ये हैं भारत के असली स्पाइडर मैन, बनाया देश का पहला मकड़ालय

पौराणिक ग्रंथों से लेकर इतिहास के साक्ष्यों में अपनी जगह बनाने वाले मकड़ी के बारे में जानना बेहद दिलचस्प है। जबलपुर में जीवित मकड़ियों का एक मकड़ालय है, जहां मकड़ियों की विविध प्रजातियां मौजूद हैं। यह काम वैज्ञानिक सुमित चक्रवर्ती पिछले 48 वर्षों से कर रहे हैं। उन्होंने अनिल अश्विनी शर्मा से बातचीत में मकड़ियों की अनोखी दुनिया के कई रहस्यों से परदा उठाया

By Anil Ashwani Sharma

On: Thursday 06 February 2020
 
1. मछली का शिकार करने वाला फीशर स्पाइडर (नाइलस स्पाइडर), 2. स्टील तार से भी मजबूत जाला बनाने वाला ज्वाइंट वुड स्पाइडर ( नेफिला स्पाइडर), 3.भारत को सबसे जहरीला इंडियन रेड बैक स्पाइडर (लेट्रोडेक्टस हासेली), 4.सोशल स्पाइडर (स्टेगोडाइफस) मिलकर शिकार करता है, 5. शिकार करने वाला हंटर स्पाइडर (हैट्रोपोडा स्पाइडर) (सुमित चक्रवर्ती)

मकड़ी या मकड़ा (स्पाइडर) को देखने-पढ़ने या सुनने के बाद जेहन में केवल एक ही खयाल आता है “हॉलीवुड का स्पाइडर मैन” या आमतौर पर आदमी इसे देखते ही अपनी नाक-भौं सिकोड़ कर तिरस्कार भरी नजरों से देखता है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि भारत में कोई असली में “स्पाइडर मैन” हो सकता है? तो अब आप अपनी कल्पना की उड़ान को यहीं पर लगाम दीजिए। हम आपको यहां एक असली स्पाइडर मैन यानी वैज्ञानिक डॉ. सुमित चक्रवार्ती से रूबरु कराते हैं। सुमित पिछले लगभग पांच दशकों से देशभर में पाए जाने वाले सैकड़ों प्रकार के स्पाइडर पर काम कर रहे हैं। न केवल शोध कर रहे हैं बल्कि अब तक 150 से अधिक प्रजाति के स्पाइडर एकत्रित कर देश का पहला मकड़ालय (अरेकनेरियम) तैयार किया है।

विशेष मुलाकात के दौरान उन्होंने डाउन टू अर्थ से कहा,“घरों में जब आप मकड़ी देखते हैं तो कोशिश करते हैं कि उन्हें हटा दें ताकि घर साफ रहे। लेकिन सच ये है कि ये मकड़े आपके घरों में मौजूद उन कीट-पतंगों को मार देते हैं, जो हमें खुली आंखों से नहीं दिखाई पड़ते। कुछ कीड़े वे नहीं खाते हैं, लेकिन उन्हें मार अवश्य देते हैं।” आमतौर पर स्पाइडर को कीट-पतंगा माना जाता है लेकिन वास्तव में वे बिना रीढ़ व जुड़े हुए पैरों वाले जीव के समूह का एक हिस्सा हैं। हालांकि, स्पाइडर को बिच्छू व कुटकी (फैमली) जैसे जीवों के कुनबे में रखा गया है।

नंगी आंखों से किसी स्पाइडर की आधा दर्जन से अधिक आंखों को देख पाना नामुमकिन होता है। सुमित ने स्पाइडर की शारीरिक संरचना के बारे में बताया कि स्पाइडर कीट-पतंगों से इस लिहाज से अलग हैं, क्योंकि उनमें आठ पैर, आठ आंखें और रेशम छोड़ने वाली ताकत होती है। कुछ की छह आंखें होती हैं, जबकि कुछ बिल्कुल अंधे होते हैं। मकड़ों की आंखें हमारी आपकी आंखों की ही तरह होती हैं लेकिन वह आकार में काफी छोटी होती हैं। उनके शरीर को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला सिर और दूसरा पेट और यह वक्ष से जुड़ा होता है। इसके विपरीत कीट-पतंगों के शरीर तीन हिस्सों में बंटे होते हैं।

