30 फीसदी उत्सर्जन सोखने की क्षमता वाले जंगल भी हुए जलवायु परिवर्तन का शिकार

अध्ययन में पाया गया कि जिस तेजी से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ रहा है, उस तेजी से जंगल कार्बन सोखने की अपनी क्षमता नहीं बढ़ा पा रहे हैं

By Dayanidhi

On: Thursday 13 July 2023
 
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

दुनिया भर में जंगलों के लिए कठिन समय आने वाला है। जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया में तापमान बढ़ रहा है और नमी का स्तर घट रहा है, लेकिन यह पेड़ों के लिए कोई फायदेमंद संयोग नहीं है।

यूसी सांता बारबरा और यूटा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह निर्धारित करने की कोशिश की कि निकट भविष्य में हमारे जंगल का पारिस्थितिकी तंत्र कैसा हो सकता है। अध्ययनकर्ताओं ने सूखे का जंगलों पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने के लिए प्लांट फिजियोलॉजिस्ट द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों को गणितीय मॉडल से जोड़ा।

अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि, अधिकांश जंगलों में गर्म, शुष्क परिस्थितियों के अनुकूल होने की क्षमता है, लेकिन वे इस तनाव से बचने के लिए इतनी तेजी से बदल नहीं रहे हैं। यह अध्ययन ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित किया गया है

अध्ययन में कहा गया है कि, अध्ययनकर्ता यह जानकर चिंतित थे कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते पानी की कमी से होने वाले तनाव से बचने के लिए जंगल इतनी तेजी से नहीं बदल रहे थे। लेकिन आशा जताई गई है कि दुनिया के अधिकांश जंगलों में प्रजातियों की संरचना में बदलाव के माध्यम से सूखा सहन करने की क्षमता बढ़ाने के लिए अलग तरह की भिन्नता पाई गई।

ऐसे कुछ तरीके हैं जिनसे वन शुष्क परिस्थितियों के अनुकूल बन सकते हैं। हर पेड़ अपनी गतिविधि, शरीर क्रिया विज्ञान और जीन अभिव्यक्ति को उन नई परिस्थितियों के अनुसार बदल सकते हैं जिनका वे सामना करते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र में पहले से मौजूद सूखा सहन करने वाली प्रजातियां भी अधिक प्रभावी हो सकती हैं।

वनों की संरचना भी बदल सकती है, अधिक कमजोर प्रजातियों के खत्म हो जाने के कारण कठोर प्रजातियां पलायन कर रही हैं। विकास प्राकृतिक चयन के माध्यम से प्रजातियों को भी बदल सकता है, हालांकि ऐसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले जीवों के लिए अगली शताब्दी में प्रभाव न के बराबर  होगा।

अध्ययनकर्ताओं ने इस बात का पता लगाया कि, क्या जंगलों में पहले से मौजूद लक्षण और प्रजातियां भविष्य के जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए पर्याप्त हैं। अधिकांश आंकड़े फ़ॉरेस्ट इन्वेंटरी एंड एनालिसिस प्रोग्राम से आए हैं, जो देश के वनों की स्थिति पर अमेरिकी वन सेवा द्वारा संचालित एक व्यापक डेटाबेस है जिसे वर्ष 2000 से मानकीकृत किया गया है।

इस डेटाबेस में वन सूची शामिल हैं जो पेड़ों के स्थान, प्रजाति, आकार, घनत्व और स्वास्थ्य के साथ-साथ पेड़ों की वृद्धि, मृत्यु दर और कटाई का दस्तावेजीकरण करते हैं। अध्ययनकर्ताओं ने जाइलम फंक्शनल ट्रैट्स डेटाबेस से आंकड़ों का भी उपयोग किया, जहां पेड़ के शरीर विज्ञान और हाइड्रोलिक लक्षणों के माप संकलित किए जाते हैं, इस डेटाबेस को फ़ॉरेस्ट इन्वेंटरी के साथ जोड़ा जाता है।

अंत में, टीम ने एक मॉडल विकसित किया जो बढ़ते पानी की कमी के तनाव के प्रति जंगल की प्रतिक्रिया का अनुकरण करता है। मॉडल प्रकाश संश्लेषण के साथ ही पौधे के तनाव की भविष्यवाणी करता है। उन्होंने यह देखने के लिए एक अनुकूलन तकनीक भी शामिल की कि पत्ती में बदलाव पर्यावरणीय परिस्थितियों में बदलाव के कारण होने वाले तनाव को कैसे ठीक कर सकता है।

