पूरे मध्य प्रदेश में फैला कृषि छात्रों का आंदोलन

निजी कालेजों के आने के बाद आने वाले दिनों में रोजगार का संकट बढ़ने से सरकारी कृषि विश्वविद्यालय के छात्र चिंतित हैं

By Manish Chandra Mishra

On: Tuesday 02 July 2019
 
मध्यप्रदेश के 14 कृषि कॉलेज के विद्यार्थी आंदोलन और अनशन पर बैठे हैं। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा

सरकारी कृषि कॉलेज में पढ़ रहे विद्यार्थी निजीकरण और निजी कॉलेज को वजह से शिक्षा की गुणवत्ता कम होने का विरोध कर रहे हैं। वे मौखिक आश्वासन के बावजूद आंदोलन जारी रखकर सरकार से ठोस पहल को मांग कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश के 14 कृषि महाविद्यालय का काम पिछले तीन सप्ताह से ठप है। इसकी वजह है यहां के विद्यार्थियों का निजीकरण के विरोध में आंदोलन। कृषि के छात्र प्रदेश में निजी महाविद्यालय खुलने के विरोध में हैं। आंदोलन को जबलपुर से नेतृत्व करने वाले छात्र गोपी अंजना का कहना है कि प्रदेश में कुकुरमुत्तों की तरह निजी कॉलेज खुल गए हैं। इन कॉलेज में पढ़ाई को गुणवत्ता काफी खराब है और इसकी वजह यहां सुविधाओं की कमी है।

राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद से मान्यता न होने की वजह से ये महाविद्यालय बिना किसी जरूरी सुविधा जैसे एक निश्चित जमीन और प्रैक्टिकल की सुविधा के ही पढ़ाई करवा रही है। इस कॉलेज में बिना किसी पात्रता परीक्षा के ही प्रवेश मिल जाता है जिससे कृषि शिक्षा की गुणवत्ता खराब होती जा रही है। 

ग्वालियर के कृषि महाविद्यालय से शुरू हुआ यह आंदोलन देखते देखते प्रदेश के सभी 14 कृषि महाविद्यालय तक फैल गया है। इस कॉलेज से जुड़े सैकड़ों विद्यार्थी क्रमिक अनशन, भूख हड़ताल और सड़कों पर नारेबाजी कर अपना आंदोलन चला रहे हैं। हालांकि, कृषि मंत्री के अनुरोध के बाद छात्रों ने आंदोलन को शांतिपूर्वक रखा। गोपी अंजना के मुताबिक सरकार का रुख अब पहले की तुलना में काफी सकारात्मक हैं।

उन्होंने बताया कि सोमवार को भोपाल में कृषि विश्विद्यालय, महाविद्यालय और छात्रों के प्रतिनिधियों से विभाग स्तर पर अधिकारियों की बैठक हुई। इस बैठक में आंदोलनकारियों को आंदोलन छोड़ने का आग्रह किया गया। गोपी ने बताया कि विभाग के अधिकारी मानते हैं कि निजी महाविद्यालय में निगरानी और नियमों के अभाव में पढ़ाई की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ सकता है। इसके लिए सरकार ठोस कदम उठाएगी।

हालांकि आश्वासन के बाद भी विद्यार्थी अपना आंदोलन जारी रखेंगे। वे सरकार से ठोस कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। इस आंदोलन पर सरकार का पक्ष जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने प्रदेश के कृषि मंत्री सचिन यादव से संपर्क करने की कोशिश की पर वे इस मुद्दे पर बात करने के लिए उपलब्ध नहीं थे।

छात्रों का मानना है कि इन कॉलेज से पढ़ने के बाद विद्यार्थी विभिन्न कंपनियों और सरकारी संस्थाओं में कृषि के विशेषज्ञ के तौर ओर काम करने हैं। अगर उन्होंने पढ़ाई के दौरान प्रैक्टिकल काम नहीं किया होगा तो किसानों को भ्रमित ही करेंगे और इसका नुकसान खेती पर पड़ेगा। 

पहले निजी कंपनी अच्छे पैकेज पर छात्रों को नौकरी पर ले जाती थी लेकिन निजी कॉलेज आने के बाद कम गुणवत्ता वाले ग्रेजुएट कम सैलरी में भी काम करने को तैयार हो जाते हैं। विद्यार्थियों की मांग है कि निजी कॉलेज को भी कड़े मापदंडों के अनुरूप मान्यता लेने की व्यवस्था की जाए, ताकि इस क्षेत्र की गुणवत्ता बरकरार रहा सके। साथ ही, कॉलेज की व्यवस्था कर अनुरूप ही विद्यार्थियों को संख्या निश्चित की जाए जिससे एक साल में निश्चित संख्या में छात्र उतीर्ण होंगे और उन्हें रोजगार मिलने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी।

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