पहले से ही विलुप्त, कोबरा जैसे सांप की नई प्रजाति ‘न्यांगेंसिस’ की हुई खोज

जंगलों के परिदृश्य में हुए भारी बदलाव के बाद, जिम्बाब्वे के रिन्खाल को 1988 के बाद से जंगल में नहीं देखा गया है और इसके विलुप्त होने की आशंका है

By Dayanidhi

On: Wednesday 04 October 2023
 
जिम्बाब्वे के न्यांगा नेशनल पार्क में सांप की प्रजाति ‘हेमाचैटस न्यांगेंसिस’, फोटो साभार : पीएलओएस वन पत्रिका

दुनिया भर में, प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय पृथ्वी पर रहने वाले जानवरों के बारे में जानकारी का खजाना है। लेकिन अधिकांश महत्वपूर्ण जानकारी आनुवांशिक वैज्ञानिकों के लिए संभाल कर रख दी गई है क्योंकि फॉर्मेलिन, रसायन जो अक्सर नमूनों को संरक्षित करने के लिए उपयोग किया जाता है, डीएनए को नुकसान पहुंचाता है और अनुक्रमों को फिर से हासिल करना कठिन बना देता है।

हालांकि, डीएनए की तकनीकों में हालिया प्रगति का मतलब है कि जीव विज्ञानी पुराने संग्रहालय के नमूनों के आनुवंशिक कोड का अध्ययन कर सकते हैं, जिसमें अत्यंत दुर्लभ या हाल ही में विलुप्त प्रजातियां भी शामिल हैं

शोध के हवाले से, शोधकर्ता ने कहा, हमने जिम्बाब्वे के पूर्वी हाइलैंड्स के एक सांप का अध्ययन करने के लिए इस नई तकनीक का उपयोग किया, जिसे 1982 में मार दिया गया था और पता चला कि यह एक नई प्रजाति थी। यह शोध पीएलओएस वन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है

जिम्बाब्वे के पूर्वी हाइलैंड्स, मोजाम्बिक के साथ सीमा पर एक पर्वत श्रृंखला, सवाना और सूखे जंगल से घिरे ठंडे और नमी वाले आश्रय स्थल बनाते हैं। वे कई प्रजातियों का घर हैं जो कहीं और नहीं पाई जाती हैं।

यहां, सांपों की एक रहस्यमय आबादी ने पहली बार 1920 के आसपास वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया था। सेसिल रोड्स इनयांगा के मैदान में कोबरा जैसी रक्षात्मक हुड मुद्रा प्रदर्शित करने वाला एक असामान्य सांप देखा गया था।

इस सांप के शल्कों के बीच लाल त्वचा के साथ असामान्य निशान थे, जब यह अपना फन फैलता है तो लाल पृष्ठभूमि पर काले बिंदुओं का प्रभाव पैदा होता है। इलाके में पाए गए अन्य कोबरा में से कोई भी इस विवरण से मेल नहीं खाता है। 1950 के दशक में इस तरह के और भी सांपों की जानकारी मिली थी, लेकिन कोई नमूना एकत्र नहीं किया गया था।

अनोखी खोज

शोध के मुताबिक, इन दृश्यों से जुड़े रहस्य ने डोनाल्ड जी. ब्रॉडली की रुचि को बढ़ा दिया, जो अब दक्षिणी अफ्रीका के सबसे प्रतिष्ठित सरीसृप विज्ञानी माने जाते हैं। 1961 में, ब्रॉडली को कुछ कटे हुए सांपों के सिर दिए गए और उन्होंने रहस्यमय सांप की पहचान रिन्खाल्स (हेमाचैटस हेमाचैटस) के रूप में की, यह प्रजाति अन्यथा केवल दक्षिण अफ्रीका, इस्वातिनी या स्वाज़ीलैंड और लेसोथो में पाई जाती थी।

बाद के वर्षों में मुट्ठी भर नमूनों को देखा और मापा गया, लेकिन जंगलों के परिदृश्य में भारी बदलाव हुआ है। जिम्बाब्वे के रिन्खाल को 1988 के बाद से जंगल में नहीं देखा गया है और इसके विलुप्त होने की आशंका है।

शोधकर्ता ने बताया कि, यह आबादी अन्य, अधिक दक्षिणी आबादी से 700 किमी दूर रहती है, जिससे हमें संदेह हुआ कि यह एक अलग प्रजाति हो सकती है। लेकिन जिम्बाब्वे के नमूने के भीतर मौजूद आनुवंशिक सामग्री खराब हो गई थी, जिसका अर्थ है कि हम यह पुष्टि करने के लिए आवश्यक डीएनए अध्ययन नहीं कर सके कि, क्या यह अन्य रिंकल से अलग प्रजाति है।

