भारत में फिर से फर्राटा भरेगा चीता !

अफ्रीकी देश नामीबिया से लाकर कुछ चीतों को प्रयोग के तौर पर मध्यप्रदेश के नौरादेही अभ्यारण्य में बसाने की संभावना बढ़ गई है

On: Friday 23 August 2019
 
Photo: Creative commons

पार्थ कबीर 

लगभग सत्तर साल पहले भारत से विलुप्त चीता आने वाले दिनों में फिर से फर्राटे भरता हुआ दिखाई पड़ सकता है। । इस मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इस प्रयोग के खिलाफ नहीं है।

सूखी जमीन पर चीता सबसे तेज दौड़ने वाला प्राणी है। भारत के बड़े हिस्से पर कभी चीते उन्मुक्त होकर फर्राटा भरा करते थे। वे अपनी रफ्तार से काली मृगों को भी चौंका देते थे। लेकिन, बड़े पैमाने पर उन्हें पालतू बनाए जाने, शिकार किए जाने और पर्यावास के नष्ट होने के चलते वे भारत से विलुप्त हो गए। माना जाता है कि 1947 में ही अंतिम तीन चीते छत्तीसगढ़ की कोरिया स्टेस में मार गिराए गए थे। जबकि, 1952 में उन्हें भारत से विलुप्त घोषित कर दिया गया।

दुनिया भर में बड़ी बिल्लियों की आठ प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें से दो बड़ी बिल्लियां यानी जेगुआर और प्यूमा केवल अमरीकी महाद्वीप में पाई जाती हैं। जबकि, शेर (लॉयन), बाघ (टाइगर), तेंदुआ (लेपर्ड), चीता (चीता), हिम तेंदुआ (स्नो लेपर्ड) और बादली तेंदुआ (क्लाउडेड लेपर्ड) एशिया और अफ्रीका महाद्वीप में पाए जाते हैं। भारत की जैव विविधता कई मायने में अनूठी है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर बाघ और शेर दोनों ही पाए जाते हैं। जबकि, यहां पर एशिया-अफ्रीका में पाई जाने वाली बड़ी बिल्लियों की छहों प्रजातियां कभी पाई जाती थीं। लेकिन, वक्त की मार के साथ इनमें से चीता विलुप्त हो गया। चीता भारत के जीवन में किस कदर रचा-बसा था, यह इससे समझा जा सकता है कि अभी भी हमारी भाषा में चीता शब्द तमाम तरह से प्रगट होता है और अक्सर ही लोग तेंदुआ को भी चीता कह देते हैं। यह भी माना जाता है कि चीते के शरीर पर पड़ी काली चित्तियों के चलते ही उसका नाम चीता पड़ा है। नाक के पास पड़ी काली धारियों जिसे अश्रु रेखा या टियर लाइन कहा जाता है, के जरिए चीतों को तेंदुए से अलग करके पहचाना जा सकता है। इसके अलावा, चीते के शरीर पर काले रंग की चित्तियां होती हैं जबकि तेंदुआ के शरीर पर पंखुड़ियों जैसे निशान होते हैं।

हाल के समय में चीता एकमात्र ऐसा बड़ा जीव है जो भारत से विलुप्त हुआ है। इन सभी तथ्यों की रोशनी में सबसे पहले वर्ष 2009-10 में चीते को दोबारा भारत में बसाने के प्रयास शुरू किए गए थे। उस समय भी अफ्रीका से कुछ चीते लाकर यहां पर बसाने की योजना थी। इसके लिए तीन जगहों पर शुरुआती सर्वेक्षण किए गए थे और उन्हें चीते की रिहायश के लिए एकदम मुफीद माना गया था। इसमें मध्यप्रदेश के नौरादेही और कूनोपाल पुर अभ्यारण्य और राजस्थान के शाहगढ़ शामिल है। चीते को भारत मे दोबारा बसाने की प्रक्रिया तेजी से चल रही थी और तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश नामीबिया में भारत लाए जाने वाले चीतों को देख भी आए थे। लेकिन, गिर के शेरों की एक आबादी को गुजरात से बाहर बसाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही बहस ने वर्ष 2012-13 में कुछ ऐसा रुख अख्तियार किया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस परियोजना को स्थगित कर दिया।

विशेषज्ञों के मुताबिक दो साल पहले नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी की ओर से इस दिशा में दोबारा प्रयास शुरू किए गए। इस सिलसिले में सबसे नौरादेही अभ्यारण्य का फील्ड सर्वे आदि किए जा चुके हैं। यहां पर लगभग 400 वर्ग किलोमीटर के हिस्से को चीते के पर्यावास के उपयुक्त बनाने का प्रयास किया गया है। चीता घसियाले मैदानों में रहता है और छोटे हिरणों को अपना शिकार बनाता है। इस पूरे अभ्यारण्य को इसी अनुसार विकसित किया गया है। माना जा रहा है कि इस जंगल में अफ्रीका से लाकर कुछ चीते बसाए जा सकते है। चीतों की प्रजाति पर छाए संकट को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की ओर से भी चीतों को अफ्रीका से लाकर भारत में बसाने की सहमति दे दी गई है। अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी यह कहे जाने पर कि वह इस प्रयोग के खिलाफ नहीं, भारत में एक बार फिर से चीतों को बसाए जाने की संभावना बढ़ गई है। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस पूरे प्रयोग को लेकर विशेषज्ञों की राय मांगी है।

दुनिया में चीतों की दो प्रजातियां है। एशियाई चीते भारत और ईरान जैसे कई एशियाई देशों में पाए जाते थे। जबकि, अफ्रीकी चीते जो अफ्रीका कई देशों में पाए जाते हैं। माना जाता है कि पचास से भी कम एशियाई चीते अब सिर्फ ईरान में बचे हैं। जबकि, अन्य देशों से यह कब के समाप्त हो चुके हैं। भारत में एशियाई चीतों को बसाना ज्यादा बेहतर रहता, लेकिन ईरान में इनकी बेहद कम संख्या और कमजोर जेनेटिक पूल के चलते इनकी बजाय अफ्रीकी चीतों को बसाने का प्रयोग किया जा रहा है।

हालांकि, वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. फैयाज ए खुदसर का कहना है कि भारत में चीतों के विलुप्त होने के कारणों का गहराई से अध्ययन किए जाने की जरूरत है। चीते एक खास किस्म के पर्यावास में रहना पसंद करते हैं। इसलिए नौरादेही अभ्यारण्य इसके लिए कितना तैयार, यह देखना सचमुच में महत्वपूर्ण है।

भारत में वन्यजीव विशेषज्ञों को खासतौर पर बाघों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बसाए जाने में सफलता हासिल हुई है। सरिस्का में एक समय मे बाघ एकदम समाप्त हो गए थे। लेकिन, बाद में बाहर से लाकर यहां पर बाघ बसाए गए और आज यहां पर बाघों की आबादी बढ़ रही है। पन्ना में भी यह प्रयोग सफल साबित हुआ है। हालांकि, अफ्रीकी देश से लाकर यहां पर चीते को बसाने के प्रयोग को कितनी सफलता मिलेगी यह अभी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन, अगर यह प्रयोग सफल होता है तो इस प्रजाति को बचाने में यह एक बड़ा कदम साबित होगा।

 

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