पक्षियों की 12 फीसदी प्रजातियों के लिए काल बन चुका है इंसान

रिसर्च से पता चला है कि आधुनिक मानव इतिहास में पक्षियों की करीब 1,430 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। इनमें से अधिकांश के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इंसानी गतिविधियां जिम्मेवार हैं

By Lalit Maurya

On: Friday 22 December 2023
 
धरती से विलुप्त हो चुके एक पक्षी ‘डोडो’ का कंकाल, फोटो: आईस्टॉक

रिसर्च से पता चला है कि पिछले करीब सवा लाख वर्षों में इंसानी गतिविधियों के चलते पक्षियों की करीब 12 फीसदी प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। मतलब कि पक्षियों की नौ में से एक प्रजाति विलुप्त हो चुकी है। गौरतलब है कि पक्षी प्रजातियों के विलुप्त होने का यह आंकड़ा पिछले अनुमानों से करीब दोगुना है।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि करीब 130,000 साल पहले प्लीस्टोसीन काल के अंतिम चरणों से लेकर अब तक यानी आधुनिक मानव इतिहास में पक्षियों की करीब 1,430 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। इनमें से अधिकांश प्रजातियों के विलुप्त होने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इंसानी गतिविधियां जिम्मेवार हैं। इस रिसर्च के नतीजे 19 दिसंबर 2023 को जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं।

अवलोकनों और जीवाश्मों के साक्ष्य से पता चला है कि प्लीस्टोसीन काल के बाद से पक्षियों की 640 प्रजातियां धरती से गायब हो चुकी हैं। इनमें से 90 फीसदी विलुप्तियां उन द्वीपों में हुई हैं, जहां इंसानी बसावट है।

इन विलुप्त होने वाली प्रजातियों में डोडो से लेकर उत्तरी अटलांटिक के ग्रेट औक जैसे पक्षी शामिल हैं। यहां तक कि इनमें सेंट हेलेना जाइंट हूपो जैसी प्रजाति भी शामिल हैं, जिनके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। हालांकि अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर रॉब कुक का कहना है कि इनमें से केवल 50 फीसदी प्रजातियां प्राकृतिक रूप से विलुप्त हुई होंगी।

इनमें से 790 प्रजातियां वो हैं जिनके विलुप्त होने के बारे में कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। मतलब की यह वो प्रजातियां हैं जिनके बारे में वैज्ञानिकों को जानकारी मिलने से पहले ही वो गायब हो चुकी हैं। वैज्ञानिकों ने इन्हें 'डार्क एक्सटिंक्शन' नाम दिया है। बता दें कि आज दुनिया में पक्षियों की 11,000 से भी कम प्रजातियां बची हैं।

समय के साथ मिटते गए प्रजातियों के विलुप्त होने के रिकॉर्ड

रिसर्च के मुताबिक दुनिया के कई द्वीप पहले इंसानी प्रभाव से अछूते थे, लेकिन हवाई, टोंगा और अजोरेस जैसी जगहों पर लोगों के आगमन के साथ ही महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले। एक तरफ जहां इन द्वीपों पर जंगलों का बेतहाशा विनाश किया गया, वहीं अत्यधिक शिकार और आक्रामक प्रजातियों के चलते पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो गई।

शोधकर्ताओं के मुताबिक 1500 के बाद से पक्षियों की जो प्रजातियां विलुप्त हुई हैं, उनमें से कई के तो रिकॉर्ड मौजूद हैं। लेकिन उससे पहले जो प्रजातियां विलुप्त हुई हैं उनके बारे में हमारा ज्ञान जीवाश्मों पर निर्भर है। हालांकि यह रिकॉर्ड भी सीमित हैं, क्योंकि पक्षियों की हड्डियां हल्की होती हैं जो समय के साथ विघटित हो जाती हैं।

ऐसे में उनके विलुप्त होने के बारे में स्पष्ट जानकारी का आभाव रहता है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने इन अनदेखे पक्षियों के विलुप्त होने का अनुमान लगाने के लिए स्टैटिस्टिकल मॉडलिंग का उपयोग किया है।

