कीटों की 76 फीसदी प्रजातियों को संरक्षित करने में विफल रहे हैं संरक्षित क्षेत्र

यह कीट 80 फीसदी से ज्यादा पौधों को परागित करते हैं जो इंसानों समेत अनगिनत जीवों के भोजन का प्रमुख स्रोत हैं 

By Lalit Maurya

On: Tuesday 07 February 2023
 

इसमें कोई शक नहीं की कीट हमारे पर्यावरण के लिए बहुत जरूरी हैं, इसके बावजूद इनके संरक्षण पर आज भी बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा। नतीजन विविधता से समृद्ध यह जीव दुनिया भर में तेजी से कम हो रहे हैं।

इन कीटों के संरक्षण में मौजूदा संरक्षित क्षेत्रों की भूमिका पर सवाल उठाते हुए शोधकर्ताओं का कहना है कि संरक्षित क्षेत्र कीटों की 76 फीसदी प्रजातियों की रक्षा करने में विफल रहे हैं।

देखा जाए तो यह नन्हें जीव पर्यावरण, जैवविविधता और इंसानों के लिए बहुत मायने रखते हैं। इनकी भूमिका को इसी बात से समझा जा सकता है कि यह कीट 80 फीसदी से ज्यादा पौधों को परागित करते हैं जो इंसानों समेत अनगिनत जीवों के भोजन का प्रमुख स्रोत हैं। जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि परागणकों में आ रही है गिरावट के चलते करीब 90 फीसदी जंगली पौधों का अस्तित्व खतरे में है।

लेकिन संरक्षण प्रयासों में इनकी अनदेखी इनके लिए बड़ा खतरा पैदा कर रही है। इसके चलते दुनिया भर में इन जीवों की आबादी कम हो रही है। हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक संरक्षित क्षेत्र कीटों की संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन यह तभी मुमकिन होगा जब यह प्रजातियां इन संरक्षित क्षेत्रों के दायरे में रहती हो।

जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित इस रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके अनुसार विश्व में अध्ययन की गई करीब तीन-चौथाई यानी 76 फीसदी कीट प्रजातियों को संरक्षित क्षेत्रों की पर्याप्त सुरक्षा प्राप्त नहीं है। इनमें गंभीर खतरे में पड़ी कीटों की प्रजातियां जैसे डायनासोर चींटी, क्रिमसन हवाईयन डैमफ्लाई और हार्नेस्ड टाइगर मॉथ शामिल हैं।

इतना ही नहीं पता चला है कि कीटों के 225 परिवारों की 1,876 प्रजातियां का वैश्विक वितरण इन संरक्षित क्षेत्रों के दायरे में नहीं आता है। इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और जर्मन सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव बायोडायवर्सिटी रिसर्च में संरक्षण जीवविज्ञानी शवन चौधरी का कहना है कि “यह ऐसा समय है जब संरक्षण संबंधी आकलन में कीड़ों पर ध्यान देना जरूरी है।“

1990 के बाद से कीटों की आबादी में दर्ज की गई 25 फीसदी की गिरावट

शोधकर्ताओं के मुताबिक कीटों के संरक्षण को लम्बे समय से अनदेखा किया गया है। शवन चौधरी का कहना है कि यह अध्ययन भी आंकड़ों की कमी के कारण सीमित है। उनका कहना है कि दुनिया भर में कीटों की करीब 55 लाख प्रजातियों में से इस अध्ययन में वो केवल 89,151 प्रजातियों के वितरण का मॉडल बना सके हैं।

उनके अनुसार सभी जानवरों में 80 फीसदी से ज्यादा कीट हैं। इसके बावजूद आईयूसीएन की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में अध्ययन की गई प्रजातियों का केवल आठ फीसदी कीटों की प्रजातियां हैं। हाल ही में जर्नल साइंस में छपे अध्ययन से पता चला है कि 1990 के बाद से कीटों की आबादी में करीब 25 फीसदी की गिरावट आई है। अनुमान है कि हर दशक करीब नौ फीसदी की दर से कीट कम हो रहे हैं।

इससे पहले जर्नल बायोलॉजिकल कंजर्वेशन में छपे अध्ययन में भी कीटों के तेजी से घटने की बात को माना था। शोध का अनुमान था कि अगले कुछ दशकों में दुनिया के करीब 40 फीसदी कीट खत्म हो जाएंगें। वैज्ञानिकों के मुताबिक कीटों की घटती आबादी के लिए काफी हद कृषि, शहरीकरण, कीटनाशक और जलवायु में आता बदलाव जैसे कारक जिम्मेवार हैं।

यह निर्धारित करने के लिए कि संरक्षित क्षेत्रों द्वारा कीट प्रजातियों के किस अनुपात में संरक्षित किया जा रहा है, चौधरी और उनके सहयोगियों ने संरक्षित क्षेत्रों के वैश्विक मानचित्रों के साथ वैश्विक जैव विविधता सूचना सुविधा से प्रजातियों के वितरण के आंकड़ों का उपयोग अपने अध्ययन में किया है।

कीटों से जुड़ा बहुत सारा डेटा संरक्षित क्षेत्रों से आता है। इसके बावजूद उनके कम प्रतिनिधित्व को लेकर शोधकर्ता हैरान थे। वैज्ञानिकों के अनुसार यह कमी दूसरे कशेरुकी प्रजातियों पर किए विश्लेषण की तुलना में बहुत ज्यादा गंभीर है। पता चला है कि 25,380 कशेरुक प्रजातियों में से 57 फीसदी को पर्याप्त संरक्षण प्राप्त नहीं है। 

रिसर्च से पता चला है कि कुछ क्षेत्रों में कीट दूसरे क्षेत्रों की तुलना में कहीं बेहतर संरक्षित थे। अमेजोनिया, सहारा-अरब, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और मध्य यूरोप में कीटों को पर्याप्त सुरक्षा प्राप्त थी। वहीं दूसरी तरफ उत्तरी अमेरिका, पूर्वी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया , दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में कई प्रजातियों को पर्याप्त संरक्षण प्राप्त नहीं था।

वहीं चौधरी ने आगे जानकारी देते हुए बताया कि भले ही कीड़े संरक्षित क्षेत्रों में रहते हों, लेकिन हो सकता है कि वे इस "संरक्षण" का लाभ नहीं उठा पा रहे हों।

उनके अनुसार पर्यावरण में तेजी से आते बदलावों के साथ गलियारों को होते नुकसान और संरक्षित क्षेत्रों के अंदर सड़क जैसे खतरों के चलते कई कीट प्रजातियां संरक्षित क्षेत्रों में भी घट रही हैं। ऐसे में शोधकर्ताओं का कहना है कि देशों को संरक्षित क्षेत्रों की योजना बनाते समय और मौजूदा संरक्षित क्षेत्रों का प्रबंधन करते समय इन कीटों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

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