर से अधिक की इमारतों में वर्षा जल संचयन प्रणालियों की स्थापना और रखरखाव की निगरानी करने का आग्रह किया है।

वहीं, द्वारका के एक मामले में लिए गए 235 भूजल नमूनों में डीपीसीसी ने बताया कि 180 नमूने प्रदूषित पाए गए। इन नमूनों में अमोनिया नाइट्रोजन और घुलनशील ठोस पदार्थ पाया गया। रिपोर्ट में इसका कारण वर्षा जल संचयन गड्ढ़ों में कचरे का मिश्रण बताया गया है।

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