बदलती जलवायु के कारण दुनिया भर में तेजी से हो रहा है झीलों से वाष्पीकरण

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु में आते बदलावों के साथ वाष्पीकृत होते पानी की यह मात्रा हर साल 3.12 क्यूबिक किलोमीटर की दर से बढ़ रही है

By Lalit Maurya

On: Thursday 07 July 2022
 

आपको यह जानकारी होगी कि जहां एक तरफ पूरी दुनिया पानी की कमी से त्रस्त है, वहीं हर साल झीलों और जलाशयों से करीब औसतन 1,500 क्यूबिक किलोमीटर पानी वाष्पीकृत हो जाता है। इतना ही नहीं भाप बन कर उड़ रहे इस पानी की वाष्पीकरण दर हर साल 3.12 क्यूबिक किलोमीटर की रफ्तार से बढ़ रही है।

शोधकर्ताओं ने झीलों से होते वाष्पीकरण के यह जो आंकड़े जारी किए हैं वो पिछले अनुमान से करीब 15.4 फीसदी ज्यादा है। देखा जाए तो वाष्पित होते जल की यह मात्रा इतनी है जिससे करोड़ों लोगों की पानी सम्बन्धी जरूरतें को पूरा किया जा सकता है। अनुमान है कि सतह पर मौजूद ताजे पानी का करीब 87 फीसदी हिस्सा तरल रूप में इन्हीं प्राकृतिक और कृत्रिम झीलों में मौजूद है।

भौगोलिक रूप से देखें तो दुनिया भर में यह प्राकृतिक झीलें और कृत्रिम जलाशय धरती के करीब 50 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करते हैं, जोकि इकोसिस्टम और जल प्रणाली के लिए बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। यह झीलें न केवल दुनिया भर में जलीय और स्थलीय जैवविविधता के लिए सहायक होती हैं साथ ही हम मनुष्यों के लिए भी महत्वपूर्ण जल संसाधन हैं।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस बढ़ती दर के लिए कहीं न कहीं जलवायु में आता बदलाव जिम्मेवार है। जो आने वाले समय में दुनिया के सामने बड़ी चुनौतियां पैदा कर सकता है। यह जानकारी हाल ही में टेक्सास ए एंड एम के शोधकर्ताओं द्वारा की गई रिसर्च में सामने आई है। इस रिसर्च के नतीजे हाल ही में जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।  

झीलों में मौजूद बर्फ के आवरण में दर्ज की गई है 23 फीसदी की कमी

देखा जाए तो यह झीलें एक बड़े खुले जल क्षेत्र के रूप में विद्यमान हैं। ऊपर से वातावरण में मौजूद वाष्प दबाव भी इन झीलों से होते वाष्पीकरण को प्रभावित कर रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इतना अहम होने के बावजूद इन जल स्रोतों से होते वाष्पीकरण की मात्रा और उसके स्थानिक वितरण के बारे में अभी तक बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।

गौरतलब है कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इन झीलों और जलाशयों से होते वाष्पीकरण को समझने के लिए उपग्रह से प्राप्त जानकर और मॉडलिंग उपकरणों का उपयोग किया है। इनकी मदद से उन्होंने वैश्विक झीलों का एक नया डेटासेट भी तैयार किया है, जिसमें उन्होंने 1985 से 2018 के बीच दुनिया भर में 14 लाख झीलों और कृत्रिम जलाशयों से वाष्पीकरण के कारण होते पानी के नुकसान सम्बन्धी रुझानों का विश्लेषण किया है। 

अध्ययन में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनसे पता चला है कि लम्बी अवधि में इन झीलों से हर साल औसतन 1,500 क्यूबिक किलोमीटर पानी वाष्पीकृत हो रहा है। वाष्पीकरण में 58 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। साथ ही इसमें 2.1 फीसदी प्रति दशक की दर से वृद्धि हो रही है। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इन झीलों में मौजूद बर्फ के आवरण में करीब 23 फीसदी की कमी आई है।

वहीं झील की सतह क्षेत्र में 19 फीसदी की वृद्धि हुई है। शोधकर्ताओं ने जलाशयों पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि भले ही यह कृत्रिम झीलें वैश्विक झील भंडारण क्षमता का केवल 5 फीसदी हिस्सा हैं। इसके बावजूद यह झीलों से होने वाले 16 फीसदी वाष्पीकरण के लिए जिम्मेवार हैं।

इन जलाशयों से होते वाष्पीकरण की यह मात्रा कितनी बड़ी है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इन जलाशयों से हर साल इतना पानी वाष्पीकृत हो रहा है जो दुनिया की 20 फीसदी आबादी की जल सम्बन्धी जरूरतों को पूरा कर सकता है। इतना ही नहीं आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले 33 वर्षों में इन जलाशयों से वाष्पीकरण के कारण होने वाली जल हानि हर दशक 5.4 फीसदी की दर से बढ़ रही है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि निष्कर्ष दर्शाते हैं कि वैश्विक स्तर पर इन झीलों पर पड़ते जलवायु के असर का आंकलन करने के लिए वाष्पीकरण की दर के जगह वाष्पीकरण की मात्रा कहीं ज्यादा मायने रखती है। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में जलवायु में आते बदलावों के साथ यह समस्या कही ज्यादा गंभीर होती जाएगी।

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