हिमालय की कीड़ाजड़ी: फिदा है दुनिया, लेकिन संकट में है अस्तित्व

इस मशरूम को 'कैटरपिलर फंगस' भी कहते हैं, जबकि तिब्बत में यार्त्सा गुंबू, कुमाऊं और गढ़वाल में आम बोलचाल में कीड़ा जड़ी अथवा यर्त्सा गुम्बा कहा जाता है

By Chandra Singh Negi

On: Saturday 28 October 2023
 
कीड़ा जड़ी; फोटो: सुरेंद्र पंवार

मई और जून वार्षिक परीक्षाओं के महीने होते हैं, खासकर कॉलेज छात्रों के, लेकिन इन्हीं दिनों गांवों में रहने वाले छात्र अपनी परीक्षाएं इसलिए छोड़ देते हैं, क्योंकि उन्हें कीड़ाजड़ी इकट्ठा करना होता है और जो लोग गांव से बाहर रहते हैं, वे भी इन दिनों यहां लौट आते हैं। 

यह एक अलग उद्देश्य के साथ घर वापसी है। कीड़ा जड़ी, जिसकी कीमत 7 से 18 लाख प्रति किलोग्राम या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 20,000 अमेरिकी डॉलर है, जो कि दोहन किये गए लार्वा व मशरूम की गुणवत्ता व आकार पर निर्भर करता है।  यह एकमात्र कारक रहा है, जिसके परिणामस्वरूप खंडहरों में तब्दील गांवों को पुनर्जीवित किया जा रहा है। ऐसे वाशिंदे, जिनके अपने वन क्षेत्र में कीड़ाजड़ी उपलब्ध नहीं है, वे ऐसे वन पंचायतों से अपने पुश्तैनी रिश्ते स्थापित करवाने की जी तोड़ कोशिश में लगे रहते हैं, जहां कीड़ाजड़ी का दोहन होता हो।

यह काम आसान नहीं। इससे सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने में भी गिरावट आई है, पुरानी पारंपरिक वर्जित प्रणालियों का अपमान हुआ है, जो आसपास के जंगलों और बुग्यालों से संसाधनों के उपयोग को परिभाषित करती थी। इसके परिणाम मिश्रित हैं- आर्थिक लाभ या व्यवहार के पुराने पारंपरिक मानदंडों का पालन करना। वर्तमान में, यह'घटते रिटर्न' का मामला है। 

मिट्टी के आवरण से बाहर निकलते हुए डेढ़ इंच लम्बी भूरे-गुलाबी स्ट्रोमा (बत्ती) का पता लगाना मुश्किल है, क्योंकि यह अन्य घास के अंकुरों जैसा दिखता है। फोटो: सी एस नेगी

मिट्टी के आवरण से बाहर निकलते हुए डेढ़ इंच लम्बी भूरे-गुलाबी स्ट्रोमा (बत्ती) का पता लगाना मुश्किल है, क्योंकि यह अन्य घास के अंकुरों जैसा दिखता है। फोटो: सी एस नेगी

कीड़ाजड़ी

विज्ञान की भाषा में कीड़ाजड़ी ओफिओकोर्डीसेप्स साइनेंसिस (बर्क) कहलाती है। यह लातिनी भाषा का शब्द है। जी.एच. सुंग आदि वैज्ञानिकों ने कॉर्डिसेप्स साइनेंसिस की ‘कॉर्ड’ अर्थात  'क्लब', सेप्स याने  'हेड' और साईनेंसिस की ‘चाइनीज’ या 'चीनी' के रूप में व्याख्या की है। इस मशरूम को 'कैटरपिलर फंगस' भी कहते हैं। तिब्बती में इसे यार्त्सा गुंबू कहा जाता है जिसका अर्थ हुआ 'विंटर वर्म, समर ग्रास'। कुमाऊं और गढ़वाल में आम बोलचाल में यह कीड़ा जड़ी अथवा यर्त्सा गुम्बा के नाम से जानी जाती है । 

ओफिओकोर्डीसेप्स, एंटोमोफैगस फ्लास्क कवक (पाइरेनोमाइसेट्स एस्कोमाइकोटिना) वर्ग का है और ओफियोकॉर्डिसिपिटेसी परिवार से संबंधित है। कई सारे घास के भीतर पलने वाले थिटारोड्स लार्वा (जिन्हें पहले हेपियलस कहा जाता था) दरअसल ओफियोकॉर्डिसेप्स साइनेंसिस (Ophiocordyceps sinensis) द्वारा संक्रमित होते हैं । थिटारोड्स जिन्हें घोस्ट मौथ भी कहा जाता है वर्ग के अंतर्गत लगभग 51 प्रजातियाँ आती हैं और इनमें से 40 प्रजातिया ऐसी हैं जो कॉर्डिसेप्स साइनेंसिस द्वारा संक्रमित होती हैं।

