साहित्य में पर्यावरण: फिर से प्रकृति की ओर लौटने का अवसर
डाउन टू अर्थ, हिंदी का छठा वार्षिकांक पर्यावरण में साहित्य विषय पर समर्पित था। इस अंक में प्रकाशित अशोक वाजपेयी का आलेख
On: Friday 08 October 2021
अशोक वाजपेयी जी की कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें-
पर्यावरण को लेकर चिंता सारी दुनिया में बढ़ी है और भारत में यह व्यापक हुई है। साहित्य में प्रकृति को लेकर नए रुझान, नए प्रश्न, नई निकटता आदि स्पष्ट रूप से विन्यस्त हो रहे हैं। विनोद कुमार शुक्ल की कविताएं और उपन्यास, ध्रुव शुक्ल और उदयन वाजपेयी की कविताएं, मंगलेश डबराल, अरुण कमल, अनामिका, तेजी ग्रोवर आदि कि कविताओं में यह चिंता प्रगट होती रही है। ये नाम कुछ उदाहरण भर हैं।
पहले ऐसे कई कवि हुए हैं जिनके लिए प्रकृति समूचे मानव-जीवन का समग्र और पर्याप्त रूपक थी। धीरे-धीरे स्थिति अधिक जटिल हुई है और प्रकृति अपनी केंद्रीयता से अपदस्थ हुई है। वर्तमान पर्यावरण के संकट ने फिर से प्रकृति की ओर लौटने का अवसर दिया है। जो कुछ नष्ट या टूटफूट रहा है उसका बड़ा हिस्सा पर्यावरण से जुड़ा हुआ है। आज का लेखक उसके प्रति पहले की अपेक्षा अधिक सजग है।
साहित्य में पर्यावरण का इतिहास बताना कठिन है। पर्यावरण शब्द ही इधर कुछ दशकों पहले चलन में आया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर, छायावादी कवियों, नयी कविता आदि में गहरा प्रकृतिबोध है। विकास की आधुनिक धारणा से उसकी जो क्षति हो रही है उसके प्रति सजगता नहीं रही है। पारंपरिक रूप से भारत में प्रकृति के आदर, उसके सम्मान, उसके सान्निध्य, उसकी पवित्रता, उससे मिलने वाला अध्यात्यमिक संतोष और राहत की परम्परा रही है। यह परम्परा इन दिनों धड़ल्ले से टूट-फूट रही है। आज का कवि इस टूटफूट का कविता में साक्षी है और उसके प्रति अपना रोष भी प्रगट करता है।
साहित्य में पर्यावरण के इतिहास का मुझे पता नहीं है। हिन्दी में साहित्य वैसे भी लोकप्रिय कम ही होता है। हमारा हिन्दी समाज साहित्य और पुस्तकों से मुँहफेरे समाज रहा है। मौजूदा परिस्थितियां बहुत जटिल हैं उसमें परम्परा के नाम पर, धर्म के नाम पर, संस्कृति के नाम पर घोर दुर्व्याख्या, कदाचरण, अत्याचार, अन्याय आदि हो रहे हैं। पर्यावरण की विक्षति इसी का हिस्सा है। साहित्य इस समय जब झूठ सत्तारुढ़ और लोकप्रिय है तब सच पर अड़ा रहे और इस विक्षति को ईमानदारी और साहस से दर्ज करे यही उसका योगदान हो सकता है।
साहित्य हमेशा ही, हर देश और काल में, मनुष्य की चिंताओं-सुख-दुखों-अनुभवों-भावनाओं-संभावनाओं को संबोधित करता रहा है। आज पर्यावरण पर विश्वव्यापी दबाव है और उसकी रक्षा एक महत्वपूर्ण चिंता है। साहित्य की यह उपयोगिता है कि वह हमें जीवन में आने वाले संकटों से अवगत कराते हुए चेतावनी दे रहा है। अगर वह पर्यावरण और उस पर मँड़राते संकटों को पाठकों के ध्यान और सजगता के सकर्मक वितान में ला देता है तो यह मानवीय दृष्टि से बहुत उपयोगी काम होगा।
(डाउन टू अर्थ के अनिल अश्विनी शर्मा और राकेश मालवीय द्वारा पूछे गए सवाल -जवाब पर आधारित )