फेसबुक पर फल-फूल रहा अवैध वन्यजीव व्यापार: रिपोर्ट

2018 में फेसबुक ने डब्ल्यूडब्ल्यूएफ जैसे विशेषज्ञों के साथ मिलकर 2020 तक वन्यजीवों की ऑनलाइन होती तस्करी को रोकने के लिए एक गठबंधन की स्थापना की थी

By Lalit Maurya

On: Monday 18 April 2022
 

जहां फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने लोगों को अपनी बात कहने और विचारों को साझा करने का मंच दिया है, वहीं इसका फायदा कुछ लोग गलत कामों के लिए भी उठा रहे हैं, जो न केवल वन्यजीवन बल्कि पूरे मानव समाज के लिए भी खतरा है।

ऐसा ही कुछ वन्यजीवों के मामले में सामने आया है। पता चला है कि फेसबुक पर वन्यजीवों की तस्करी और अवैध व्यापार का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है। सोशल मीडिया की दुनिया में फेसबुक कितना बड़ा नाम है उसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस प्लेटफॉर्म के करीब 290 करोड़ एक्टिव यूजर हैं। ऐसे में इसकी मदद से चलाया जा रहा यह व्यापार कितना बड़ा हो सकता है उसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल है। 

यह और बात है कि 2018 में इसी फेसबुक ने डब्ल्यूडब्ल्यूएफ जैसे विशेषज्ञों के साथ मिलकर 2020 तक वन्यजीवों की ऑनलाइन होती तस्करी को रोकने के लिए एक गठबंधन की स्थापना की थी जिसका लक्ष्य 2020 तक इस अवैध व्यापार में 80 फीसदी की कटौती करना था।

हालांकि इसके चार साल बात भी इस बात के सबूत सामने आए हैं कि फेसबुक पर वन्यजीवों का अवैध व्यापार अभी भी जारी है। यह जानकारी हाल ही में अंतराष्ट्रीय संगठन “आवाज” द्वारा वन्यजीवों के अवैध व्यापार को लेकर जारी रिपोर्ट में सामने आई है।   

रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं उनके अनुसार संगठन आवाज से जुड़े शोधकर्ताओं को केवल दो दिन और कुछ क्लिक में ही वन्यजीवों के अवैध व्यापार से जुड़ी 129 जानकारियां सामने आई हैं। इन पोस्ट में चीता, बंदर, पैंगोलिन और उनके स्केल्स, शेर के बच्चों, हाथी दांत और गैंडे के सींग जैसे जीवों के अवैध व्यापार से जुड़ी जानकारी सामने आई थी।

इनमें से करीब 76 फीसदी ऐसे पोस्ट थी जो जिन्दा जीवों के खरीद-फरोख्त से जुड़ी थी जो वन्यजीवों को लेकर फेसबुक की खुद की ही नीतियों का उल्लंघन करती हैं। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं को तेंदुए, बाघ के शावकों, ऑसेलॉट, अफ्रीकी ग्रे पैरेट, दुनिया के सबसे छोटे बन्दर पिग्मी मार्मोसेट जैसे दुर्लभ और लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके जीवों के व्यापार से जुड़ी जानकारियां भी हाथ लगी हैं। देखा जाए तो यह व्यापार जितना बड़ा है यह जानकारी तो उसके बहुत छोटे से हिस्से को दर्शाती हैं। ऐसे में फेसबुक द्वारा इसपर तुरंत कार्रवाई करने की जरुरत है।

इससे जुड़ी जो पोस्ट सामने आई हैं उनमें जून 2021 की एक पोस्ट बंगाल टाइगर से जुड़ी थी। जिसमें बाघ के शावकों को बिकने के लिए उपलब्ध बताया गया था।  गौरतलब है कि इसे संकटग्रस्त प्रजातियों में रखा गया है। दुनिया के जंगलों में अब 3900 के करीब बाघ ही बचे हैं। यही वजह है कि इसके व्यापार को पूरी तरह अवैध माना गया है।

