पेरू में मिले डॉल्फिन के 1.6 करोड़ साल पुराने जीवाश्म, गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन की हैं करीबी रिश्तेदार

वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति का नाम पानी में रहने वाले पेरू के पौराणिक जीव याकुरुना के नाम पर पेबानिस्ता याकुरुना रखा है

By Lalit Maurya

On: Thursday 21 March 2024
 
पेरू के अमेजन क्षेत्र में खोजी गई डॉल्फिन प्रजाति 'पेबानिस्ता याकुरुना' का काल्पनिक चित्रण; फोटो: जैमे ब्रान/ यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिख

ज्यूरिख विश्वविद्यालय के जीवाश्म विज्ञानियों ने मीठे पानी में पाई जाने वाली डॉल्फिन की एक नई प्रजाति की खोज की है। पेरू के अमेजन क्षेत्र में खोजे गए डॉल्फिन की खोपड़ी के यह जीवाश्म बेहद प्राचीन करीब 1.6 करोड़ साल पुराने हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी कि इसकी सबसे करीबी रिश्तेदार दक्षिण एशियाई रिवर डॉल्फिन हैं, जो गंगा (प्लैटेनिस्टा गंगेटिका) और सिंधु नदी में पाई जाती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह डॉल्फिन आकार में काफी बड़ी रही होंगी। अनुमान है कि इनका आकार तीन से साढ़े तीन मीटर के बीच रहा होगा।

बता दें कि वैज्ञानिकों को ये जीवाश्म 2018 में नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी की मदद से नेपो नदी में की गई खुदाई के दौरान मिले थे, जोकि अमेजन की एक सहायक नदी है। दावा है कि यह डॉल्फिन कभी उन इलाकों में रहती थी, जो आज अमेजन नदी में तब्दील हो चुके हैं।

वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति का नाम पानी में रहने वाले पेरू के पौराणिक जीव याकुरुना के नाम पर पेबानिस्ता याकुरुना रखा है। इसके बारे में ज्यादा जानकारी साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुई है। गौरतलब है कि कभी इन दोनों डॉल्फिनों के पूर्वज महासागर में रहते थे। यही वजह है कि वो भारत और दक्षिण अमेरिकी समुद्र तटों के आसपास बड़े इलाकों में घूमते थे।

अध्ययन के मुताबिक रिवर डॉल्फिन मीठे पानी में पाए जाने वाले सबसे दुर्लभ सिटेसियन जीवों में शामिल हैं, जो एशिया और दक्षिण अमेरिका की नदियों में पाई जाती हैं। इनकी अधिकांश प्रजातियां आज गंभीर खतरे का सामना कर रही हैं। एक जैसा दिखने के बावजूद यह जीव सीधे तौर पर सम्बंधित नहीं हैं। देखा जाए तो यह उन सिटेसियन जीवों के अंतिम बचे सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कभी पृथ्वी पर रहते थे।

वैज्ञानिकों के अनुसार डॉल्फिन की खोजी गए यह नई प्रजाति प्लैटैनिस्टोइडिया से सम्बंधित है जो, डॉल्फिनों का एक समूह है। यह करीब 2.4 से 1.6 करोड़ वर्ष पहले महासागरों में रहती थी। वैज्ञानिकों का यह भी अनुमान है कि इनके पूर्वज जो पहले समुद्रों में रहते थे वो भोजन की तलाश में अमेजोनिया की नदियों में पहुंच गए होंगे, जहां उन्होंने अपने आप को इस वातावरण के अनुरूप ढाल लिया होगा।

किन कारणों से गायब हो गई यह विशाल डॉल्फिन 

इस बारे में ज्यूरिख विश्वविद्यालय के पेलियोन्टोलॉजी विभाग में अध्ययन का नेतृत्व करने वाले एल्डो बेनिट्स-पालोमिनो ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, 1.6 करोड़ वर्ष पहले पेरू का अमेजोनिया बेहद अलग था। उस समय इस क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा झीलों और दलदलों से भरा था, जिन्हें पेबास के नाम से जाना जाता था।

शोधकर्ताओं के अनुसार इस क्षेत्र में कई तरह के पारिस्थितिक तंत्र थे जिनमें से कुछ पानी के नीचे तो कुछ जमीन पर जैसे दलदल या बाढ़ के मैदान के रुप में थे। इनमें मौजूदा समय के कोलंबिया, इक्वाडोर, बोलीविया, पेरू और ब्राजील के हिस्से शामिल थे। शोधकर्ताओं के अनुसार करीब एक करोड़ वर्ष अमेजन में बड़े बदलाव हुए। इसकी वजह से नए आवास बने, नतीजन पेबानिस्ता नामक इस विशाल डॉल्फिन को पर्याप्त भोजन न मिल सका जिसकी वजह से वो गायब हो गई।

इन बदलावों ने एक नए पारिस्थितिकी तंत्र का रास्ता तैयार किया, नतीजन मौजूदा समय में अमेजन में मिलने वाली डॉल्फिन इनिया के रिश्तेदारों का उदय हुआ। अमेजन में मिलने वाली मौजूदा डॉल्फिन को ‘पिंक रिवर डॉल्फिन’ या ‘बोटो’ भी कहते हैं। जो आधुनिक समुद्री डॉल्फिन जैसे जीवों के उदय के कारण अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।

पालोमिनो ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि यह हैरान कर देने वाला था, क्योंकि जब हमें अमेजन में जीवाश्म मिले, तो हमने सोचा कि यह अमेजन रिवर डॉल्फिन जैसे होंगें। लेकिन इसके बजाय यह दक्षिण एशिया में मिलने वाली डॉल्फिन प्लैटेनिस्टा से मेल खाते हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार पेबानिस्ता और प्लैटेनिस्टा दोनों के चेहरे पर हड्डी की विशेष संरचनाएं होती हैं, जो उन्हें इकोलोकेशन में मदद करती हैं। इकोलोकेशन पानी के अंदर 'देखने' के लिए ध्वनि का उपयोग करने जैसा है। यह डॉल्फिन तेज आवृत्ति की ध्वनियां पैदा करती हैं जो शिकार करते समय उन्हें भोजन खोजने में मदद करती हैं।

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