यह बड़ा रोचक है कि असंक्रमित लार्वा सुसुप्तावस्था के लिए संक्रमित लार्वों की तुलना में धरती के अन्दर ज्यादा गहराई तक चला जाता है । इसतरह कवक संक्रमित लार्वों को सतह की ओर आने के लिए  बाध्य कर देता है ताकि उसे रूपांतरण हेतु अनुकूल परिस्थितियां मिल सकें। कवक के माईसीलियम का हाइफी लार्वा प्रछेदन प्रक्रिया के दौरान संभवतः संक्रमित होता है व् कवक तदोपरांत उसके शरीर के छोटे-छोटे हिस्सों से पोषक तत्त्व ले कर और फिर समूचे शरीर को अपना भोजन बनाते हुए विकसित होना शुरू करता है।

आखिरकार शरीर के पोषक तत्त्व सोख लिए जाने से कीट पूरी तरह  ममीकृत हो जाता है । उसके शरीर में अंततः अन्दर और बाहर केवल ओफिओकोर्डीसेप्स साइनेंसिस माईसीलियम का आवरण बचता है। वसंत ऋतु में, मशरूम (फल या स्ट्रोमा) आंखों के ठीक ऊपर बाह्य आवरण में सिर से विकसित होता है। इसतरह पतले भूरे और क्लब के आकार की संतति धरती से बाहर प्रस्फुटित होती है और धीरे-धीरे 8-15 सेमी लंबा आकार लेती है । आमतौर पर यह अपने इल्ली (कैटरपिलर) होस्ट से लगभग दोगुना लंबा होता है, लेकिन कुछ एक दुर्लभ  मामलों में चार गुना तक लम्बा हो सकता है। 

आमतौर पर बच्चे अपनी तीव्र दृष्टि और कम ऊंचाई के कारण पर्याप्त संग्रह लेकर लौटते हैं। इसके विपरीत, वयस्क आमतौर पर बहुत कम संग्रह के साथ और थकी हुई पीठ के साथ लौटते हैं।
फोटो: सी एस नेगी

आमतौर पर बच्चे अपनी तीव्र दृष्टि और कम ऊंचाई के कारण पर्याप्त संग्रह लेकर लौटते हैं। इसके विपरीत, वयस्क आमतौर पर बहुत कम संग्रह के साथ और थकी हुई पीठ के साथ लौटते हैं। फोटो: सी एस नेगी

भौगोलिक वितरण  (डिस्ट्रीब्यूशन)

हमें यह जानना आवश्यक है कि यार्त्सा गुंबू का वितरण और इस तरह उपलब्धता केवल समोच्च रेखा या समुद्र सतह उंचाई पर निर्भर नही करती बल्कि यह जलवृष्टि या वर्षा से निर्धारित होती है। इसकी उपलब्धता के लिए न्यूनतम 300 मिमी वर्षा का होना आवश्यक है। दूसरे शब्दों में ऐसे इलाके जो अल्पवृष्टि या वर्षा-छाया क्षेत्रों के अंतर्गत आते हैं वहां यह प्रजाति नहीं मिलती है। यही कारण है कि अधिकाँश बुग्यालों में, चाहे वो सामान उंचाई और एक सी वनस्पतियों का आवरण लिए ही क्यों न हों,यह बहमूल्य संसाधन नहीं मिलता है। 

उत्तराखंड में यार्त्सा गुंबू पिथौरागढ़ जनपद (जहाँ यह समुद्र सतह से 3300 से 4700 मीटर की उंचाई वाले विस्तृत इलाकों में फैला है) के अलावा इससे लगे बागेश्वर और चमोली जनपद में यह मिलता है। पिथौरागढ़ जनपद में छिपलाकेदार, रालम गांव के आसपास सालंग ग्वार,लास्पा और जोहार घाटी के मीलम गांव के आसपास के बुग्यालों के, अतिरिक्त बल्मियां टॉप व राज-रम्भा तक फैले बुग्यालों के साथ साथ दारमा घाटी के गल्चिन, व्याक्सी, गल्फू, युसुंग, वोरुंग, नामा, होरपा, कमति-रुंग और श्यान्न्यार के इलाकों में उत्पादन की दृष्टि से यह बहुतायत में मिलता है, जबकि बागेश्वर जनपद में सुन्दरढुंगा ग्लेशियर व चमोली जनपद में ऋषिगंगा के जलागम तथा पिंडर नदी के दाहिनी ओर शिला समुद्र के इलाकों तक ही इसका वितरण सीमित है। नामिक, बोना, तोमिक गाँवों के ऊपर के कुछ एक इलाके ऐसे भी हैं जहाँ यह मिलता है लेकिन उसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।