इसी तरह एक अन्य पोस्ट में एक विक्रेता का कहना है कि अफ्रीकन ग्रे पैरेट "रीहोमिंग" के लिए उपलब्ध है यह एक कोड है जिसे अक्सर तस्करों द्वारा जीवों की बिक्री के लिए प्रयोग किया जाता है। इस तोते को आईसीयूएन की रेड लिस्ट में लुप्त हो रही प्रजातियों के रूप में चिन्हित किया गया है। 

इसी तरह एक पोस्ट में पैंगोलिन के स्केल्स और राइनो हॉर्न और उनसे जुड़े उत्पादों पर बोली लगाने की बात कही है। गौरतलब है कि पैंगोलिन को मांस और उनके स्केल्स के लिए मारा और बेचा जाता है। इनका उपयोग पारंपरिक चिकित्सा और चमड़े के उत्पादों में किया जाता है। इसकी करीब सभी आठ प्रजातियां राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत संरक्षित हैं, जिनमें से दो गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं।

वहीं सीआईटीईएस ने गेंडों के सींगों के होने वाले व्यापार को अंतराष्ट्रीय स्तर पर अवैध करार दिया है। अनुमान है कि एशिया में इनकी बढ़ती मांग के चलते अफ्रीका में औसतन हर दिन तीन गैंडों को मारा जा रहा है। वहीं काले गैंडे तो अंत्यंत दुर्लभ हैं जो दुनिया में केवल 5,600 ही बचे हैं। 

इसी तरह एक पोस्ट में 'मार्मोसेट एंड कैपुचिन मंकी फॉर सेल' टाइटल वाले पेज पर संभावित खरीदारों को आकर्षित करने के लिए इनकी तस्वीर डाली गई है। पिग्मी मार्मोसेट को सीआईटीईएस के परिशिष्ट II में शामिल किया गया है। यह जीव अपने आकार की वजह से आकर्षण का केंद रहे हैं जिन्हें अक्सर पालतू बनाने के लिए खरीदा-बेचा जाता है, जोकि इनके अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है।

जाने-अनजाने फेसबुक खुद इस व्यापार को कर रहा है मदद

इतना ही नहीं जब शोधकर्ता इस प्लेटफॉर्म पर इससे जुड़े कंटेंट को ढूंढ रहे थे, उसके कुछ समय बाद फेसबुक ने शोधकर्ताओं को वन्यजीवों से जुड़ी 95 रिकमेंडेशन भेजी थी। इनमें से 54 फीसदी रिकमेंडेशन ने शोधकर्ताओं को उन ग्रुप्स की ओर निर्देशित किया था जिन ग्रुप्स पर वन्यजीवों की तस्करी से जुड़ी जानकारियां थी। 

पता चला है कि शोधकर्ताओं द्वारा रिपोर्ट किए जाने के पहले ही वन्यजीव तस्करी से जुड़े कंटेंट वाली करीब 13 फीसदी पोस्ट को खुद ही फेसबुक ने अपने प्लेटफॉर्म से हटा दिया था। जबकि इस तरह की 43 फीसदी पोस्ट को शोधकर्ताओं द्वारा फेसबुक के 'रिपोर्ट पोस्ट' नामक टूल के माध्यम से रिपोर्ट करने के बाद हटा दिया गया था। 

वैश्विक स्तर पर देखें तो वन्यजीवों की यह बढ़ती तस्करी अरबों रुपए का व्यापार है। जो जीवों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रहा है। इसके चलते कई प्रजातियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। यह न केवल स्थानीय समुदायों पर असर डाल रहा है। बल्कि साथ ही पूरे इकोसिस्टम के लिए खतरा पैदा कर रहा है। इतना ही नहीं यह व्यापार कोरोना, एबोला, एंथ्रेक्स, बर्ड फ्लू जैसी नई -पुरानी महामारियों के फैलने के लिए भी एक आदर्श वातावरण तैयार कर रहा है।   

