मौसम विभाग ने माना, जुलाई में सक्रिय हो सकता है अल-नीनो, लेकिन सामान्य होगी बारिश

मौसम विज्ञान विभाग को उम्मीद है कि अधिकांश मध्य और आसपास के दक्षिण प्रायद्वीप और पूर्वी भारत और उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से अधिक बारिश होगी

By Akshit Sangomla

On: Friday 30 June 2023
 

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा है कि जुलाई माह में भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल नीनो बनने के पूरे आसार हैं, लेकिन बावजूद इसके जुलाई में भारत में सामान्य बारिश हो सकती है।

यहां यह खास बात है कि अल नीनो, दक्षिणी दोलन घटना का गर्म चरण है। इसकी वजह से तापमान में वृद्धि होती है और बारिश में उल्लेखनीय कमी या अधिकता देखी जाती है।

यह भी कहा गया कि महासागर नीनो सूचकांक - जो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में तीन महीने की अवधि में औसत समुद्री सतह के तापमान में विसंगतियों का माप है - जून के अंत में सीमा रेखा अल नीनो (0.47) है। आईएमडी ने कहा कि यह जुलाई में सीमा (0.50) को पार कर 0.81 के मूल्य तक पहुंच जाएगा।

अल नीनो आम तौर पर भारत में मानसूनी वर्षा को कम कर देता है और इसे संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए) जैसी अन्य मौसम एजेंसियों द्वारा पहले ही घोषित किया जा चुका है।

एनओएए ने 8 जून को भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल नीनो के अस्तित्व की घोषणा की। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने भी कहा था कि जुलाई के पहले सप्ताह में अल नीनो सक्रिय हो सकता है।

ऐसा तब हुआ है, जब जून के महीने में लू, अत्यधिक खतरनाक चक्रवात बिपरजॉय, पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ और हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन सहित कई चरम मौसम की घटनाएं हुई। इतना ही नहीं, देश भर में मानसूनी हवाओं की अजीब प्रगति भी हुई, जिसमें 10 दिनों से अधिक समय तक ठहराव रहा और उसके बाद मॉनसून बहुत तेजी से आगे बढ़ा।

आईएमडी को मध्य भारत के अधिकांश हिस्सों और आसपास के दक्षिण प्रायद्वीपीय और पूर्वी भारत और उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से अधिक बारिश की उम्मीद है। जबकि जून में पूर्वी और मध्य भारत में कम वर्षा के साथ-साथ लू का भी सामना करना पड़ा।

आईएमडी ने कहा कि जुलाई के पहले सप्ताह में मध्य भारत और उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में बारिश को 4 जुलाई के आसपास बंगाल की खाड़ी में कम दबाव का क्षेत्र बनने से मदद मिलेगी।

ऐसे दो कम दबाव वाले क्षेत्रों ने जून में भी मानसून की प्रगति और प्रदर्शन में मदद की। इनमें से पहला 9 जून को बना और पूर्वोत्तर राज्यों की ओर बढ़ गया, जिससे भारी वर्षा हुई और बाद में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई, खासकर असम में बाढ़ का व्यापक असर दिखा।

दूसरा कम दबाव का क्षेत्र 25 जून को बना और पूर्वी और मध्य राज्यों से लेकर उत्तर-पश्चिम भारत तक मानसूनी हवाओं की प्रगति में मदद की।

आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "जून के महीने में बारिश में 10 प्रतिशत की कमी रही, लेकिन यह देखा गया है कि जिन वर्षों में जून में बारिश सामान्य से कम होती है, जुलाई में बारिश सामान्य रही है।"

हालांकि देश भर में 10 प्रतिशत की कमी पूरी तस्वीर पेश नहीं करती है क्योंकि 29 जून तक 53 प्रतिशत जिलों में कम या बहुत कम बारिश हुई थी। 14 राज्यों में कम वर्षा हुई और दो में बहुत कम वर्षा हुई।

भारत के पश्चिमी तट पर बारिश की भारी कमी रही, खासकर केरल में, जहां जून में (29 जून तक) सामान्य से 60 फीसदी कम बारिश हुई।

महापात्र ने कहा, "जून के तीसरे सप्ताह में पूर्वी और मध्य भारत में लू चली, पूर्वोत्तर भारत में भारी बारिश और बाढ़ आई और पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत में चक्रवात बिपरजॉय की वजह से बारिश हुई।"

आईएमडी के अनुसार, जून के महीने में देश भर में 377 बहुत भारी वर्षा की घटनाएं (115.6 मिमी से 204.5 मिमी के बीच) और 62 अत्यधिक भारी वर्षा की घटनाएं (204.5 मिमी से अधिक) हुईं।

बहुत भारी वर्षा की घटनाओं की संख्या पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक थी और 2022 में हुई तुलना में दोगुनी से भी अधिक थी।

अत्यधिक वर्षा की अधिकांश घटनाएं पश्चिमी भारत में गुजरात और राजस्थान और पूर्वोत्तर भारत में असम और मेघालय में केंद्रित थीं।

पश्चिम में अधिकांशतः चक्रवात बिपरजॉय की वजह से बारिश हुई, जबकि उत्तर-पूर्व में निम्न दबाव क्षेत्र और सक्रिय मानसून के कारण बारिश हुई।

चक्रवात के कारण गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और निकटवर्ती उत्तर प्रदेश में काफी भारी वर्षा हुई, जिससे जून में पहले दो राज्यों में अत्यधिक वर्षा हुई।

29 जून तक राजस्थान में सामान्य से 188 फीसदी ज्यादा बारिश हुई थी, जबकि गुजरात में 78 फीसदी ज्यादा बारिश हुई।

महापात्र ने कहा, "चक्रवात बिपरजॉय की उत्पत्ति ने 8 जून को केरल में मानसून की शुरुआत में मदद की। लेकिन बाद में इसकी गतिविधि ने अरब सागर और उसके बाद प्रायद्वीपीय भारत के उत्तरी हिस्से में मानसून को रोक दिया।"

उन्होंने कहा कि चक्रवात बिपरजॉय हाल के दिनों में सबसे लंबे समय तक रहने वाले चक्रवातों में से एक था।

बंगाल की खाड़ी के ऊपर मानसूनी हवाएं 12 जून से 21 जून के बीच रुक गईं, जबकि अरब सागर के ऊपर वे 11 जून से 23 जून के बीच रुक गईं।

बंगाल की खाड़ी के ऊपर मानसूनी हवाओं के रुकने से कई पूर्वी, मध्य और कुछ दक्षिणी भारतीय उपखंडों में सामान्य से अधिक गर्मी के दिन पैदा हुए।

इन गर्म दिनों की सबसे अधिक संख्या बिहार में 19 और दूसरे स्थान पर गंगीय पश्चिम बंगाल में 17 दिन रिकॉर्ड किए गए। झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना और तटीय आंध्र प्रदेश में 14 हीटवेव वाले दिन देखे गए। पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तटीय आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में लू वाले दिन सामान्य से ऊपर रहे।

पूरे भारत में मार्च से जून के बीच कुल 218 मेट-सबडिवीजन-डे (एमएसडी) देखे गए, जो पिछले 13 वर्षों में तीसरा सबसे अधिक है। सबसे अधिक 2010 में 578 था और दूसरा सबसे अधिक 2022 में 455 एमएसडी था। जब एक मौसम संबंधी उपखंड में एक दिन के लिए हीटवेव की रिपोर्ट की जाती है तो तो आईएमडी इसे एक एमएसडी के रूप में परिभाषित करता है।

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