कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के मामले में उत्तराखंड के पूर्व मंत्री और अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा

जस्टिस बीआर गवई की बेंच का कहना है कि नेताओं और नौकरशाहों ने न केवल नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया, साथ ही सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत को भी दरकिनार करते हुए उसे कचरे में फेंक दिया 

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Thursday 07 March 2024
 
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में विचरता बाघ; फोटो: आईस्टॉक

सुप्रीम कोर्ट ने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मामले में बुधवार को सुनवाई करते हुए उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और तत्कालीन वन अधिकारी (डीएफओ) किशन चंद को फटकार लगाई है। मामला पर्यटन के नाम पर किए जा रहे निर्माण के लिए बड़ी संख्या में अवैध रूप से काटे गए पेड़ों से जुड़ा है।

कोर्ट ने टिप्पणी की है कि वे पूर्व मंत्री के दुस्साहस से हैरान हैं। वर्तमान मामले में, यह बिना किसी संदेह के स्पष्ट है कि पूर्व वन मंत्री और डीएफओ को लगता है कि वो कानून से ऊपर हैं। जस्टिस बीआर गवई, न्यायमूर्ति पी के मिश्रा और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच का कहना है राजनेताओं और नौकरशाहों ने सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत को दरकिनार करते हुए उसे कचरे में फेंक दिया है। यह याचिका पर्यावरण कार्यकर्ता और वकील गौरव कुमार बंसल द्वारा दायर की गई थी।

बता दें कि सार्वजनिक विश्वास का सिद्धांत एक कानूनी सिद्धांत है जो यह स्थापित करता है कि कुछ प्राकृतिक और सांस्कृतिक संसाधनों को सार्वजनिक उपयोग के लिए संरक्षित किया जाना जरूरी है। इस सिद्धांत के मुताबिक सरकार आम लोगों की भलाई को ध्यान में रखते हुए जल, जंगल, हवा और वन्य जीवन सहित कुछ प्राकृतिक संसाधनों को बचाए रखने के लिए ट्रस्टी के रूप में काम करेगी।

गौरतलब है कि पखराउ में प्रस्तावित टाइगर सफारी के निर्माण के लिए 163 पेड़ों के काटे जाने की मंजूरी दी गई थी, लेकिन इस साइट पर 6,053 पेड़ों को अवैध रूप से काटा गया था। सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने छह मार्च, 2024 को निर्देश दिया है कि जो सफारी पहले से मौजूद हैं और एक जो पखराउ में निर्माणाधीन है, उसे नहीं छेड़ा जाएगा। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार को पखराउ टाइगर सफारी के आसपास एक बचाव केंद्र स्थापित करने को भी कहा है।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण योजना संरक्षित क्षेत्रों से परे वन्यजीवों के संरक्षण की जरूरत को पहचानती है। ऐसे में केवल नेशनल पार्क के सीमा और बफर जोन में ही टाइगर सफारी की छूट दी गई है।

कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि राजनेताओं और वन अधिकारियों के बीच सांठगांठ के चलते पर्यावरण को भारी नुकसान हुआ है। कोर्ट के मुताबिक इन लोगों ने पर्यटन को बढ़ावा देने की आड़ में निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों को अवैध रूप से काटकर नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया है।

इस मामले में फिलहाल सीबीआई जांच कर रहा है, इसलिए कोर्ट ने इसपर कोई कमेंट नहीं किया है। लेकिन साथ ही एजेंसी से उसके द्वारा की गई जांच पर एक अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। कोर्ट के मुताबिक अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई जैसा काम केवल दो व्यक्ति नहीं कर सकते, इसमें कई और लोग भी शामिल रहे होंगे।

केंद्रीय अधिकार समिति ने भी किया था पेड़ों के अवैध रूप से काटे जाने का खुलासा

अदालत के मुताबिक केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की रिपोर्ट भी कॉर्बेट नेशनल पार्क में गंभीर स्थिति को उजागर करती है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि कुछ वन अधिकारी कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ताक पर रखते हुए खुलेआम पेड़ों की अवैध कटाई और निर्माण गतिविधियों में लगे हुए हैं।

ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए), भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई), केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) और पर्यावरण मंत्रालय के प्रतिनिधियों के साथ एक समिति बनाने का निर्देश दिया है।

कोर्ट के निर्देशानुसार यह समिति जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध पेड़ों की कटाई और अनधिकृत निर्माण के कारण हुए नुकसान को उसकी मूल स्थिति में बहाल करने के लिए कार्रवाई की सिफारिश करेगी। साथ ही कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा है, उसका भी मूल्यांकन करेगी। साथ ही इसकी बहाली पर कितना खर्च आएगा, इसकी भी गणना करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने समिति को नुकसान के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान करने का भी काम सौंपा है।

उत्तराखंड सरकार को इसके लिए जिम्मेवार लोगों और अधिकारियों से निर्धारित की गई लागत की वसूली करने के लिए कहा गया है। इस वसूली गई राशि का उपयोग पूरी तरह से पर्यावरण की बहाली के लिए किया जाएगा। इसके अलावा, समिति इस बात की रूपरेखा भी तैयार करेगी कि सक्रिय रूप से पारिस्थितिक की बहाली के लिए इन निधियों का उपयोग कैसे किया जाएगा।

अपने 159 पेजों के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि समिति इस प्रश्न पर विचार करेगी और सलाह देगी कि क्या बफर या सीमांत क्षेत्रों में बाघ सफारी को अनुमति दी जानी चाहिए।

यदि अनुमति दी जा सकती है तो ऐसी सफारी स्थापित करने के लिए क्या दिशानिर्देश होने चाहिए? समिति यह भी रेखांकित करेगी कि टाइगर रिजर्व के बफर जोन और सीमांत क्षेत्रों में किस प्रकार की गतिविधियों की अनुमति दी जानी चाहिए और किन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। ऐसा करते समय, यदि पर्यटन को बढ़ावा देना है, तो वो पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए।

इसी तरह रिसॉर्ट्स में कोई भी निर्माण किया जाना है तो वो प्राकृतिक परिवेश के अनुरूप होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, समिति बाघ अभयारण्यों के प्रभावी प्रबंधन और सुरक्षा के लिए राष्ट्रव्यापी उपाय सुझाएगी।

गौरतलब है कि जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क देश के सबसे पुराने नेशनल पार्कों में से एक है, जिसे 1936 में बंगाल टाइगर को बचाने के लिए हैंली नेशनल पार्क  नाम से स्थापित किया गया था। यह उत्तराखण्ड के नैनीताल में रामनगर नगर के पास स्थित है। बता दें कि 466.32 वर्ग किलोमीटर के बफर क्षेत्र के साथ यह नेशनल पार्क कुल 1,288.31 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

इसका नाम मशहूर शिकारी एडवर्ड जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया है। यहां पर न केवल बाघ बल्कि हाथी, भालू, सुअर, हिरन, चीतल, सांभर, नीलगाय, घुरल जैसे जीव बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह नेशनल पार्क पारिस्थितिकी के दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है।

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