जानिए क्यों हाथियों के कॉरिडोर का संरक्षण है जरूरी

वर्ष 2015 की हाथियों की गणना में ये बात सामने आई थी कि शिवालिक रिजर्व में रहने वाले तकरीबन 25 % हाथी संरक्षित क्षेत्र के बाहर रहते हैं। 

By Varsha Singh

On: Friday 03 September 2021
 

एक तरफ जंगल के सबसे समझदार जानवर हाथियों की घटती संख्या पहले से ही चिंता का विषय हैं वहीं दूसरी तरफ अब उनका घरौंदे पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। उत्तराखंड में हाल के दिनों में शिवालिक एलिफेंट कॉरिडोर को डि-नोटिफाई किया था, जिस पर पर्यावरणविद् से लेकर आम लोगों तक ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी। मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने भी दखल दिया। इसके बाद राज्य सरकार ने अपना फ़ैसला रोक दिया। हालांकि अब वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) इंडिया ने शिवालिक एलिफेंट रिजर्व के उदाहरण से हाथियों के कॉरिडोर की अहमियत को लेकर अपनी अध्ययन रिपोर्ट जारी की है,जिसमें कहा गया है कि एलिफेंट रिजर्व में किसी भी परियोजना को शुरु करने से पहले यह समझना बेहद जरूरी है कि संबंधित परियोजना का हाथियों पर क्या असर होगा। 

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ रिपोर्ट में कहा गया है “अगर धरती पर हाथियों की आबादी को बनाए रखना है तो उनके प्राकृतिक आवास और कॉरिडोर को बचाना बेहद जरूरी है।”

भारत में तकरीबन 60 फीसदी जंगली एशियाई आबादी निवास करते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि एशियाई देशों में जंगली हाथियों की संख्या सौ साल पहले तकरीबन दोगुनी रही होगी। 50 हजार हाथियों में से अब मात्र 27 हजार हाथी धरती पर बचे हुए हैं।

हाथी एक दिन में अपने वजन की तुलना में 4-6 फीसदी तक यानी तकरीबन 200 किलो चारा भोजन में लेते हैं। साथ ही रोजाना तकरीबन 190 लीटर तक पानी पी सकते हैं। अपनी खुराक की तलाश के लिए उन्हें ज्यादा दूरी तय करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए उत्तर पूर्वी भारत और पश्चिमी घाट पर रेडियो कॉलर किये हुए हाथी मानसून के लिहाज से अपनी जगह बदलते पाए गए। मौसम के लिहाज से उनकी आवाजाही बताती है कि हाथी को अपने रहने,  भोजन और पानी की व्यवस्था करने के लिए विस्तार चाहिए।

इनके रास्ते में किसी तरह की बाधा आती है या रास्ते सीमित किये जाते हैं तो हाथियों को अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में ये भीमकाय जानवर परेशान होता है और मानव-वन्यजीव संघर्ष का खतरा बढ़ता है।

नर हाथी को सामान्य तौर पर 250 वर्ग किलोमीटर जगह की जरूरत होती है, जबकि मादा हाथी की अगुवाई वाले काफिले को 1000 वर्ग किलोमीटर जगह चाहिए होती है।

देहरादून में जौलीग्रांट एयरपोर्ट विस्तार के लिए देश के सबसे बड़े शिवालिक एलिफेंट रिजर्व की अधिसूचना निरस्त करना एक बार फिर हाथियों के प्राकृतिक आवास पर बात करने की जरूरत दर्शाता है। हमें हाथियों के ठिकाने को महफूज रखने की अपनी प्रतिबद्धता कायम रखनी होगी। विकास से ज्यादा संरक्षण को प्राथमिकता में शामिल करना होगा।

प्रकृतिवादी एम. कृष्णन ने कहा था हाथियों के पास रहने की पर्याप्त जगह जरूरी है। तब वे हमारे लिए भी कोई समस्या नहीं पैदा करेंगे लेकिन जब उनके आवाजाही के रास्ते बंद और सीमित हो जाते हैं तो वे परेशान हो जाते हैं। वे अपने आपको बंधक महसूस करते हैं  

इस वक्त भारत के 14 राज्यों में 33 एलिफेंट रिजर्व हैं। हालांकि ये टाइगर रिजर्व की तरह नहीं होते। एलिफेंट रिजर्व और एलिफेंट कॉरिडोर प्रशासनिक व्यवस्था (क्लासीफिकेशन) है न कि कानूनी। हाथियों के संरक्षण के लिए शुरू किए गए प्रोजेक्ट एलिफेंट के तहत राज्य सरकारों ने हाथी बाहुल्य क्षेत्र के नोटिफिकेशन के जरिये एलिफेंट रिजर्व के रूप में चिन्हित किया था। जबकि टाइगर रिजर्व वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत चिन्हित किये जाते हैं। ये जंगल में बाघों को कानूनी सुरक्षा देते हैं। टाइगर रिजर्व में अमूमन घने जंगल और घास के मैदान होते हैं। मानवीय आबादी बहुत कम होती है।

जबकि एलिफेंट रिजर्व में संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव विहार, रिजर्व फॉरेस्ट, सामुदायिक वन जैसी जगहें भी शामिल हो सकती हैं। यहां लोगों की आवाजाही को भी अनुमति दी गई है। क्योंकि हाथी अपेक्षाकृत छोटे संरक्षित वन क्षेत्र में सिर्फ 60 % समय बिताते हैं और लंबी दूरियां तय कर करते हैं।

