वनाधिकार समीक्षा: आदिवासियों के दावों को खारिज करने का उपकरण बना मध्यप्रदेश का वन मित्र पोर्टल

अधिकारी, ग्राम सभा या वन अधिकार समिति की जानकारी के बिना दावों को खारिज कर देते हैं

By Shuchita Jha

On: Friday 24 February 2023
 

यह एक श्रृंखला की पहली किस्त है

13 फरवरी, 2019 को, वन अधिकार अधिनियम, 2006 (एफआरए) की संवैधानिकता से संबंधित एक मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को उन एफआरए दावेदारों को बेदखल करने का निर्देश दिया, जिनके व्यक्तिगत वन अधिकार के दावे खारिज कर दिए गए थे। शीर्ष अदालत ने देश के 20 राज्यों में 11,91,273 आदिवासियों को बेदखल करने का आदेश दिया था।

आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों (ओटीएफडी) को बेदखल करने के इस आदेश के बाद भारी आक्रोश फैल गया, जिसके चलते जनजातीय मामलों के मंत्रालय (एमओटीए) ने सर्वोच्च न्यायालय से अपने आदेश में संशोधन के लिए एक आवेदन दायर किया।

आवेदन में कहा गया है कि एफआरए दावों की अस्वीकृति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया का कड़ाई से पालन नहीं किया गया था और इसलिए, 28 फरवरी, 2019 के बेदखनी आदेश को रोक दिया गया था।

मंत्रालय की इस अपील के बाद सर्वोच्च अदालत ने राज्यों से विस्तृत हलफनामा दायर करने को कहा, जिसमें दावों की अस्वीकृति, दावों के निपटान के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का विवरण, अस्वीकृति के कारण और यदि अनुसूचित जनजाति और ओटीएफडी से संबंधित हैं तो उनके दावों की अस्वीकृति से पहले सबूत पेश करने का मौका दिया गया।

मंत्रालय ने आगे संबंधित राज्यों के साथ आदेश पर चर्चा की और इन राज्यों ने फिर खारिज किए गए दावों की स्वतः समीक्षा की प्रक्रिया शुरू की।

प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए, मध्य प्रदेश सरकार ने मध्यप्रदेश वन मित्र नामक एक ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया। पोर्टल उन दावेदारों को अनुमति देगा, जिनके दावों को समीक्षा के लिए फिर से आवेदन करने के लिए खारिज कर दिया गया था।

मध्य प्रदेश में 2019 तक कुल 5,79,411 दावे दायर किए, जिनमें से अनुसूचित जनजाति और ओटीएफडी के 354,787 दावों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार खारिज कर दिया गया था। खारिज मामलों की दर 61 प्रतिशत या उससे कम रही। इसका मतलब है कि एफआरए लागू होने के बाद से राज्य ने केवल 224,624 दावों को मंजूरी दी थी।

बुरहानपुर में जागृत आदिवासी दलित संगठन (जेएडीएस) के साथ आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक कार्यकर्ता नितिन वर्गीस ने डाउन टू अर्थ को एक फील्ड विजिट के दौरान बताया कि कैसे वन मित्र पोर्टल का दुरुपयोग किया गया, जो कि अस्वीकृत दावों की समीक्षा की सुविधा के लिए बनाया गया था। अब यह पोर्टल धोखाधड़ी से नए सिरे से दावों को खारिज करने का एक उपकरण बन गया है।

वन मित्र पोर्टल के माध्यम से दावा दायर करने वाले व्यक्ति आम तौर पर अनपढ़ होते हैं या इंटरनेट की दुनिया से परिचित नहीं होते हैं। वे आवेदन भरने में मदद के लिए एमपी ऑनलाइन कियोस्क ऑपरेटरों से संपर्क करते हैं।

वर्गीज कहते हैं, “ये कियोस्क संचालक अपने फॉर्म भरने के लिए 200 रुपये से 500 रुपये चार्ज करते हैं, जबकि राज्य सरकार पहले से ही उन्हें एसटी और ओटीएफडी के दावों को दर्ज करने में मदद करने के लिए फॉर्म भरने के लिए 60 रुपये का भुगतान करती है। दूसरा, वे दस्तावेजों को ठीक से पढ़े बिना अपलोड करते हैं, अक्सर एक दूसरे के दस्तावेजों को आपस में मिला देते हैं, जिस कारण दावों में गड़बड़ी हो जाती है।

नेपानगर तहसील के सिवले गांव के वन अधिकार समिति (एफआरसी) के सचिव अंतरम अवसे ने डीटीई को बताया, "समिति को दावे को सत्यापित करना होता है और फिर इसे उप मंडल स्तरीय समिति को अग्रेषित करने से पहले ग्राम सभा की सिफारिश के लिए पूछना होता है। लेकिन धरातल पर जो हो रहा है, वह तय गाइडलाइंस से कोसों दूर है।"

