विश्व गौरैया दिवस: बचाने के हर संभव प्रयास जरूरी

हमारी आधुनिक जीवन शैली गौरैया के रहने के लिए बाधा बन गई है

By Ramesh Singh Yadav

On: Friday 20 March 2020
 
Photo: Wikimedia commons

मुझे अपना बचपन याद आता है , जब मैं गौरैया के घोंसलों को अपने घर की मिट्टी की दीवारों के दरारों में, बसों और रेलवे स्टेशन की छतों में देखा करता था। मेरी मां अपने घर के आंगन में धान, सांवां, ज्वा और बाजरों के गुच्छे लटकाती थीं, जिसके कारण बहुत अधिक गौरैया घरों में आती थीं। छप्पर के बांस के छिद्रों में उन्हें घोंसला बनाने में आसानी होती थी।

गौरैया मनुष्य के साथ लगभग 10,000 वर्षों से रह रही है, लेकिन अब कुछ दशकों से गौरैया शहरों के इलाकों में दुर्लभ पक्षी बन गई। उनकी आबादी में भारी गिरावट आई है। हालांकि, गांवों के लोग अभी भी गौरैया के चीं- चीं की आवाजों को सुन और महसूस कर रहे हैं, परंतु शहरी इलाकों में समस्या कुछ ज्यादा ही गंभीर है। पूरी दुनिया मे गौरैया की दो दहाई से भी अधिक प्रजातियां हैं, जिसमें से भारत में इनकी 5 प्रजातियाँ मिलती हैं।

हमारी आधुनिक जीवन शैली गौरैया को सामान्य रूप से रहने के लिए बाधा बन गई। पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई, खेतों में कृषि रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग, टेलीफोन टावरों से निकलने वाली तरंगें, घरों में सीसे की खिड़कियाँ इनके जीवन के लिए प्रतिकूल हैं। साथ ही साथ, जहां कंक्रीट की संरचनाओं के बने घरों की दीवारें घोंसले को बनाने में बाधक हैं वहीं घर, गाँव की गलियों का पक्का होना भी इनके जीवन के लिए घातक है, क्योंकि ये स्वस्थ रहने के लिए धूल स्नान करना पसंद करती हैं जो नहीं मिल पा रहा है। ध्वनि प्रदूषण भी गौरैया की घटती आबादी का एक प्रमुख कारण है।

इस तरह इनकी घटती आबादी को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने 2002 में इसे लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल कर दिया। इसी क्रम में 20 मार्च 2010 को विश्व गौरैया दिवस के रूप में घोषित कर दिया गया। इसके बाद इनके संरक्षण और लोगों को जागरूक किया जाने लगा। भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली ने 14 अगस्त 2012 और 17 अप्रैल 2013 को दिल्ली का राज्य पक्षी और शुभंकर घोषित किया गया। इसी दौरान इनके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये बिहार कैबिनेट ने भी गौरैया को अपना राजकीय पक्षी घोषित किया है। केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई सी ए आर) भी इस बात को मान रहा  है कि देशभर के विभिन्न हिस्सों में गौरेया की संख्या में काफी कमी आयी है।

गौरैया की आबादी में गिरावट चिंताजनक संकेत है। गौरैया की वर्तमान स्थिति और वितरण के बारे में जानने के लिए बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, मुंबई और अन्य एनजीओ ने बहुत ही प्रेरणादायक और  प्रासंगिक कार्य किया जिससे इनकी आबादी को जानने में मदद मिली है।

कुछ इस प्रकार के कार्यों को करके हम गौरैया को वापस अपने घर आने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसको और लोंगों तक खूब बताया और फैलाया जाना चाहिए-

घर के छतों, आँगन, खिड़कियों और छज्जों पर दाना  और पानी जरूर रखें।

बाजार से कृत्रिम घोंसले लाकर रख सकते हैं।

पहले की भांति घरों में धान, बाजरा इत्यादि की बालियां फिर से लटकाना शुरू कर दें।

गौरैया के घोसला बनाने में मदद करें। यदि घर में कहीं घोसला बना रही हैं तो उन्हें न बिगाड़े।

कोशिश करें कि घर में कार्टून, खोखले बाँस के टुकड़े या मिट्टी की छोटी-छोटी बेकार मटकियों में छेद करके टांग दें।

गर्मियों में पीने के लिए पानी की उचित व्यवस्था करें।

सबके अंदर यह सामाजिक चेतना बढ़ाएं।

इसे सामूहिक प्रयास के रूप में बदलें तभी इसकी सूरत बदल सकती है।

(लेखक भूतपर्व शोधार्थी व सीनियर रिसर्च फेलो (आईसीएआर-एनपीआईबी), कीट एवं कृषि जन्तु विज्ञान विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी हैं)

Subscribe to our daily hindi newsletter