पृथ्वी की हर पांचवी प्रजाति का घर हैं विश्व धरोहर स्थल, जैवविविधता के संरक्षण में निभाते हैं अहम भूमिका

यह स्थल दुनिया की कुछ ऐसी प्रजातियों की रक्षा कर रहे हैं जो पृथ्वी पर केवल यही बची हैं।

By Lalit Maurya

On: Friday 01 September 2023
 
भारत का मानस राष्ट्रीय उद्यान जोकि एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी है, उसमें विचरता हाथियों का एक झुण्ड; फोटो: आईस्टॉक

दुनिया में विश्व धरोहर स्थलों को उनके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, लेकिन साथ ही यह जैवविविधता के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके बारे में आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) और यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि भले ही यह विश्व धरोहर स्थल, पृथ्वी के केवल एक फीसदी हिस्से पर मौजूद हैं, लेकिन वे दुनिया की 20 फीसदी से ज्यादा ज्ञात प्रजातियों का घर भी हैं।

पृथ्वी के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के स्थलों पर किए अपनी तरह के इस पहले सर्वेक्षण से पता चला है कि यह स्थल पौधों की 75,000 प्रजातियों और स्तनधारी जीवों के साथ-साथ पक्षियों, मछलियों, सरीसृपों और उभयचर जीवों की 30,000 से अधिक प्रजातियों को आश्रय प्रदान करते हैं।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इन यूनेस्को की इन वैश्विक धरोहरों में करीब 20,000 ऐसी प्रजातियां भी रह रही हैं, जिनपर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इनमें पेड़-पौधों की 18130 प्रजातियां, 593 स्तनधारी, 682 पक्षी, 615 मीठे पानी की मछलियां, 471 उभयचर और सरीसृपों की 400 प्रजातियां शामिल हैं।  

अध्ययन में शामिल यह 1,157 संरक्षित स्थल, जिनमें चीन की महान दीवार से लेकर ग्रेट बैरियर रीफ और भारत में पश्चिमी घाट जैसे प्राकृतिक स्थल शामिल हैं। विश्व के यह प्राकृतिक धरोहर स्थल कई अलग-अलग पारिस्थितिक तंत्रों को कवर करते हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 35 लाख वर्ग किलोमीटर, जो आकार में भारत से भी बड़ा है।

इसी तरह यह धरोहर स्थल विशाल वन क्षेत्रों को भी संरक्षित रखते हैं जो करीब 6.9 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हैं जो आकर में जर्मनी से करीब दोगुने हैं। यह जंगल भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को भी सोखते हैं। अनुमान है कि यह हर साल करीब 19 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को सोख रहे हैं।

यह स्थल दुनिया में बाकी बचे करीब एक तिहाई हाथी, बाघ और पांडा का घर हैं। इतना ही नहीं यह स्थल कम से कम 10 फीसदी ग्रेट ऐप, जिराफ, शेर और गैंडों को भी आश्रय देते हैं। इतना ही नहीं यह स्थल कुछ ऐसी प्रजातियों को भी आश्रय देते हैं जिनकी संख्या इतनी कम है कि उन्हें केवल उंगलियों पर गिना जा सकता है।

उदाहरण के लिए वाक्विटा जो दुनिया में केवल 10 ही बची हैं उनकी पूरी आबादी ही इन धरोहर स्थलों में बाकी बची है। इसी तरह जावन गैंडा, जो दुनिया में केवल 60 हैं वो भी इन वैश्विक धरोहरों में ही संरक्षित हैं।

वहीं गुलाबी इगुआना जिनकी संख्या केवल 200 है, वो भी इक्वाडोर के गैलापागोस आइलैंड पर ही जीवित हैं। कुछ ऐसा ही हाल सुमात्रन ओरंगुटान,  माउंटेन गोरिल्ला, सुमात्रन गैंडों, दामा गजेल का भी है, जोकि दुनिया से करीब-करीब विलुप्त ही हो गया है।

दुनिया की अनोखी प्रजातियों का घर हैं यह धरोहर स्थल

गौरतलब है कि यह जानकारी संकटग्रस्त प्रजातियों पर आईयूसीएन द्वारा जारी रेड लिस्ट के आंकड़ों पर आधारित है, जिसे आगामी दिसंबर में अपडेट किया आएगा। रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से कुछ स्थल तो ऐसे हैं जो जैवविविधता के संरक्षण के दृष्टिकोण से बेहद अहम हैं। इनकी अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि इनमें से 20 फीसदी स्थल दुनिया के प्रमुख जैव विविधता क्षेत्रों (केबीए) में स्थित हैं।

रिपोर्ट के अनुसार यह स्थल कुछ ऐसी विरली प्रजातियों का घर हैं जो केवल यहीं पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए दुनिया का सबसे ऊंचा पेड़ 'हाइपरियन' जो की 115 मीटर ऊंचा है वो अमेरिका के रेडवुड नेशनल पार्क में मौजूद है।

