यहां खुलेआम बिक रहे हैं साइबेरियन पक्षी

गंगा के तटीय इलाकों में हर साल कम से कम 50 हजार प्रवासी पक्षी शिकारियों की भेंट चढ़ जाते हैं

By Pushya Mitra

On: Tuesday 07 January 2020
 
राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 31 पर खुलेआम साइबेरियन पक्षी बेचता एक व्यक्ति। फोटो: पुष्यमित्र

 

ठंड के दिनों में हर साल बिहार के कई इलाकों में पोखरों, नदियों और चौरों के किनारे साइबेरिया, चीन, रूस, तिब्बत और मंगोलिया आदि देशों से बड़ी संख्या में पक्षी आते हैं। पक्षियों को देखने, जानने और पसंद करने वालों के लिए यह मनमोहक नजारा होता है। उत्तर बिहार के कई इलाकों में इन पक्षियों की आवक के स्वागत में सामा-चकेवा नामक लोकपर्व भी मनाया जाता है। मगर पक्षियों के शिकारी और इनके मांस के शौकीन लोग आज भी इन खूबसूरत पक्षियों की हत्या करने में नहीं हिचकते। राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 31  के किनारे भागलपुर जिले के बिहपुर से नारायणपुर के बीच बड़ी संख्या में शिकारी हाथ में साइबेरियन पक्षी लिए खड़े नजर आ जाते हैं। कोई भी उन्हें खरीद सकता है। 

बिहार में एशिया के सबसे बड़े गोखुर झील काबर, कोसी नदी के किनारे स्थित एक अन्य बड़ी झील कुशेश्वर स्थान, राज्य का पहला समुदाय प्रबंधित पक्षी अभयारण्य गोगाबिल, जमुई के नागी और नक्की डैम, भागलपुर का जगतपुर झील आदि प्रवासी पक्षियों के पसंदीदा ठिकाने हैं। यहां हर साल बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं. गंगा नदी के उत्तरी तट पर भी बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा ठंड के दिनों में लगता है। मगर जहां ज्यादातर लोगों के लिए यह एक सुंदर दृश्य होता है, कई लोग इन पक्षियों के मांस के लिए इनका शिकार कर देते हैं।

बिहार में लंबे समय से विलुप्त प्राय पक्षियों के संरक्षण में जुटे पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा कहते हैं कि गंगा के तटीय इलाकों में हर साल कम से कम 50 हजार प्रवासी पक्षी शिकारियों की भेंट चढ़ जाते हैं। ये लोग जहरीला पदार्थ देकर इन्हें मार डालते हैं और एनएच-31 के किनारे बिहपुर से लेकर नारायणपुर तक सड़क पर खड़े होकर इन्हें बेचते हैं। उन्होंने बताया कि दो दिन पहले वे खुद इन शिकारियों के हमले का शिकार होने से बचे। दरअसल इन्हें देखकर अरविंद मिश्रा ने इनकी तसवीर लेने की कोशिश की, तो इन शिकारियों ने पहले उन्हें रोकने की कोशिश की और फिर पत्थरों से हमला कर दिया। वे किसी तरह वहां से जान बचाकर भागे।

गंगा किनारे जहरीला भोजना खाने के बाद बेहोश पड़े चकवा पक्षी। फोटो: पुष्यमित्र

अरविंद मिश्रा कहते हैं कि हालांकि हर जगह लोग प्रवासी पक्षियों का इस तरह शिकार और व्यापार नहीं करते। उन्होंने जमुई के नागी और नक्की डैम में इन पक्षियों को सहजता से आम लोगों के साथ रहते देखा है, वहां हर साल बीस हजार से अधिक प्रवासी पक्षी आते हैं। इसके अलावा कटिहार के गोगाबिल झील में तो लोग ही इनकी सुरक्षा करते हैं। भागलपुर के जगतपुर झील में शिकारियों को समाज द्वारा दंडित किये जाने की भी बातें सुनी हैं। मगर गंगा तट के इस इलाके में आज भी इन खूबसूरत प्रवासी पक्षियों का धड़ल्ले से शिकार हो रहा है।

वन विभाग भी पक्षियों के शिकार के इन मामलों से परिचित है और उसने इन इलाकों में सात एंटी पोचिंग कैंप भी स्थापित किये हैं, मगर फिलहाल उनका भी बहुत अधिक असर नहीं दिखता। इस साल 10 जनवरी से एशिया जलपक्षी गणना कार्यक्रम की शुरुआत होगी, इस कार्यक्रम के तहत बिहार में भी पक्षियों की गणना होगी। बिहार की तरफ से अरविंद मिश्रा इस कार्यक्रम में शामिल होंगे और वे गंगा तट, गोगाबिल, जगतपुर, काबर, नागी और नक्की झीलों में पक्षियों की गणना और सर्वेक्षण करेंगे।

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