वर्ष 2010 तक भारत के एलिफेंट रिजर्व में 65,000 वर्ग किमी. क्षेत्र ही शामिल था। जो देश के कुल भू-भाग का मात्र 1.9 % है। इसमें से मात्र 29 % अच्छी तरह सीमांकित संरक्षित क्षेत्र में आता है, जैसे कि वन्यजीव विहार या नेशनल पार्क। 

एलिफेंट रिजर्व में हाथियों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार से आर्थिक सहायता भी मिलती है। एलिफेंट रिजर्व की जगह विकास परियोजनाएं बनाने में राज्य को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड से अनुमति लेनी होती है। हालांकि कानूनी तौर पर इसकी बाध्यता नहीं है।

वर्ष 2010 में एलिफेंट टास्क फोर्स की रिपोर्ट गज: के मुताबिक एलिफेंट रिजर्व सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत इकोलॉजिकली सेंसिटिव एरिया का स्टेटस दिया जाना चाहिए। डब्ल्यू-डब्ल्यू-एफ की रिपोर्ट कहती है कि शिवालिक एलिफेंट रिजर्व के लिए भी ये जरूरी है। उत्तरी भारत में हाथियों की बड़ी आबादी को बनाए रखने में शिवालिक रिजर्व की भूमिका बड़ी है।

उत्तराखंड में शिवालिक एलिफेंट रिजर्व में वर्ष 2017 में 1839 हाथियों की गणना की गई थी। जबकि वर्ष 2020 में ये संख्या बढ़कर 2026 हो गई। देश के उत्तर-पूर्वी छोर पर हाथियों के कुनबे के लिए शिवालिक एलिफेंट रिजर्व बेहद संवेदनशील है। जो कि 6 ज़िलों के 5405 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में फैला है। इसका एक बड़ा हिस्सा तकरीबन 2213 वर्ग किमी. राजाजी नेशनल पार्क, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, नंधौर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और सोन नदी वाइल्ड लाइफ़ सेंचुरी में आता है। जबकि 3269 वर्ग किमी क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र के बाहर वन और घास के मैदानों में आता है। इसमें इंसानी बस्तियां, खेत और शहरी इलाके भी शामिल हैं।

वर्ष 2015 की हाथियों की गणना में ये बात सामने आई थी कि शिवालिक रिजर्व में रहने वाले तकरीबन 25 % हाथी संरक्षित क्षेत्र के बाहर रहते हैं। 2011 की जनगणना के लिहाज से 30,20,540 लोग शिवालिक कॉरिडोर के रास्ते में रहते हैं।

जौलीग्रांट एयरपोर्ट विस्तार से जुड़ी मुश्किलें

शिवालिक एलिफेंट रिजर्व में किसी भी विकास परियोजना को शुरू करने से पहले हाथियों पर इसके असर को समझना बेहद जरूरी है। देहरादून में जौलीग्रांट एयरपोर्ट का विस्तार थानो क्षेत्र के तकरीबन 87 हेक्टेअर जंगल को प्रभावित कर रहा था। ये पूरा इलाका थानो क्षेत्र के जंगल को बड़कोट फॉरेस्ट रेंज से जोड़ता है। जो कि तकरीबन 110 वर्ग किमी. क्षेत्र का हाथियों का इलाका है। यानी इस 87 हेक्टेअर पर कोई भी निर्माण कार्य होता है तो इस क्षेत्र के साथ ही 110 वर्ग किमी. का एक बड़ा वन क्षेत्र शिवालिक कॉरिडोर से टूटकर अलग हो जाएगा।

इससे आगे, थानो का ये हिस्सा उन दो कॉरिडोर में से एक है जो गंगा और यमुनी नदी के बीच 80 किमी. के दायरे में फैले निचले हिमालयी क्षेत्र में राजाजी-शिवालिक के इकोसिस्टम को आपस में जोड़ता है।हाथियों के साथ ही ये गुलदार, भालू, बाघ, हिरण-सांभर जैसे वन्यजीवों की आवाजाही का रास्ता भी है। खासतौर पर जलवायु परिवर्तन के चलते वन्यजीवों को कई बार ऊंचाई की ओर जाने की आवश्यकता होती है।

हाथी-मानव संघर्ष के लिहाज से भी ये खतरनाक हो सकता है। अपने रास्ते बंद मिलने पर हाथी खेतों की ओर रुख करते हैं। जिससे टकराव की स्थिति बनती है। जिसमें कभी इंसान तो कभी हाथी मारा जाता है।

उत्तराखंड का 70% भूभाग वनक्षेत्र में आता है। उत्तराखंड वन विभाग और राज्य सरकार ने हाथियों की बेरोकटोक आवाजाही के लिए तीन फ्लाईओवर (चिल्ला-मोतीचूर, तीन पानी और कांसरो-बड़कोट) बनाने की बात कही है। ताकि हाथियों समेत वन्यजीवों के आवाजाही के मार्ग अलग-थलग न पड़ें। इनमें से चिल्ला-मोतीचूर फ्लाईओवर हाल ही में तैयार हुआ है। जो कि राजाजी के पूर्वी और पश्चिमी छोर को जोड़ता है। बाघ की तुलना में हाथी आसानी से देखे जाने वाले वन्यजीव हैं। पर्यटन के लिहाज से एलिफेंट टूरिज्म आकर्षक है। इसके लिए हमें हाथियों को संरक्षित करने के बारे में सोचना होगा। इसका आर्थिक महत्व भी है।

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