दरअसल ऐसा कोई बुग्याल नहीं है जो बसासतों से नजदीक हो और वहां लोग न पहुचे हों। हालत यहां तक हो गई है कि अनेक बार संजायती बुग्यालों में  इसके दोहन को लेकर गंभीर लड़ाई-झगड़े हो जाते हैं । 

पडोसी मुल्कों में इसकी उपलब्धता

पड़ोसी देश नेपाल और भूटान के उच्च हिमालयी इलाकों में भी कीड़ाजड़ी का दोहन होता है। नेपाल में जहाँ यह यारसा गुम्बा के नाम से जाना जाता है, दरअसल इसका दोहन भारत के पिथौरागढ़ जनपद में हो रहे दोहन से बहुत पहले आरम्भ हो चुका था। वहां हो रहे अतिदोहन ने इसकी उत्पादकता को बुरी तरह प्रभावित किया, परिणामस्वरूप गाँव के लोग के साथ साथ सरकार भी इसके सतत दोहन के लिए दिशा-निर्देश और नीति बनाने को बाध्य हुई। भूटान में यारसा गुम्बा के वर्तमान स्थिति और उत्पादन को लेकर कोई ठोस आकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

हाँ यह अवश्य कहा जा सकता है कि चूँकि भूटान में इसके दोहन का सिलसिला अभी नया-नया ही है तो वहां की सरकार ने शुरुआत से ही एक बेहतर दोहन रणनीति बना डाली। भूटान की सरकारी  संस्थाओं ने सीधे  यार्त्सा गुंबू के खरीददारों के लिए नीलामी प्रक्रिया को अत्यधिक सरल और सहज बनाने में अहम् भूमिका निभाई है।    

कीड़ाजड़ी में ऐसा क्या खास है

ओफियोकॉर्डिसेप्स साइनेंसिस या यार्त्सा गुंबू में दरअसल बड़ी संख्या में ऐसे तत्त्व पाए जाते हैं जिन्हें अत्यधिक पोषक माना जाता है। इनमें शरीर के लिए  आवश्यक एमिनो एसिड्स, विटामीन ‘के’ और ‘ई’ के साथ-साथ पानी में घुलनशील विटामिन बी१, बी२, और बी१२ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त कई तरह की शर्करा जैसे मोनो,डाई और ओलिगोसेकेराइड्स के साथ साथ कई जटिल पौलीसेकेराइड्स, प्रोटीन्स, स्टीरोल्स, न्युकिलोसिड्स और ट्रेस एलिमेंट्स भी इसमें पाए जाते हैं । यह माना जाता है कि यार्त्सा गुंबू से मिलने वाले दो महत्वपूर्ण तत्व- पौलीसेकेराइड्स व कॉर्डिसाईंपिन अत्यधिक औषधीय गुण लिये है। जहाँ पौलीसेकेराइड्स प्रतिरक्षा तंत्र को सुदृढ़ करने, सूजनरोधी, ट्यूमर-रोधी, आक्सीकरणरोधी और कम रक्त शर्करा बनाये रखने के लिए प्रभावशाली है वहीं कॉर्डिसाईंपिन ट्यूमर-रोधी, जीवाणुरोधी और कीटनाशी गुण लिए हुए है । 

क्या यह कामोत्तेजक है (जैसा कि आमतौर पर माना जाता है)

चीनी मेडिका मटेरिया में,यार्त्सा गुंबू का उपयोग टॉनिक के रूप में किया जाता है,मुख्य रूप से उम्र से संबंधित दुर्बलता को दूर करने के लिए। हाँ,यह स्टेरॉइडोजेनेसिस (स्टेरॉयड हार्मोन का संश्लेषण) को बढ़ाता है;और ऐसी रिपोर्टें हैं कि यह नाइट्रिक ऑक्साइड (NO)के जीवनकाल को भी बढ़ाता है। सिल्डेनाफिल (वैज्ञानिक नाम,जिसे वियाग्रा के रूप में बेचा जाता है),भी नाइट्रिक ऑक्साइड के जीवनकाल को बढ़ाने के माध्यम से कार्य करता है,जो रक्त वाहिकाओं के फैलाव के लिए जिम्मेदार होता है,और रक्त प्रवाह में वृद्धि करता है,जो इरेक्शन के लिए जिम्मेदार होता है। लेकिन,इन सभी अध्ययनों को अभी भी सत्यापित करने की आवश्यकता है। 

