बैठे ठाले: प्यासा कौवा

“प्यास से व्याकुल कौवा भूल गया कि उस घड़े में ऊंची जाति के लोगों के लिए पानी रखा है”

By Sorit Gupto

On: Saturday 29 October 2022
 
सोरित / सीएसई

बहुत दिन पहले की बात है। एक घने जंगल में जामुन का पेड़ था। मीठे जामुन के लालच में बहुत-सी चिड़ियों ने उस पर घोंसला बना लिया। उन्हीं में एक था, “खोसला का घोंसला।” इसमें खोसला नामक कौवा सपरिवार साथ रहता था।

एक दिन जब पिता कौवा अपने स्मार्टफोन पर फेसबुक-इंस्टा पर स्टेटस अपडेट करने में मशगूल था, तभी कौवे के बच्चे ने कहानी सुनाने की जिद की।

पिता कौवा परेशान कि वह कौन सी कहानी सुनाए? उसने कहा, “तुम नेटफ्लिक्स-अमेजॉन पर कोई सीरीज क्यों नहीं देख लेते? मुझे क्यों डिस्टर्ब कर रहे हो?” बच्चा कौवा इस डांट से सहम गया और बोला, “मेरे फोन का डेटा खत्म हो गया है। आपको मैं पिछले दो दिन से बोल रहा हूं कि मेरा डेटा रिचार्ज कर दो पर आप सुन ही नहीं रहे हो।”

अब बेचारा पिता कौवा क्या करता? मजबूरन उसे कहानी सुनानी पड़ी। पिता कौवे ने कहानी शुरू की, “बहुत दिन पहले की बात है। एक घने जंगल में जामुन का पेड़ हुआ था। उस पर मीठे जामुन के फल आते थे। जामुन के लालच में बहुत सी चिड़ियों ने वहां घोंसला बना लिया। उन्हीं में एक था “खोसला का घोंसला।” इस घोंसले में खोसला नामक एक कौवा अपने परिवार के साथ रहता था।”

बच्चा कौवा बोला, “पिताश्री मैंने आपसे एक कथा सुननी चाही और आप अपनी रामायण खोलकर बैठ गए।” पिता कौवे को ऐसे हमले की उम्मीद नहीं थी इसलिए वह सकपका गया पर खुद को संभालता हुआ बोला, “कहानी सुना रहे हैं तो चुप्प मारकर सुनो। बीच में लिबिर-लिबिर करोगे तो कहानी बंद!” अब सकपकाने की बारी बच्चे कौवे की थी, उसने तुरंत किसी “वीर” की तरह माफी मांग ली।

पिता कौवा बोला, अब आगे सुनो, वह कोई अगस्त महीने के दिन थे, जाहिर है जामुन का सीजन खत्म हो चुका था। आसमान में बादल घिर-घिर आते पर बारिश न होती। जो थोड़ी बहुत होती तो जाते-जाते उमस बढ़ा जाती। बड़ा बुरा हाल था। ऐसी एक उमस और गर्मी से भरी दोपहर में कौवा बेचारा मारा-मारा फिर रहा था। वह इतना प्यासा कि अगर कहीं राष्ट्रगान भी चले तो दूसरे की नजर बचाकर पानी पी ले। मगर पानी का कहीं नामोनिशान नहीं था। जंगल तो जंगल अक्खा यूरोप के नदी-जलाशय सूख गए थे।

“मुझे पता है कि इसके बाद क्या हुआ पिताश्री” बच्चे कौवे ने एक बार फिर से टोकते हुए कहा, “उसे एक घड़ा मिला जिसमें पानी था। घड़े को देखकर वह बहुत खुश हुआ। यह कहानी हमें पहले भी सुना चुके हो कि घड़े में पानी कम था तब उस कौवे ने आसपास पड़े पत्थर के टुकड़े घड़े में डाल दिए जिससे पानी ऊपर आ गया। यही हुआ था न? बोलो न पिताश्री! आप अचानक साइलेंट मोड में क्यों आ गए?”

पापा कौवा बोला, “मेरी कहानी थोड़ी अलग है। गर्मी की एक दोपहर में वह प्यास से तड़पता हुआ पानी तलाश कर रहा था कि अचानक उसे एक विद्यालय में पानी का घड़ा दिखा। वह बहुत खुश हुआ पर प्यास से व्याकुल कौवा भूल गया कि उस घड़े में ऊंची जाति के लोगों के लिए पानी रखा है। जैसे ही वह पानी पीने लगा, विद्यालय के प्रधानाचार्य की नजर पड़ गई। प्रधानाचार्य को बहुत गुस्सा आया और वह उसे पीटने लगे। इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई।”

बच्चा कौवा बोला, “नीची जाति? ऊंची जाति? प्रधानाचार्य? विद्यालय? हमारी कहानी में तो यह सब कुछ भी नहीं था, बस थोड़े से कंकड़-पत्थर थे। यह आप किस कौवे की कहानी सुना रहे हैं पिताश्री?”

पापा कौवा ने कहा, “यह कहानी नन्हे बालक इंद्र की है।”

बच्चा कौवा बोला, “इस खबर को मैंने भी पढ़ा है। इंद्र की बात सोचते हुए मुझे नींद नहीं आ रही थी, इसलिए मैंने आपसे कहानी सुनाने की जिद की थी। पापा आप मुझे हमारी वाली कहानी सुना दो, मुझे नींद आ जाएगी।”

इतना कहकर बच्चा अपने पापा की गोद में दुबक गया।

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