अध्ययन के मुताबिक, आज तक के सभी आंकड़ों से पता चलता है कि पत्ती सबसे बड़ा लीवर है जिसे हर पेड़ पानी की कमी के तनाव को प्रबंधित करने के लिए अलग हो सकते हैं। शुष्क क्षेत्रों में पेड़ों के पत्ते काटे दार या कम होते हैं, जबकि नमी वाले क्षेत्रों में पेड़ घने पत्ते धारण कर सकते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि दुनिया भर में, खासकर अमेरिका के कई जंगलों में अनुकूलन की क्षमता है। मॉडल से पता चला कि अमेरिका के 88 फीसदी जंगलों में जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की विशेषता और प्रजातियों की विविधता है, और वे ऐसा करना शुरू कर रहे हैं।

हालांकि, अधिकांश पेड़ उतनी तेजी से अनुकूलन नहीं कर रहे है जितना कि मॉडल ने अनुमान लगाया था, जबकि यह बढ़ते पानी की कमी के तनाव और उसके बाद होने वाली मृत्यु दर से बचने के लिए आवश्यक है।

अध्ययन में कहा गया है कि, यह चिंता का विषय है कि हम उन आवश्यक बदलावों को नहीं देख पा रहे हैं जिनकी हमारे मॉडल ने भविष्यवाणी की है। लेकिन  उम्मीद की गुंजाइश है। उदाहरण के लिए, जैव विविधता किसी दिए गए जंगल पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोकने की अपनी क्षमता में सामने आई है।

अधिक कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा टीम की गणना में एक जटिल कारण पेश करती है। पौधे उन्हीं छिद्रों से पानी खोते हैं जिनका उपयोग वे कार्बन डाइऑक्साइड लेने के लिए करते हैं। इसलिए यदि वायुमंडल में अधिक सीओ2 है, तो पौधे इन छिद्रों के आकार को कम कर सकते हैं और फिर भी प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कार्बन हासिल कर सकते हैं। इससे उनकी पत्तियों से निकलने वाले पानी की मात्रा कम हो जाती है।

अध्ययनकर्ता के मुताबिक, गर्म जलवायु में वातावरण भी शुष्क होता है, इसलिए पत्तियां अधिक पानी खो देती हैं। यह बहुत सारी अनिश्चितताओं और क्षतिपूर्ति करने वाले कारकों वाली एक जटिल प्रणाली है, जिसे सुलझाने के लिए सूक्ष्म मॉडल की आवश्यकता होती है। 

जंगल पहले से ही बदलने लगे हैं। जैसे-जैसे वातावरण शुष्क होता जाएगा, कम घने जंगल आम हो जाएंगे। जंगलों में भी संभवतः ऐतिहासिक रूप से मौजूद प्रजातियों का एक अलग मिश्रण होगा। ये सभी कारण वन कार्बन भंडारण को भी प्रभावित करते हैं। वन वर्तमान में लगभग 30 फीसदी मानवजनित उत्सर्जन को रोकते हैं, लेकिन टीम ने हाल ही में पाया कि जलवायु परिवर्तन के तहत इसमें कमी आने के आसार हैं।

वनों को अनुकूलन के लिए प्रोत्साहित करने वाली प्रबंधन रणनीतियां महत्वपूर्ण होंगी। अध्ययनकर्ताओं ने कहा हमें इन जंगलों के बारे में स्थिर चीजों के रूप में नहीं, बल्कि उन स्वस्थ चीजों के बारे में सोचने की जरूरत है, जिन्हें जलवायु के साथ बनाए रखने के लिए बदलने की जरूरत है।

क्रमिक परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने से जंगल की आग और मृत्यु जैसे अचानक, विनाशकारी परिवर्तनों को रोकने में मदद मिलेगी, जो जंगलों, वन्यजीवों और आसपास रहने वाले लोगों के लिए हानिकारक हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने जोर देकर कहा है कि, अधिक सूखा सहन करने वाली प्रजाति वाले क्षेत्रों में रोपण किया जाना चाहिए। लेकिन सबसे जरूरी, हमें जलवायु परिवर्तन को कम करने की जरूरत है।

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