अवासे कहते हैं कि पंचायत सचिव, तालुकदार और वन विभाग के बीट गार्ड, जिनके पास एफआरसी के खाते में उपयोगकर्ता का पहचान पत्र (आईडी) और पासवर्ड हैं, बंद दरवाजे के पीछे बैठते हैं और दावों को खारिज कर देते हैं, ग्राम सभा या एफआरसी के जानकारी के बिना नकली ग्राम सभा प्रस्तावों और पुरानी तस्वीरों को अपलोड कर देते हैं।

उन्होंने कहा कि अगर पंचायत सचिव दावों को सत्यापित करने के लिए मौके पर जाते हैं, तो वे इसे उप मंडल स्तरीय समिति को अग्रेषित करते समय "दावेदार मौके पर / निवास पर नहीं था" लिखकर समाप्त कर देते हैं, जो फिर से दावों की अस्वीकृति का कारण बनता है।

मध्यप्रदेश की राज्य सरकार ने 2019 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद कहा था कि दावों को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया था। इसलिए गलत को ठीक करने के लिए समीक्षा उचित प्रक्रिया और ग्राम सभा की भागीदारी के माध्यम से होनी चाहिए, जैसा कि एफआरए में उल्लेख किया गया है।

बुरहानपुर में, समीक्षा किए जाने वाले 10,173 मामलों में से अब तक केवल 378 को ही मंजूरी दी गई है। 2019 के आंकड़ों के अनुसार, अस्वीकृत दावों की संख्या 5,944 से अधिक होने के कारण अब पोर्टल को बंद कर दिया गया है।

बुरहानपुर के सहायक आयुक्त (आदिवासी कल्याण) लखन अग्रवाल ने डाउन टू अर्थ को बताया, "बुरहानपुर के लिए पोर्टल बंद कर दिया गया है, क्योंकि नए दावेदारों ने भी पोर्टल पर अपना दावा दायर करना शुरू कर दिया है। 2019 में अस्वीकृत दावों (ऑफलाइन) की संख्या 5,944 थी। यह संख्या अब बढ़कर 10,000 हो गई है। अब हम वन मित्र पर दायर इन सभी दावों की समीक्षा करने की प्रक्रिया में हैं।"

चूंकि वन मित्र पोर्टल पर आधार कार्ड अपलोड करना अनिवार्य है, जो कि एफआरए के अनुसार अनिवार्य नहीं है, लोग इसे बनवाने के लिए भाग दौड़ कर रहे हैं।

इस दौरान कई जिलों के पोर्टल भी बंद कर दिए गए। जिसके चलते ऐसे कई लोग हैं जिनके दावे खारिज कर दिए गए हैं, वो भी पोर्टल पर दोबारा आवेदन नहीं कर पा रहे हैं।

कुछ ऐसा ही हाल राज्य के धार जिले का है। डाउन टू अर्थ द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) के माध्यम से प्राप्त किए गए अक्टूबर 2022 तक के वन मित्र डेटा के अनुसार, निपटाए गए 10,853 मामलों में से केवल 2,740 को ही मंजूरी दी गई थी। डीएलसी स्तर पर पिछले साल समीक्षा किए गए लगभग 75 प्रतिशत मामलों को खारिज कर दिया गया था।

मध्य प्रदेश में वन मित्र पोर्टल के माध्यम से डीएलसी में लगभग 174,525 आईएफआर दावे प्राप्त हुए। आरटीआई के आंकड़ों के अनुसार, इनमें से 151,929 दावों की समीक्षा की गई है और 116,758 समीक्षा किए गए दावों को फिर से डीएलसी स्तर पर खारिज कर दिया गया है। इसका मतलब है कि यहां अस्वीकृति दर 77 प्रतिशत है।

इसका मतलब यह भी है कि उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वन मित्र पोर्टल के उपयोग के बाद अस्वीकृति दर में लगभग 16 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

मध्य प्रदेश में वन अधिकारों पर काम कर रहे एक शोधकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ऐसे कई दावे हैं जिन्हें एफआरसी स्तर पर खारिज कर दिया गया है क्योंकि इसमें पंचायत सचिवों, रोजगार सहायकों और अन्य स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत होती है।

एफआरसी स्तर पर अस्वीकृति के लिए लगभग 155,252 दावों की सिफारिश की गई है, जैसा कि अक्टूबर 2022 के आंकड़ों से पता चलता है। शोधकर्ता ने कहा कि डीएलसी स्तर पर उच्च अस्वीकृति दर ठीक एफआरसी स्तर पर अत्यधिक उच्च अस्वीकृति दर के कारण है।

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