शोधकर्ताओं द्वारा यह गणना न्यूजीलैंड के आधार पर की है। दुनिया का यह एक मात्रा ऐसा देश हैं जहां वैज्ञानिकों को लगता है कि इंसानों से पहले पाए जाने वाले पक्षियों के बारे में पूरी जानकारी मौजूद है और वहां पक्षियों के जीवाश्म रिकॉर्ड पूरे हैं। किसी क्षेत्र में जितने कम अध्ययन होंगे,  उनके जीवाश्म रिकॉर्ड के अधूरे होने की आशंका उतनी ही अधिक होगी। ऐसे में अनदेखे जीवों के विलुप्त होने की भी आशंका उतनी ही अधिक होगी।

पारिस्थितिक विशेषज्ञ डॉक्टर कुक का कहना है कि जितना हम जानते हैं पक्षियों की विविधता पर मनुष्यों का उससे कहीं अधिक बड़ा प्रभाव पड़ा है। हम इंसानों ने आवासों को नष्ट करके पक्षियों के आबादी पर प्रभाव डाला है। साथ ही इनका किया गया अंधाधुंध शिकार भी इनकी आबादी में गिरावट की वजह बना है।

इसके साथ ही चूहों, सूअरों और कुत्तों जैसे जानवरों की वजह से भी पक्षियों की आबादी तेजी से खत्म हुई है। यह जीव पक्षियों के घोसलों पर हमला करने के साथ ही भोजन के लिए उनसे प्रतिस्पर्धा करते हैं। ऐसे में पक्षियों की कई प्रजातियां अपना निशान छोड़े बिना ही इतिहास से गायब हो गई।

शोधकर्ताओं का दावा है कि 14वीं शताब्दी में इंसानों के चलते अब तक की दर्ज कशेरुकी जीवों की सबसे बड़ी विलुप्ति की घटना घटित हुई थी। अनुमान है कि पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में लोगों के आने के बाद से पक्षियों की 570 प्रजातियां गायब हो चुकी हैं। बता दें कि इन प्रशांत क्षेत्रों में हवाई और कुक द्वीप समूह जैसे स्थान शामिल थे। विलुप्त होने की यह दर प्राकृतिक रूप से होने वाली विलुप्ति की दर से करीब 100 गुणा अधिक है।

उनका मानना ​​है कि 900 ईसा पूर्व भी विलुप्त होने की एक प्रमुख घटना हुई थी, जो मुख्य रूप से फिजी, मारियाना द्वीप समूह के साथ-साथ कैनरी द्वीप समूह सहित पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में लोगों के आगमन से प्रेरित थी।

इसी तरह 18वीं सदी के मध्य में भी जो विलुप्ति का सिलसिला शुरू हुआ वो अब तक जारी है। तब से वनों के बेतहाशा होते विनाश, आक्रामक प्रजातियों के प्रसार के साथ-साथ कृषि, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसे इंसानों खतरों ने पक्षियों की आबादी पर गहरा प्रभाव डाला है।

अध्ययन से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता सोरेन फॉर्बी का कहना है कि अतीत में विलुप्त हुई इन प्रजातियों ने मौजूदा समय में जैवविविधता पर गहरा प्रभाव डाला है। उनके मुताबिक दुनिया ने न केवल कई आकर्षक पक्षियों को खो दिया है, बल्कि साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र में भी उनकी जो खास भूमिका थी जैसे परागण, बीजों को फैलाना आदि, वो भी खो चुकी है। ऐसे में इन पक्षियों को खोने के साथ-साथ हमने उन बहुत सारे दूसरे पौधों और जीवों को भी खो दिया होगा, जो अपने अस्तित्व के लिए इन प्रजातियों पर निर्भर थे।

पिछले अध्ययन से पता चला है कि अगले कुछ सौ वर्षों में पक्षियों की 700 अन्य प्रजातियों पर भी विलुप्त होने की तलवार मंडरा रही है। डॉक्टर कुक के मुताबिक पक्षियों की आगे की यह प्रजातियां विलुप्त होंगी या नहीं यह हम पर निर्भर है।

हाल में संरक्षण के लिए किए प्रयासों ने कुछ प्रजातियों को बचाया है। उनका कहना है कि हमें स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर इनके आवासों को बहाल करने के साथ-साथ इन प्रजातियों को बचाने के प्रयास करने चाहिए।

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