शाकाहारी जीवों पर अधिक है विलुप्ति का खतरा, जानें क्यों

पिछले 500 वर्षों में कम से कम 368 कशेरुक प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं।

By Dayanidhi

On: Thursday 06 August 2020
 
Photo: Piqsels

 

पिछले 500 वर्षों में कम से कम 368 कशेरुक प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। मौजूदा कशेरुकियों के 18 फीसदी प्रजातियों को विलुप्त होने के खतरे के रूप में पहचाना गया है। कशेरुक ऐसे जानवर हैं जिनमें रीढ़ की हड्डी पाई जाती है। इन जानवरों में मछली, पक्षी, स्तनधारी, उभयचर और सरीसृप शामिल हैं।

10 लाख साल पहले, बड़े पैमाने पर बड़े शाकाहारियों के लुप्त होने से पृथ्वी के परिदृश्य में बदलाव आया, और इस तरह से जैव-रासायनिक चक्र में बदलाव हुआ जिससे पृथ्वी की जलवायु थोड़ा ठंडी हो गई थी।

अमेरिका की यूटा स्टेट यूनिवर्सिटी के वाटरशेड साइंसेज के सहायक प्रोफेसर, त्रिशा एटवुड द्वारा किए गए एक नए  अध्ययन से पता चलता है कि आधुनिक समय के मेगाहर्बिवोर्स (1000 किलोग्राम से अधिक वजन वाले, शाकाहारी जानवर) जल्द ही अपने प्राचीन पूर्वजों के समान गायब हो सकते हैं।

24,500 से अधिक स्तनधारियों, पक्षियों और सरीसृपों के आहार के आंकड़ों को लेकर एटवुड और उनकी टीम इस सवाल का जवाब ढूढ़ने में लगी हैं कि - क्या शाकाहारी, मांसाहारी या सर्वाहारी, सबसे अधिक खतरे में हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं? अध्ययनकर्ताओं के निष्कर्ष, दो दशक लंबी धारणा को चुनौती देने वाली हैं, जिसमें कहा गया था कि मांस खाने वाले शिकारी पृथ्वी के सबसे अधिक विलुप्त होने वाले समूह में थे। यह अध्ययन साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुआ है।

परिणामों से पता चलता है कि दुनिया के चौथाई से अधिक शाकाहारी जीव विलुप्त होने के खतरे में हैं। वर्तमान समय में घास खाने वाली प्रजातियां सबसे अधिक खतरे में है। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि शाकाहारी जीवों पर यह हमला कोई नई बात नहीं है। मानव गतिविधियों ने प्लीस्टोसिन काल (11,000-50,000 साल पहले) के बाद से हिंसक जानवरों की तुलना में शाकाहारी जीवों को अधिक नुकसान पहुंचाया है।

एटवुड की टीम ने गलत धारणाओं को चुनौती देने के लिए साक्ष्य-आधारित विज्ञान का उपयोग करने की बात कही है। समाज को भविष्य में विलुप्त होने वाले जीवों के बारे में सही जानकारी देना आवश्यक है। क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र में हर प्रजाति की भूमिका अलग है, वे क्या खाते है, यह समझते हुए कि क्या शिकारियों, शाकाहारियों, या सर्वभक्षी के विलुप्त होने का सबसे अधिक खतरा है। वैज्ञानिकों और समाज को यह समझने में मदद करता है कि इन प्रजातियों को खोने के संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं।

पहले से ही भूमि के उपयोग में परिवर्तन से शाकाहारियों की संख्या में गिरावट रही है। भूमि के उपयोग में परिवर्तन, शिकार से 10 लाख साल पहले ही पृथ्वी पर यह काम शुरू हो चुका हैं। 

यद्यपि अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि शाकाहारी जीव सबसे अधिक खतरे वाले समूह में हैं, लेकिन शिकारी भी सुरक्षित नहीं हैं। अध्ययन में उन जीवों की भी पहचान की गई है, जो मृत जानवरों (जैसे, गिद्ध) के अवशेष खाते हैं और वे जानवर जो मुख्य रूप से समुद्री पक्षी- जो मछली खाते हैं, इन पर विलुप्त होने का खतरा बढ़ गया है।

यूटा स्टेट यूनिवर्सिटी में वाटरशेड साइंसेज के सहायक प्रोफेसर और सह-अध्ययनकर्ता एड्ड हैमिल कहते हैं हमारे परिणाम हमें उन मांसाहारियों में विशेष आहार की पहचान करने में सक्षम बनाते हैं जो विलुप्त होने के अधिक खतरे से जुड़े हैं। इन प्रजातियों के आवासों की भी पहचान करते हैं। हैमिल ने कहा ऐसा प्रतीत होता है कि दुनिया भर के समुद्री पक्षी विलुप्त होने के अत्यधिक खतरे में हैं।

संरक्षण कार्यों को बेहतर ढंग से करने के लिए, शोधकर्ता अब यह समझने में लगे हैं कि शाकाहारी, मृत जानवरों के अवशेष खाने वालों और मछली का शिकार करने वाले जानवर क्या अन्य जानवरों की तुलना में विलुप्त होने के लिए अतिसंवेदनशील हैं।

एटवुड कहते हैं विलुप्त होने के एक पैटर्न का दस्तावेजीकरण केवल प्रजातियों के नुकसान को रोकने की दिशा में पहला कदम है। हमारा अगला कदम इस पैटर्न की जटिलताओं को समझना है, तभी हमारे पास भविष्य में होने वाली इन विलुप्तियों को रोकने का एक मौका होगा।

 

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