यार्त्सा गुंबू (कीड़ाजड़ी) के सेवन का तरीका

परंपरागत रूप से,स्थानीय चिकित्सक इरेक्टाइल डिसफंक्शन,महिला कामोत्तेजक,घातक ट्यूमर,ब्रोन्कियल अस्थमा,ब्रोंकाइटिस,मधुमेह और संबंधित नेफ्रोपैथी,खांसी और सर्दी,पीलिया,हेपेटाइटिस सहित 21 बीमारियों के इलाज के लिए यार्त्सा गुंबू का उपयोग करते हैं। नेपाल के कुछ हिस्सों में,यार्त्सा गुंबू का पाउडर बनाया जाता है और इसे हथजारी (सालमपंजा) के प्रकंद,शहद और गाय के दूध के साथ मिलाया जाता है और टॉनिक या कामोत्तेजक के रूप में उपयोग किया जाता है।

मायकोट्स यार्त्सा गुंबू से दही तैयार करते हैं। तैयारी की विधि में दूध से वसा निकालना शामिल है,जिसमें यार्त्सा गुंबू के सूखे टुकड़े मिलाए जाते हैं,और रात भर रखा जाता है। सुबह होते ही दूध दही में बदल जाता है. एक अन्य अभ्यास में,पाउडर यार्त्सा गुंबू के 5-6 टुकड़े और सूखे कस्तूरी का एक टुकड़ा (लगभग 0.5 ग्राम) को छह महीने तक शराब (एक लीटर) में रखा जाता है;इस अवधि के बाद,यह माना जाता है कि यह न केवल शराब के स्वाद को बढ़ाती है,बल्कि कथित तौर पर एक अच्छा यौन उत्तेजक है।

हालाँकि,चीनी मटेरिया मेडिका के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार सेवन की सामान्य विधि,नर बत्तख के पेट में यार्त्सा गुंबू तैयार करने का वर्णन करती है। वास्तव में,कैंसर या थकान से पीड़ित लोगों को निर्देश दिया जाता है कि वे ताजा मारी गई बत्तख के पेट में 8.5 ग्राम साबुत यार्त्सा गनबू,जिसमें कैटरपिलर आवरण अभी भी जुड़ा हुआ हो,भरें,और फिर बत्तख को धीमी आग पर उबालें। जब बत्तख इस प्रकार अच्छी तरह से पक जाती है,तो यार्त्सा गुंबू का टुकड़ा हटा दिया जाता है,और फिर बत्तख का मांस 8-10 दिनों की अवधि में खाया जाता है। भारत में,सेवन का कोई तरीका आज तक सामने नहीं आया है। 

यार्त्सा गुंबू की कुल मात्रा के दोहन का आंकड़ा

एक मोटे अनुमान के अनुसार, सूखे कैटरपिलर कवक का वार्षिक विश्व उत्पादन 100 टन रखा गया है। यह मोटे तौर पर सालाना एकत्र किए गए 300 मिलियन व्यक्तिगत कैटरपिलर कवक के बराबर है, जिसका सकल मूल्य 5-11 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच है। हमारे द्वारा विगत पांच सालों के अध्ययन (वर्ष २००८-२०१२), जिसमें 110 गांवों को शामिल किया गया और अकेले पिथौरागढ जिले में 2500 से अधिक निवासियों का साक्षात्कार लिया गया, उसके अनुसार यह आंकड़ा लगभग 400 किलोग्राम है। निकटवर्ती जिलों चमोली और बागेश्वर से दोहन को ध्यान में रखते हुए इसे लगभग 500 किलोग्राम मान लें तो गलत नहीं होगा।    

कीड़ाजड़ी की और प्रजातियाँ

ओफियोकॉर्डिसेप्स साइनेंसिस एक ऐसी प्रजाति है जिसका व्यापार सबसे ज्यादा होता है यद्यपि ओफियोकॉर्डिसेप्स रौबरट्सी जिसे व्यापार करने वाले बिचौलिए अलग से पहचान लेते हैं और सामान्यतः खरीदना पसंद नही करते, का भी थोड़ा बहुत दोहन किया जाता है। यह अनेक महत्वपूर्ण उत्पादों में मिलावट करने के काम में लिया जाता है। यह उल्लेखनीय है कि व्यापार की दृष्टि से दोहन किये गए यार्त्सा गुंबू की अवस्था (परिपक्व की तुलना में अपरिपक्व) ज्यादा महत्वपूर्ण होती है जो इसकी कीमतों को निर्धारित करती है।