अब तक के अपने अध्ययन के दौरान चक्रवर्ती ने बताया कि भारत में स्पाइडर की लगभग 1500 प्रजातियां पाई जाती हैं, यह 65 कुनबों में आते हैं। जबकि दुनियाभर में स्पाइडर की लगभग 48,165 प्रजातियां हैं, जिन्हें 117 कुनबों में बांटा गया है। स्पाइडर इस नजरिए से अद्भुत होते हैं क्योंकि वे विशेष रेशम ग्रंथियों की मदद से रेशम का निर्माण करते हैं। इस तरह के स्पाइडर को दो बड़े समूहों में बांटा जाता है। एक समूह वो होता है, जो अपने शिकार को फंसाने के लिए जाले बुनता है और दूसरा वो होता है जो घूम-घूम कर शिकार करता है।

जबलपुर स्थित ट्रोपिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में सुमित चक्रवर्ती छात्रों को स्पाइडर के बारे में जानकारी देते हुए

फसल लगे खेत, जंगल और वनों की जैविकता को बरकरार रखने में स्पाइडर अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे हानिकारक कीट का शिकार कर लेते हैं। इसके साथ ही परभक्षी होने के नाते स्पाइडर पारिस्थितिक तंत्र के खाद्य पिरामिड को प्राकृतिक रूप से संतुलित भी रखते हैं। स्पाइडर हर जगह पाए जाते हैं, चाहे वो रेत से भरा रेगिस्तान हो या बर्फ से ढंका पहाड़। बहुत सारे स्पाइडर को नमीयुक्त व दलदली जगह पसंद है। इनमें से कई तो लंबे समय तक पानी के भीतर भी जीवित रह सकते हैं। भारत में मौजूद दलदली जगह में रहनेवाले माछभक्षी स्पाइडर आधे घंटे से ज्यादा वक्त तक पानी के भीतर जीवित रह सकते हैं। बर्फ के भीतर स्पाइडर माइनस 30 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी जिंदा रह सकते हैं। हालांकि ये समुद्र में नहीं पाए जाते, अलबत्ता समुद्र के किनारे और मुहानों पर स्पाइडर मिल जाते हैं।

अब तक हम और आप रेशम कीट से ही परिचित थे लेकिन चक्रवर्ती ने बताया कि एक ऐसा स्पाइडर है जो अपने शिकार को फंसाने के लिए रेशमी जाले बुनता है। स्पाइडर खुद इन जालों में नहीं फंसता क्यों कि जाला दो प्रकार के बुनता है एक सूखा और दूसरा चिपचिपा जिसमें शिकार फंसता है। वह सूखे वाले जाले पर चलता है। जब ये जाले पुराने पड़ जाते हैं और कीट-पतंगे नहीं फंसते हैं, तो स्पाइडर इन जालों को समेट कर खा जाता है। स्पाइडर के बनाए रेशम में प्रोटीन होता है और इसे स्पाइड्रॉइन कहा जाता है। ज्वाइंट वुड स्पाइडर के बनाए जाले तो स्टील के बने जाले से 10 हजार गुना मजबूत होते हैं। अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में दो दशक के व्यापक शोध के बाद बायोतकनीकी प्रक्रिया के तहत कृत्रिम रूप से इस रेशम का निर्माण किया जा रहा है। इसका इस्तेमाल बुलेट प्रूफ जैकेट, इंसुलेटिंग वायर, सर्जिकल स्टिचिंग धागे और डिस्पोजेबल कप तैयार करने में हो रहा है।

स्पाइडर की तुलना शेर से करना बेमानी होगी लेकिन यदि स्पाइडर की प्रवृत्ति को देखें तो पाएंगे कि मांसाहारी होने के बावजूद यह भी शेर की ही तरह मृत जीवों का भक्षण नहीं करता। यही नहीं वह अपने आकार का ही जीवित शिकार खोजता है। छोटे स्पाइडरों के एक समूह को छोड़ बाकी सभी स्पाइडर जहरीले होते हैं। स्पाइडर की लार ग्रंथि ही जहर ग्रंथि में तब्दील हो जाती है। स्पाइडर अपने शिकार के शरीर में जहर डाल देते हैं, जिससे शिकार की तत्काल मौत हो जाती है। स्पाइडर का जहर मानव के लिए खतरनाक नहीं होता क्योंकि उसमें जहर की मात्रा बहुत कम होती है और इससे मानव के शरीर में बहुत कम रासायनिक प्रतिक्रिया होती है। स्पाइडर के काटने से मधुमक्खी के काटने जितना ही दर्द होता है। लेकिन, कुछ खतरनाक रूप से जहरीले स्पाइडर भी इस दुनिया में हैं। इंडियन रेडबैक स्पाइडर भारत का सबसे जहरीला स्पाइडर है। इसका जहर तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है।