नई तकनीक का उपयोग 

शोधकर्ता के मुताबिक, हालांकि, जीव-विज्ञानियों को प्राचीन जानवरों के अवशेषों का अध्ययन करने में मदद करने के लिए पिछले दस वर्षों में नवीनतम डीएनए निष्कर्षण और अनुक्रमण विधियां विकसित की गई हैं। हमने जिम्बाब्वे के रिन्खाल के नमूने की जांच के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल किया। अध्ययन से पता चला है कि वे लंबे समय से अलग-अलग आबादी से संबंधित हैं, जो दक्षिणी रिन्खाल आबादी से काफी अलग है।

अन्य रिन्खाल से उनके आनुवंशिक अंतर के आधार पर, हमारा अनुमान है कि जिम्बाब्वे में सांप 70 से 140 लाख वर्ष पहले अपने दक्षिणी रिश्तेदारों से अलग हो गए थे। सांप के शल्कों की गिनती से यह पहचानने में मदद मिल सकती है कि यह किस प्रजाति का है।

अन्य नमूनों के विश्लेषण से पता चला स्केल गणना में सूक्ष्म अंतर, जिम्बाब्वे रिन्खाल को एक नई प्रजाति, हेमाचैटस न्यांगेंसिस, न्यांगा रिन्खाल के रूप में वर्गीकृत करने के लिए पर्याप्त सबूत प्रदान करता है। इसका वैज्ञानिक नाम न्यांगेंसिस का लैटिन में "न्यांगा" है।

हेमाचैटस न्यांगेंसिस के नुकीले दांतों को जहर उगलने के लिए इनमें सुधार हुआ, हालांकि मनुष्यों के साथ दर्ज की गई कुछ बातचीत से इस व्यवहार की जानकारी नहीं मिली है। निकट से संबंधित वास्तविक कोबरा, जिनमें से कुछ जहर उगलने के लिए जाने जाते हैं, उन्हीं विशिष्ट नुकीले दांतों के साथ ऐसा करते हैं जो जहर को संकीर्ण छिद्रों के माध्यम से आगे की ओर धकेलने में मदद करते हैं, जिससे वो खतरा पैदा करने वाले जानवरों पर छिड़काव कर देते हैं।

आंखों में जहर जाने से भयंकर दर्द होता है, जो आंख को नुकसान पहुंचा सकता है और अगर इलाज न किया जाए तो अंधापन भी हो सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कोबरा जैसे सांपों के बड़े समूह के भीतर जहर उगलना तीन बार विकसित हुआ है, एक बार रिन्खाल में और दो बार दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में असली कोबरा में।

मनुष्य और सांप के विकास के बीच संबंध

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह रक्षा तंत्र हमारे पूर्वजों की प्रतिक्रिया में विकसित हुआ होगा। उपकरण का उपयोग करने वाले वानर जो सीधे चलते थे, सांपों के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर सकते थे और अफ्रीकी कोबरा में जहर उगलने का विकास मोटे तौर पर उस समय से मेल खाता है जब 70 लाख वर्ष पहले होमिनिन चिंपैंजी और बोनोबोस से अलग हो गए थे।

इसी तरह, माना जाता है कि एशियाई कोबरा में जहर उगलने का विकास लगभग 25 लाख वर्ष पहले हुआ था, जो उस समय के आसपास है जब विलुप्त मानव प्रजाति होमो इरेक्टस उन प्रजातियों के लिए खतरा बन गई होगी। न्यांगा रिन्खाल्स के इस अध्ययन से पता चलता है कि तीसरी बार सांपों में स्वतंत्र रूप से जहर उगलने का विकास सीधे चलने वाले होमिनिन की उत्पत्ति के साथ भी हुआ होगा।

शोध में कहा गया कि, यदि न्यांगा रिंखाल की एक जीवित आबादी पाई गई, तो ताजा डीएनए नमूने हमें रिंखाल की दो प्रजातियों के बीच विभाजन के समय को और अधिक सटीक रूप से निर्धारित करने में मदद करेंगे। तकनीकी प्रगति हमें प्राचीन पशु वंशावली के बारे में अविश्वसनीय जानकारी दे सकती है, लेकिन वे विलुप्त होने की भरपाई नहीं कर सकते। शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि, न्यांगा रिन्खाल की एक जीवित आबादी मिल जाएगी।

जहर उगलने और हमारे शुरुआती पूर्वजों के बीच संभावित संबंध से पता चलता है कि, हम पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं। हमारा अपना विकास अन्य जानवरों के विकास के साथ जुड़ा हुआ है। जब जानवर विलुप्त हो जाते हैं, तो हम सिर्फ एक प्रजाति ही नहीं खोते हैं, वे अपने साथ हमारे इतिहास का कुछ हिस्सा भी खो देते हैं।

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