इसी तरह अर्जेंटीना का लॉस एलर्सेस नेशनल पार्क धरती के सबसे पुराने बचे पेड़ों में से एक "अबुएलो" का घर है, जो धरती पर करीब 2,600 साल पुराना है।  ऐसा ही कुछ ऑस्ट्रेलिया की शार्क खाड़ी में है जो दुनिया की सबसे बड़ी समुद्री घास का घर है। यह पौधा 180 किलोमीटर में फैला है और 200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है।

देखा जाए तो भले ही इन स्थलों को अच्छी तरह से संरक्षित किया जा रहा है, फिर भी जलवायु में आते बदलावों, कृषि क्षेत्रों में होते विस्तार के साथ-साथ अवैध शिकार, तेजी से होता निर्माण, संसाधनों का बेतहाशा होता दोहन और आक्रामक प्रजातियों के प्रसार जैसी इंसानी गतिविधियों के चलते अभी भी खतरे में हैं।

तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रजातियां खतरे में पड़ सकती हैं। ऐसे में यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि ये यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और उनके आसपास के क्षेत्र हमारी वर्तमान जैव विविधता और जलवायु समस्याओं के समाधान में उपयोगी होने के लिए प्रभावी ढंग से संरक्षित हों।

जैव और सांस्कृतिक विविधता एक दूसरे से जुड़े हैं। जहां एक तरफ यह विश्व धरोहर स्थल मूल निवासियों और स्थानीय समुदायों को उनकी संस्कृति और धर्म से जुड़े स्थलों और संसाधनों की रक्षा करने में मदद करते हैं। वहीं यह स्थल रोजगार और आय भी पैदा करते हैं।

बढ़ते तापमान के साथ हर दिन बढ़ रहा है खतरा

इतना ही नहीं यह स्थल प्रकृति और संस्कृति को जोड़ने के लिए पुल का काम करते हैं। यहां तक की शहरों में मौजूद सांस्कृतिक स्थल भी महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र हो सकते हैं, जो प्रकृति को होते नुकसान को रोकने में हमारी मदद कर सकते हैं।

ऐसे में इन स्थलों को संरक्षित करने से लोगों को अनगिनत फायदे हो सकते हैं। यह न केवल इंसानों और जानवरों के बीच आपस में फैलने वाली बीमारियों को रोकना में मदद कर सकते हैं। साथ ही यह जंगलों और घास के मैदानों को ग्लोबल वार्मिंग की वजह बनने वाली हानिकारक गैसों को सोखने में भी मदद करते हैं। इनकी मदद से चरम मौसमी घटनाओं के कहर से बचा जा सकता है।

यह सही है कि इनको बचाने के लिए दुनिया भर में प्रयास किए गए हैं। 1972 की संधि ने भारत में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और नेपाल में चितवन राष्ट्रीय उद्यान जैसे महत्वपूर्ण स्थलों की रक्षा करने में मदद की है। जहां 1980 के बाद से इन पार्कों में एक सींग वाले गैंडों की संख्या दोगुनी होकर करीब 4,000 पर पहुंच गई है।

लेकिन साथ ही यूनेस्को ने यह भी कहा है कि हमें इन स्थलों की सुरक्षा के लिए और अधिक प्रयास करने होंगें, क्योंकि समय तेजी से बीत रहा है। तापमान में हर डिग्री की वृद्धि के साथ खतरा और बढ़ता जा रहा है। ऐसे में इन स्थलों की सुरक्षा के लिए जल्द से जल्द कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

यूनेस्को ने जोर देकर कहा है कि चूंकि विश्व धरोहर स्थल, जैव विविधता के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं, ऐसे में देशों को उनकी सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने देशों से प्रकृति की सुरक्षा के लिए अपनी योजनाओं में इन स्थलों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का आग्रह किया है। जैसा कि पिछले साल कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता समझौते पर सहमति जताई गई थी।

इस फ्रेमवर्क का लक्ष्य प्रकृति को होते नुकसान को न केवल रोकना बल्कि उसको दोबारा बहाल करना भी है। इसके तहत 2030 तक दुनिया की 30 फीसदी जमीन, तटीय क्षेत्रों और जल क्षेत्रों की रक्षा करना शामिल है। यूनेस्को ने यह भी घोषणा की है कि 2025 तक, विश्व धरोहर स्थलों के सभी प्रबंधकों को जलवायु में आते बदलावों से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। वहीं 2029 तक, हर साइट के पास जलवायु परिवर्तन से निपटने और अनुकूल के लिए योजना होगी।

यूनेस्को के महानिदेशक ऑड्रे अजोले ने भी रिपोर्ट में कहा है कि, "यूनेस्को के यह विश्व धरोहर स्थल, पृथ्वी पर सबसे अधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से कुछ हैं, और उनकी रक्षा करना हमारा सामूहिक कर्तव्य है।"

Subscribe to our daily hindi newsletter