आमतौर पर सूखे यार्त्सा गुंबू जिसमें नमी की मात्रा सबसे कम हो, को ही व्यापारियों द्वारा प्राथमिकता दी जाती है। जितनी सूखी जड़ी होगी उतनी ज्यादा उसकी कीमत होगी ।इसके अलावा कीड़े के सिर से ऊपर आये स्ट्रोमा (जिसे आमतौर पर जन समुदाय 'बत्ती' कहते हैं) की तुलना में लार्वा की लम्बाई पर भी कीमत निर्भर करती है। लार्वा, स्ट्रोमा की तुलना में जितना बड़ा होगा उतनी ही यार्त्सा गुंबू की कीमत ज्यादा होगी। 

बाज़ार में आने वाली यार्त्सा गुंबू की फसल में से ७० से ८० प्रतिशत पूरी तरह अपरिपक्व होती हैं । स्थानीय बाज़ार में छिपला केदार और खास तौर से छिपलाकोट से आने वाली कीड़ाजड़ी को अपेक्षाकृत ज्यादा कीमत मिलती है क्योंकि इसके लार्वा की लम्बाई अपेक्षाकृत ज्यादा होती है । कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है देश के इस हिस्से में मिलने वाला यारसा गुम्बा, तिब्बत में मिलने वाले यारसा गुम्बा से निम्न गुणवत्ता वाला है। इसका एक कारण यह भी है कि तिब्बत में यह समुद्र सतह से ४००० मीटर से ज्यादा उंचाई में उपलब्ध होता है जबकि यहाँ यह ३००० मीटर के आसपास मिल जाता है। 

सामान्य मानदंड यह है कि कम से कम दो सप्ताह पहले राशन लेकर पहुंचें जो कम से कम 1 महीने की अवधि तक चलेगा। यह प्रारंभिक आगमन केवल 2-3 दिनों के प्रवास तक रहता है, जब दोहनकर्ता स्वयं सटीक तारीख का पता लगा लेते हैं, जब उन्हें वास्तव में वास्तविक दोहन के लिए वापस लौटना चाहिए। फोटो: सी एस नेगी

सामान्य मानदंड यह है कि कम से कम दो सप्ताह पहले राशन लेकर पहुंचें जो कम से कम 1 महीने की अवधि तक चलेगा। यह प्रारंभिक आगमन केवल 2-3 दिनों के प्रवास तक रहता है, जब दोहनकर्ता स्वयं सटीक तारीख का पता लगा लेते हैं, जब उन्हें वास्तव में वास्तविक दोहन के लिए वापस लौटना चाहिए। फोटो: सी एस नेगी

कीड़ाजड़ी - पारिस्थितिकीय और आर्थिक महत्व

कोई भी प्रजाति जिसका जरुरत से ज्यादा दोहन किया जाएगा वह अंततः समाप्त हो जायेगी चाहे वह कितनी ही प्रतिरोधी,लचीली और परिस्थितयों के अनुसार अनुकूलन करने वाली क्यों न हो। देखने में आया है कि इसके दोहन को लेकर अपनाए जा रहे तरीके इसके पुनर्जनन पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं जिससे कालान्तर में इसकी पैदावार कम होती चली जायेगी और धीरे-धीरे इसे विलुप्ति की ओर ले जाएगी। पिथौरागढ़ जनपद के बड़े हिस्से में जहाँ इसका दोहन किया जा रहा है यह प्रभाव दिखने भी लगा है। कई इलाके ऐसे हैं जहाँ अब यार्त्सा गुंबू उपलब्ध नहीं है।

दरअसल यार्त्सा गुंबू की उपलब्धता और पहाड़ी की ढलानों के बीच अंतर्सबंध व्युत्क्रमानुपाती है। 15 डिग्री ढलान वाले इलाकों में इसकी उपलब्धता सर्वाधिक होती है और कोण बढ़ने के साथ-साथ यह कम होती चली जाती है। यही नहीं यार्त्सा गुंबू खोदने वाले लोग भी अधिकांशतः अपने टेंट इन्हीं ढलान में लगाते हैं परिणामस्वरूप इसके उत्पादन में व्यापक नकारात्मक प्रभाव पडा है। बुग्यालों में कीड़ाजड़ी निकालने गए लोग, दूसरी औषधीय वनस्पतियों को और जलावन हेतु और प्रजातियों का दोहन करते हैं। इन सब गतिविधियों ने यार्त्सा गुंबू के लार्वा के प्राकृतिक आवास को बुरी तरह प्रभावित किया है ।