इस जहर का वैज्ञानिक नाम लेक्टोडिक्टस हैसल्सी है। इससे दवाई बनती है। ये मकड़ा मुख्य तौर पर सूखे इलाकों के पत्थरों में पाया जाता है। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में भी ये मिलता है। ये मनुष्यों पर हमला नहीं करता है जब तक कि आप उसके निवास स्थान में जाकर कुछ छेड़छाड़ न करें। कुछ स्पाइडर के शरीर के बाल भी खतरनाक होते हैं क्योंकि इसमें जहरीला तत्व पाया जाता है। चूंकि ये स्पाइडर जिस आबोहवा में रहते हैं और प्रजनन करते हैं वो मानव दुनिया से बिल्कुल अलग है, इसलिए मानव पर उनके हमले का कोई खतरा नहीं है। सुमित को स्पाइडर की कार्यप्रणाली का इल्म ऐसे ही नहीं हुआ है। वह कई घंटों तक जंगलों में या पुराने गिर-पड़े घरों में एक ही स्थान पर खड़े हो कर स्पाइडर की होने वाली गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखते थे। वह बताते हैं कि एक बार जब मैं पानी में कई घंटों तक एक स्पाइडर पर नजर गाड़े खड़ा रहा तो पता चला कि स्पाइडर की एक प्रजाति मछली भी खाती है। इसका वैज्ञानिक नाम नाइलस एल्बाकसिंग्टस है। यह स्पाइडर पानी में जाकर मछली का शिकार करता है। इसकी विशेषता होती है कि वह पानी के वेग से समझ जाता है कि मछली कितनी बड़ी है और वह उसका शिकार कर पाएगा कि नहीं। इसके अलावा एक प्रजाति का सोशल स्पाइडर पेड़ पर रहता है। ये पत्ते और सिल्क से घोंसला बनाते हैं, जिसमें सैकड़ों मकड़े रहते हैं। यूं तो मकड़े अकेले रहते हैं क्योंकि उन्हें एक-दूसरे को खा जाने का डर रहता है। लेकिन सोशल स्पाइडर एक साथ रहते हैं।

जबलपुर स्थित ट्रोपिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में सुमित चक्रवर्ती  द्वारा देश का पहला मकड़ालय स्थापित  किया गया है

इनका शिकार करने का तरीका अद्भुत होता है। उनके जाल में जब शिकार फंसता है, तो सबसे छोटे मकड़े को भेता है। वह सिग्नल (जाले को हिला कर कंपन पैदा करता)देता है कि वह खाने लायक है या नहीं और यदि वह खाने लायक होता है तो वह सिग्नल देता है। फिर कई और मकड़े आते हैं और शिकार में जहर डाल कर उसे उठा ले जाते हैं। एक हंटर स्पाइडर होता है। यह घरों के कोने में मिट्टी का बिलनुमा एक घर बनाता है। फिर जंगल में जाकर स्पाइडर पकड़ता है। स्पाइडर को पकड़ कर उन्हें काट लेता है, जिससे हमेशा के लिए वे स्पाइडर मदहोशी की हालत में चले जाते हैं। वे जिंदा तो रहते हैं, लेकिन हिलडुल पाने की हालत में नहीं होते। स्पाइडर हंटर उस घोंसले में बहुत छोटा अंडा देता है। अंडा फूटता है तो उसमें से लार्वा निकलता है।

ये लार्वा मकड़ों को खाना शुरू करता है और बड़ा होकर उस घर को तोड़कर बाहर आता है। मकड़ों के हानिकारक और लाभकारी गुणों को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित ट्रॉपिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में चक्रवर्ती के प्रयासों से मकड़ालय की स्थापना 2018 में की गई है। इसकी स्थापना का उद्देश्य प्राकृतिक वातावरण तैयार कर स्पाइडर के रहने व प्रजनन की व्यवस्था करना है। अंत में सुमित चक्रवर्ती कहते हैं, “स्पाइडर के पास जाने से कोई खतरा नहीं है क्योंकि स्पाइडर की कोई इच्छा नहीं होती है कि वह आपको नुकसान पहुंचाए। स्पाइडर असामान्य जीव हैं, वे कीट-पतंगों का शिकार कैसे करते हैं, झीगुरों को कैसे रेशम के जाले में लपेटते हैं। हमारे देश में प्राकृतिक इतिहास को नजदीक से देखने की सुविधा विरले ही मिलती है। ऐसे में अगर आप मकड़ालय में जाकर मकड़ों पर अपना नोटबुक तैयार करें, तो भविष्य में बायोलॉजिस्ट के लिए वह नोटबुक सूचनाओं का बेहतरीन स्रोत बन सकता है।”

आगे पढ़ें, क्या कहते हैं वैज्ञानिक डॉ. सुमित चक्रवार्ती 

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