देखा जाए तो वस्तुओं के व्यापार से जुड़े फेसबुक के जो खुद के कम्युनिटी स्टैंडर्डस हैं वो इन संकटग्रस्त प्रजातियां या उनके भागों के अवैध व्यापार को प्रतिबंधित करते हैं। यह नीति उन जीवित जीवों के व्यापार पर भी कुछ हद तक प्रतिबन्ध लगाती हैं, जो संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में नहीं आते हैं। इसी तरह जीवों या उनके उत्पादों की खरीद-फरोख्त पर फेसबुक की वाणिज्य नीति रोक लगाती है। हालांकि शोध से पता चला है कि यह नीतियों को छिटपुट रूप से लागू होती हैं।    

ऐसे में यह शोध इस बात पर बड़ा सवाल खड़ा करता है कि क्या इस व्यापार से जुड़ी नीतियां बना देना ही इसे रोकने के लिए काफी है। एक तरफ जहां फेसबुक वन्यजीवों के अवैध व्यापार रोकने के लिए वादे करता हैं, वहीं दूसरी और उसके खुद के प्लेटफॉर्म पर इस तरह की जानकारियां साझा की जाती हैं। जिसको प्लेटफॉर्म का रिकमेंडेशन सिस्टम भी मदद करता है। जो कहीं न कहीं इस अवैध व्यापार को फलने-फूलने का मौका दे रहा है और कहीं ज्यादा लोगों तक उसको पहुंचा रहा है। 

गौरतलब है कि इससे पहले भी अक्टूबर 2020 में संगठन द अलाइंस टू काउंटर क्राइम ऑनलाइन ने भी अपनी रिपोर्ट "ट् क्लिक अवे: वाइल्डलाइफ सेल्स ऑन फेसबुक" में इस अवैध व्यापार के बारे में जानकारियां साझा की थी। जिसमें उसने करीब 473 फेसबुक पेजों और 281 पब्लिक ग्रुप के बारे में जानकारी दी थी, जो खुलेआम वन्यजीवों का व्यापार कर रहे थे।

ऐसे में भले ही फेसबुक इसे रोकने के प्रयास की बड़ी-बड़ी बाते करता हो लेकिन सच यही है वो जाने-अनजाने में ही सही न केवल इस अवैध व्यापार का हिस्सा है बल्कि साथ ही उसे बढ़ावा भी दे रहा है। वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि प्लेटफॉर्म द्वारा इसे रोकने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है और इस पर ध्यान दिए जाने की जरुरत है।

रोकने के लिए उठाने होंगे बड़े कदम

हालांकि फेसबुक ने अपने उपयोगकर्ताओं को इस तरह के कीवर्ड की खोज करने पर वन्यजीवों की संभावित तस्करी और उससे जुड़ी सामग्री के बारे में चेतावनी देने के लिए अलर्ट को भी अपने प्लेटफॉर्म में शामिल किया है, लेकिन उतना करना इस व्यापार को रोकने के लिए काफी नहीं है।

उसे अपनी नीतियां न केवल अंग्रेजी बल्कि अन्य भाषाओं में भी जारी करनी चाहिए। यह सही है कि ऐसी कोई सटीक दवा नहीं है, जो इस बीमारी को एकदम से दूर कर सकती है। पर आज तकनीकों की मदद से इसे काफी हद तक रोका जा सकता है।

उसे इन जीवों के ऑनलाइन व्यापार से जुड़ी नीतियों को मजबूत और कड़ाई से लागू करना होगा। अवैध व्यापार और नीतियों के उल्लंघन को जानने के लिए मॉडरेशन को बढ़ावा देना। अपने अल्गोरिदम में बदलाव करना जिससे वो इस व्यापार को बढ़ावा न दें। शोधकर्ताओं, कानून लागु करने वालों और अन्य सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर इस व्यापार को रोकना और इसे करने वालों को कानूनों के दायरे के अंदर लाना। साथ ही पारदर्शिता लाना, जिससे इस बारे में लोगों को जागरूक किया जा सके।                  

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