बुग्यालों में लम्बे समय तक होने वाली मानवीय गतिविधियों या जानवरों के प्रवास से वहां की मिटटी की गुणवत्ता में भी बड़ी गिरावट आई है, परिणामस्वरूप उत्पादकता तेजी से गिरी हैं। यह गिरावट केवल यार्त्सा गुंबू या औषधीय और सगंध पौधों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सभी वनस्पतियों और सूक्ष्मजीवों के लिए आवश्यक प्राकृतिक आवासस्थल और पारिस्थितिकी में तेजी से ह्राश हुआ है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि बुग्याल सर्वाधिक संवेदनशील इलाके हैं और उनसे की जानी वाले किसी भी तरह की छेड़ा-खानी के गंभीर और दीर्घकालिक परिणाम होंगे। 

यार्त्सा गुंबू के द्वारा बोधगम्य सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन  

हितधारकों की आर्थिक स्थिति में एक स्पष्ट परिवर्तन निश्चित रूप से हुआ है। पुराने घरों का नवीनीकरण किया गया है या यहां तक​​कि नए घरों का निर्माण भी किया गया है,ट्रांसह्यूमन भोटिया समुदाय की ग्रीष्मकालीन बस्तियों में पुराने गांव के खंडहरों को निर्माण गतिविधियों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है। अधिकांश ने आभूषणों में निवेश किया है,जबकि कुछ ने अपनी पशुधन आबादी को मजबूत किया है। अपने गाँवों में शिक्षा सुविधा की कमी के कारण अक्सर मूल निवासियों को अपने बच्चों को निकटतम टाउनशिप में भेजने के लिए मजबूर होना पड़ता था। यह घटना और भी तीव्र हो गई है,ग्रामीण अब टाउनशिप में रहने का किराया वहन करने में सक्षम हो गए हैं।

परिवार केवल यार्त्सा गुंबू की अगली दोहन के मौसम के दौरान ही लौटता है, या गाँव के अनिवार्य अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए। खेतों की अनदेखी से खेत बंजर हो जाते हैं,या नहीं तो बंजर और असुरक्षित हो जाते हैं। यदि कोई जीविका के वार्षिक पारंपरिक साधनों के साथ एक महीने की यार्त्सा गुंबू फसल से उत्पन्न आय का तुलनात्मक अध्ययन करता है,तो यार्त्सा गुंबू की बिक्री से अर्जित आय पारंपरिक स्रोतों से अर्जित कुल आय से कहीं अधिक है। अधिकांश हितधारकों ने अपनी पारंपरिक फसलों को उगाने के प्रति उदासीनता दिखाना शुरू कर दिया है,या इसे जंगली जानवरों की दया पर छोड़ दिया है। 

स्थानीय लोगों द्वारा शोषण के अलावा, यार्त्सा गुंबू की उपज पर पशुधन चराई के दबाव के प्रभाव

यह पहली बार था जब दुनिया में कहीं भी इस तरह का अध्ययन किया गया। हम यह पता लगाना चाहते थे कि क्या पशुओं की चराई भी थिटारोड्स लार्वा की आबादी में बाधा डालती है?और हमने पाया कि उत्तर हाँ है। हमने यार्त्सा गुंबू दोहन दबाव का अनुभव करने वाले तीन अलग-अलग बुग्यालों का चयन किया,जो पशुधन चराई दबाव के परिमाण में भिन्न थे। और हमने देखा कि चराई के दबाव में वृद्धि के साथ थिटारोड्स लार्वा की आबादी का आकार घट गया। इस गिरावट के मूल कारक दो हैं- (i)मिट्टी के पोषक तत्व की स्थिति और अन्य भौतिक मापदंडों में परिवर्तन;और(ii)जमीन के सतह की वनस्पति प्रोफ़ाइल में बदलाव।

जिन पौधों की प्रजातियों पर थिटारोड्स लार्वा निर्भर करता है,वे गैर-मेज़बान व अखाद्य प्रजातियाँद्वारा प्रतिस्थापित हो रहें हैं। लेकिन हमें उपरोक्त निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए और अधिक बुग्यालों को शामिल करते हुए इस तरह के और अध्ययन करने की जरूरत है,और यह भी निर्धारित करने के लिए कि बुग्यालों की प्रति इकाई आकार की धारक क्षमता क्या होनी चाहिए। 

