कहानी उस इंसान की, जिसकी वजह से तालाब बचाना मुहिम बन गया

नारायणजी चौधरी की पहचान तालाब बचाओ अभियान के प्रमुख पैरोकार के रूप में होती है

By Pushya Mitra

On: Thursday 06 February 2020
 
दरभंगा शहर में तालाब बचाने की मुहिम चलाने वाले नारायणजी चौधरी। फोटो: पुष्यमित्र

दरभंगा के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नारायणजी चौधरी के पास रोक उत्तर बिहार के कई इलाकों से फोन आते हैं। फोन करने वाला कहता है कि फलां जगह तालाब पर कब्जा किया जा रहा है, तो हमें क्या करना चाहिए? या हमें अपनी जमीन पर तालाब खुदवाना है, तो हम क्या करें? वैसे तो चौधरी मिथिला ग्राम विकास संस्थान नामक एनजीओ चलाते हैं, जिसका मूल काम आजीविका और माइक्रो फाइनेंस से संबंधित है, मगर उन्हें लोग तालाब बचाओ अभियान के प्रमुख पैरोकार के रूप में ही जानते हैं। आज उनकी वजह से दरभंगा शहर और जिले में कई तालाबों का अतिक्रमण रुका है, स्थानीय प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने का काम शुरू किया है, लोगों में तालाब को लेकर जागरूकता आयी है। हालांकि उन्हें लगता है कि अभी नाममात्र का भी बदलाव नहीं आया है, मगर सच यही है कि उनकी वजह से दरभंगा में तालाब को बचाने को लेकर जागरूकता का संचार हुआ है।

वह कहते हैं कि दरभंगा शहर की पहचान पोखर, पान और मखान को लेकर है। यहां कभी हर पग पर पोखर थे। अभी भी बड़ी संख्या में यहां तालाब दिख जायेंगे। 1964 के गजेटियर के हिसाब से दरभंगा शहर में ही 300 से अधिक तालाब हुआ करते थे। 1989 में प्रो एसएच बज्मी ने शहर के तालाबों का सर्वेक्षण किया था और उन्होंने 213 तालाबों का जिक्र किया था। मगर 2016 में वहां के नगर निगम ने जानकारी दी कि शहर में सिर्फ 84 तालाब बचे हैं। मतलब बड़ी तेजी से शहर के तालाब भरे गये। शहर के बीचोबीच स्थित तीन बड़े और सात-आठ सौ साल पुराने तालाब दिग्घी, हराही और गंगा सागर जिनकी संरचना इतनी खूबसूरत है कि ये अपनी खूबसूरती से भोपाल के भोजताल और हैदराबाद के हुसैन सागर को मात दे सकते थे। मगर उपेक्षा और अतिक्रमण की वजह से उनका आकार छोटा होता चला गया, उनमें कचरा और गंदगी डालकर उन्हें डबरे में बदला जाने लगा।

चौधरी बताते हैं कि इन सबका नतीजा हुआ कि शहर का भूजल तेजी से घटने लगा। 2005 में हमारा दफ्तर जिस भवन में था, उसका हैंडपंप सूख गया, तभी शहर के कई इलाकों में सबमर्सिबल पंप लगने लगे। तभी से मुझे लगने लगा कि अगर तालाब को नहीं बचाया गया तो हमारे जल संपन्न इलाके की स्थिति भी देश के दूसरे इलाकों जैसी हो जाएगी।

इसके बाद उन्होंने राजस्थान जाकर जल पुरुष राजेंद्र सिंह से मुलाकात की और वहां रह कर तालाबों के संरक्षण और उससे संबंधित सरकारी नियमों के बारे में जानकारी ली। लौट कर उन्होंने दरभंगा शहर के तालाबों का सर्वेक्षण किया और 24 तालाबों के भीषण अतिक्रमण पर एक विस्तृत मेमोरेंडम बनाकर स्थानीय प्रशासन को पेश किया। मगर प्रशासन ने उनकी शिकायत पर ध्यान नहीं दिया। वे फिर भी लगे रहे, 2014 में उन्होंने शहर के सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाकर इस विषय़ पर जागरूक करने की कोशिश की।

शहर के गणमान्य लोगों से अधिक झुग्गियों में रहने वाली गरीब आबादी इनसे अधिक प्रभावित हुई, क्योंकि तालाबों के भरे जाने से उन्हें सबसे अधिक नुकसान हो रहा था। जहां वे नहाते और कपड़े धोते, वह जगह एक दिन गायब हो जाती। शहर के एक बेतागामी तालाब को जब इसी तरह भरा जाने लगा तो स्थानीय गरीब लोगों ने विरोध किया और इनके मार्गदर्शन में आंदोलन शुरू किया, लेकिन एक साथी की हत्या होने के चलते आंदोलन को खत्म कर दिया गया। मगर वे लगे रहे. जब-जब दरभंगा शहर में किसी भी तालाब में कचरा या मिट्टी डाली जाती, सौंदर्यीकरण के नाम पर ही कोई अवैध निर्माण होता या अतिक्रमण होता तो वे विरोध में प्रशासन के पास आवेदन डालते। शहर और पटना के पत्रकारों को इसकी जानकारी देते। उनके इस अकेले अभियान से धीरे-धीरे माहौल बना, शहर के कई लोग उनसे साथ आये। उन्हें मदद के लिए जगह-जगह बुलाया जाने लगा।

नारायणजी चौधरी कहते हैं कि अब सरकार की तरफ से पूरे राज्य में तालाबों पर हुई अतिक्रमण को चिह्नित करने और उसे अतिक्रमण मुक्त कराने का अभियान चल रहा है। मगर दुर्भाग्य से दरभंगा शहर ही इसमें सबसे पीछे है. अभी भी तालाब की अतिक्रमण की शिकायत करने वालों को प्रशासन दूसरी तरह से प्रताड़ित करता है। उसके खिलाफ झूठी एफआईआर करवाता है। आज तक शहर के एक व्यक्ति पर तालाबों के अतिक्रमण की शिकायत दर्ज नहीं हुई। लगता नहीं है कि मेरे इस अभियान का जमीन पर कोई असर है। मगर उनके ही अभियान का असर है कि शहर के मखनाही में एक तालाब को भरने की कोशिश का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि तालाब भले आपका हो, मगर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार आप इसे भर नहीं सकते. क्योंकि आपके तालाब भरने से हमारे सामूहिक पर्यावरण का नुकसान होगा।

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