सबसे बड़ी विलुप्ति के बाद, उत्पत्ति वाले पहले जीवों में झींगा और कीड़े शामिल थे: अध्ययन

पर्मियन काल में बड़े पैमाने पर सामूहिक विलुप्ति से पृथ्वी पर 90 प्रतिशत से अधिक प्रजातियां मर गई थी

By Dayanidhi

On: Thursday 30 June 2022
 

प्राचीन समुद्री तलों और बिलों का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि पर्मियन काल में सामूहिक विलुप्ति के बाद सबसे पहले खत्म होने वाले जीवों की फिर से उत्पत्ति कैसे हुई।

यहां बताते चलें कि पर्मियन काल, जो पृथ्वी में अब तक ज्ञात सबसे बड़ी सामूहिक विलुप्ति का समय था, यह लगभग 29.9 करोड़ वर्ष पहले शुरू हुआ था।

इस नए अध्ययन में चीन, अमेरिका और ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने खुलासा किया कि जीवाश्मों के अवलोकन से, पृथ्वी पर 90 प्रतिशत से अधिक प्रजातियों को मारने वाली घटना के बाद समुद्र में जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई।

25.2 करोड़ वर्ष पहले पर्मियन सामूहिक विलुप्ति के बाद जीवन तबाह हो गया था और पृथ्वी पर फिर से जीवन की बहाली में जैव विविधता को पूर्व-विलुप्त होने के स्तर पर लौटने में लाखों साल लग गए।

लेकिन अध्ययनकर्ताओं की अंतरराष्ट्रीय टीम दक्षिण चीन के समुद्री तलों और बिलों की जांच करके, समुद्री जीवन की उत्पत्ति को एक साथ जोड़ने में सफल रही, इससे पता चलता है कि जीवों की गतिविधि की शुरुआत कब से हो रही थी।

ब्रिस्टल स्कूल ऑफ अर्थ साइंसेज के प्रोफेसर माइकल बेंटन ने कहा पर्मियन काल के अंत के बाद सामूहिक विलुप्त होने और त्रैसिक काल के प्रारंभ में जीवन की पूरी बहाली को दक्षिण चीन में बहुत अच्छी तरह से दर्ज किया गया है।

उन्होंने कहा हम घटनाओं के पुरे चरणों के माध्यम से 26 खंडों से ट्रेस जीवाश्मों को देखने में सक्षम थे, जो कि 70 लाख सालों से रह रहे थे। 400 नमूनों का विवरण देखते हुए, हमने अंततः बेंटोस, नेकटन सहित सभी जानवरों के फिर से उत्पत्ति के चरणों का पुनर्निर्माण किया।   

वुहान में चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ जियोसाइंसेज के डॉ. ज़ुएकियन फेंग ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है। फेंग ने बताया कि उनका ध्यान प्राचीन समुद्र के तलों और बिलों की खोज पर आधारित था। उन्होंने कहा ट्रेल्स और बूर जैसे जीवाश्मों के दस्तावेज में ज्यादातर समुद्र में नरम शरीर वाले जानवर दर्ज हैं। इनमें से अधिकांश नरम शरीर वाले जीव है जिनके पास कंकाल नहीं थे।

अध्ययन के निदेशक प्रोफेसर झोंग-कियांग चेन ने कहा कि ट्रेस जीवाश्म हमें दिखाते हैं कि इस प्रारंभिक ट्राइसिक ग्रीनहाउस दुनिया में नरम शरीर तथा बिल बनाने वाले, जानवर कब और कहां पनपे।

उदाहरण के लिए, अधिक तापमान और एनोक्सिया या कम ऑक्सीजन वाली जगहें पर्मियन-ट्राइसिक सीमा में व्यावहारिक और पारिस्थितिक विविधता से बहुत कम मेल खाते हैं। पहले विलुप्त होने के स्तर से मेल खाने के लिए मुलायम शरीर वाले जानवरों की पारिस्थितिक बहाली के लिए लगभग 30 लाख साल लग गए।

डॉ. चुनमेई सु ने कहा कि बड़े पैमाने पर विलुप्ति से पृथ्वी पर 90 प्रतिशत से अधिक प्रजातियां मर गईं और देखा गया कि समुद्र में जीवित जीवों के पारिस्थितिक कार्य में बहुत बड़ी कमी आई।

सबसे पहले, ये केवल कुछ ही बचे थे और गहरे पानी में इनकी बहाली शुरू हुई। नेकटन की बहाली उसी समय हुई जब पारिस्थितिकी तंत्र की गतिविधियां पूरी तरह बदल गई थीं।

दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ता तथा सह-अध्ययन एलिसन क्रिब ने कहा कि उत्पत्ति होने वाले पहले जानवरों में कीड़े और झींगा जैसे जीव थे। ब्रेकियोपोड्स, ब्रायोजोअन और कई अन्य जीवों की बहाली में काफी समय लगा।

हो सकता है कि ये जीव समुद्र तल पर ऐसी गड़बड़ी कर रहे थे जिसके कारण पानी कीचड़ से प्रदूषित हो रहा था, मथने वाली मिट्टी का मतलब था कि ये जीव समुद्र तल पर ठीक से नहीं बैठ सकते थे। या हो सकता है कि उन जीवों द्वारा उत्पन्न गंदे पानी को छानने की संरचनाओं को बंद कर दिया हो और उन्हें इससे निपटने में समस्या आई हो।

प्रोफेसर चेन ने कहा और कुछ जानवर, जैसे मूंगे, पूरी तरह से गायब हो गए थे। प्रवाल भित्तियां बहुत बाद तक वापस नहीं आईं। डॉ फेंग ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि भूवैज्ञानिकों के अतीत में हुए इन बहुत बड़े सामूहिक विलुप्ति की घटना को समझना क्यों महत्वपूर्ण है?

इसका जवाब यह है कि पर्मियन के अंत में आया संकट जो पृथ्वी पर जीवन के लिए इतना विनाशकारी था जो कि ग्लोबल वार्मिंग और समुद्र के अम्लीकरण के कारण हुआ था। लेकिन ट्रेस बनाने वाले जानवरों को पर्यावरण द्वारा इस तरह से चुना जा सकता है, क्योंकि वे कंकाल वाले जीव नहीं थे।

हमारे ट्रेस जीवाश्म के आंकड़ों से भारी सीओ 2 और बढ़ते तापमान के लिए नरम शरीर वाले जानवरों के इसके अनुरूप ढलने का पता चलता है। इन पारिस्थितिक तंत्र इंजीनियरों ने गंभीर सामूहिक विलुप्त होने के बाद बेंटिक पारिस्थितिक तंत्र की बहाली में अहम भूमिका निभाई हो सकती है। यह अध्ययन साइंस एडवांस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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