वर्तमान में यार्त्सा गुंबू की सुरक्षा या अत्यधिक दोहन के प्रबंधन के लिए कोई कारगर निति नहीं

कीड़ाजड़ी दोहन के परिपेक्ष में वर्तमान जी ओ के मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं- (i) संरक्षित क्षेत्रों से यार्त्सा गुंबू का दोहन पूरी तरह से प्रतिबंधित है। आरक्षित और वन पंचायत वनों या क्षेत्रों से दोहन की अनुमति है, लेकिन उक्त वन विभाग के रेंज अधिकारी या वन पंचायतों से उचित अनुमति लेने के बाद। परमिट राशि 200 प्रति दोहनकर्ता है। ऐसे परमिट इस सपथ पत्र के साथ निर्गत होते हैं कि दोहनकर्ता बुग्यालों को नस्ट करने वाली गतिविधियों में शामिल नहीं होगा।

ऐसी गतिविधियों में संलिप्त पाए जाने वाले किसी भी चूककर्ता को आगामी दोहन के मौसम के लिए यार्त्सा गुंबू की दोहन से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। सभी वन पंचायतें यार्त्सा गुंबू की दोहन पर बाहरी लोगों पर पूर्ण प्रतिबंध लागू करेंगी। प्रत्येक दोहनकर्ता एकत्रित उपज के सत्यापन के लिए निकटतम रेंज अधिकारी को अपनी एकत्रित उपज की रिपोर्ट करेगा; जिसके लिए उसे यार्त्सा गुंबू की प्रति 100 ग्राम कीमत 1000 रुपये, और बाद में रुपये की वृद्धिशील राशि 1000 रु. अतिरिक्त उपज के लिए, रॉयल्टी के रूप में भुगतान करना होगा। इस प्रकार अर्जित रॉयल्टी का एक हिस्सा वन पंचायत अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के अनुसार संबंधित वन पंचायत को वापस हस्तांतरित कर दिया जाएगा। रॉयल्टी के भुगतान पर, दोहनकर्ता को बिक्री के लिए रवन्ना या पास/परमिट जारी किया जाएगा।

ऐसे परमिट केवल 15 दिनों के लिए वैध होंगे।दुर्भाग्य से शासनादेश में कोई प्रभावी तंत्र निर्धारित नहीं है। वे, जैसे कि बारी-बारी से दोहन का उल्लेख करना, या बुग्यालों को नुकसान पहुंचाने के लिए दोहनकर्ता को दंडित करना, व्यावहारिक रूप से व्यवहार्य नहीं हैं। 1 अप्रैल से 15 जुलाई तक दोहन की अवधि, व्यवहार में दोहन करने वालों को लाभ दे रही है, जबकि वास्तव में, समय की मांग है कि दोहन की अवधि को केवल एक महीने तक सीमित किया जाए, अधिमानतः जून तक सीमित रखा जाए। इसके अलावा, सीमा पार कीड़ाजड़ी की तस्करी को प्रतिबंधित करने के उपायों के साथ-साथ वस्तु की खरीद मूल्य, या यहां तक ​​कि कीड़ाजड़ी की नीलामी कैसे की जाए, इसका भी कोई उल्लेख नहीं है। GO की सफलता के माप के रूप में, कथित तौर पर तीन प्रमुख जिलों में पिछले वर्ष कोई रॉयल्टी एकत्र नहीं की गई थी, जहां कथित तौर पर यार्त्सा गनबू एकत्र किया गया था। संक्षेप में कहें तो कहानी वही है. 

ईंधन की लकड़ी आमतौर पर रोडोडेंड्रोन कैंपानुलैटम की होती है, जो अधिकांश आवास स्थलों से गायब हो गई है; कुछ स्थानों पर दोहनकर्ता जलावन की लकड़ी को २००-३०० मीटर निचे जंगल से एकत्र कर रहे हैं। फोटो: सुरेंद्र पंवार

यार्त्सा गुंबू की सुरक्षा का प्रभावी तरीका

हमें केवल सीमा पार की कुछ सफलता की कहानियों का अनुकरण करना है। उदाहरण के लिए, नेपाल में, स्थानीय ग्राम विकास परिषद ने प्रबंधन प्रथाओं और नियमों को सफलतापूर्वक लागू किया है जो यार्त्सा गुंबू के दोहन को नियंत्रित करते हैं, जैसे

(i) दोहन के मौसम की शुरुआत के लिए एक तारीख निर्धारित करना;

(ii) दोहन की आधिकारिक शुरुआत से पहले के हफ्तों में, सभी पात्र निवासियों को प्रतिदिन चार बार सामुदायिक बैठक घर में शारीरिक रूप से जांच कराना, जो किसी भी व्यक्ति द्वारा दूसरों की तुलना में पहले दोहन शुरू करने के प्रयासों को विफल करने के लिए एक तंत्र है;

(iii) जब परिस्थितियां उचित हों, तो गांव के नेता संग्रह की तारीखों को स्थगित भी कर सकते हैं;

(iv) यार्त्सा गुंबू के दोहन का अधिकार केवल गांव के वास्तविक निवासी के पास है;

(iv) प्रत्येक परिवार को अपने दोहनकर्ताओं को ग्राम प्रशासन के साथ पंजीकृत करना होगा और हर परिवार के सदस्य के लिए 100 रुपये (नेपाली रुपया) का यार्त्सा गुंबू कर का भुगतान और प्रत्येक अतिरिक्त सदस्य के लिए 4,500 रुo का भुगतान करना होगा।

इसके अतिरिक्त, जैसा कि पश्चिमी नेपाल के डोल्पा से रिपोर्ट किया गया है, स्थानीय लोग संग्रह क्षेत्र से 3-5 किमी दूर अपने शिविर स्थापित करते हैं, जहां से वे संग्रह स्थलों तक आने-जाने की यात्रा करते हैं। नेपाल के नुबरी और त्सुम में, धार्मिक आदेश कुछ पवित्र क्षेत्रों में संग्रह पर प्रतिबंध लगाते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि परिदृश्य का हिस्सा अछूता रहेगा।

इसी तरह, भूटान में, स्थानीय संस्थानों के पास दोहनकर्ता की संख्या को प्रति घर केवल कुछ सदस्यों तक सीमित करने की शक्तियां हैं, और यह आदेश दिया गया है कि यार्त्सा गुंबू को केवल अधिकृत नीलामी में और अधिकृत दोहनकर्ता द्वारा ही बेचा जा सकता है, और अंत में, खरीदार केवल भूटानी नागरिक ही हो सकता है। सरकार नीलामी के खर्चों को कवर करने और पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिए बिक्री पर 4.9% लेवी या अतिरिक्त कर लगाती है। 

वन पंचायत सदस्यों के साथ मेरी पिछली बैठक के दौरान, सभी उपस्थित लोगों ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि सभी आवासों में यार्त्सा गुंबू की उपज घट रही है, और इस गिरावट को रोकने के लिए एक प्रभावी तंत्र की आवश्यकता है। ऊपर उद्धृत समाधान, गांव या वन पंचायतों जैसे स्थानीय ग्राम संस्थानों द्वारा कार्यान्वित किए जा सकते हैं और किए जाने चाहिए। इन संस्थाओं को मजबूत करने की जरूरत है। 

कीड़ा जड़ी के संरक्षण का निर्णय और संकल्प कीड़ाजड़ी के दोहनकर्ताओं को सामुहिक रुप से लेना होगा। वे सभी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि कीड़ाजड़ी के संग्रह में निर्विरोध गिरावट आई है, हालांकि ऐसे कई लोग हैं जो या तो वर्षा की अनुपस्थिति, या पवित्र बुग्याल के मैदानों में महिलाओं की उपस्थिति को घटती उपज के लिए दोषी मानते हैं।

लेकिन एक बड़ी संख्या यह स्वीकार करती है कि इस घटना के पीछे दोहन करने के तरीके, दोहनकर्ताओं  की अधिक संख्या और दोहन की लम्बी अवधि के साथ-साथ बुग्यालों का पारिस्थितिक विनाश भी है। उन्हें इस हर्बल सोने को संरक्षित करने के लिए नेपालियों ने जो किया है उसका अनुकरण करते हुए एक ठोस रणनीति बनानी होगी, ताकि कीड़ाजड़ी का सरक्षण व उसकी उपलब्धता को भविष्य के लिए सुनिश्चित कर सकें। यदि वर्तमान स्थिति बनी रही, तो अंततः अगले कुछ दशकों में यह 'देवताओं का आशीर्वाद' अतीत की कहानी बनकर रह जाएगा।

(लेखक डॉ. चन्द्र सिंह नेगी, एम बी गवर्नमेंट पोस्टग्रेजुएट कॉलेज, हलद्वानी (नैनीताल) के ज्योलॉजी विभाग में प्रोफेसर हैं)

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