फॉल आर्मीवर्म के अनुकूल है भारतीय जलवायु

विशेषज्ञों का कहना है कि फॉल आर्मीवर्म नाम के विदेशी कीड़े के लिए भारतीय जलवायु बेहद उपयुक्त है, इसलिए उसका प्रकोप बढ़ता जा रहा है 

By Anil Ashwani Sharma

On: Friday 10 May 2019
 
Photo : Jinka Nagaraju

2018 में भारत आए विदेशी कीड़े फॉल आर्मीवर्म का असर बढ़ता जा रहा है। अभी तक सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। इस कीड़े के बारे में विस्तृत जानकारी लेने के लिए डाउन टू अर्थ ने दो विशेषज्ञों से बातचीत की। पेश है बातचीत के अंश 

“संभव है फॉल आर्मीवर्म पर काबू पाना”

नेशनल ब्यूरो ऑफ एग्रीकल्चरल इंसेक्ट रिसोर्सेज में कीटवैज्ञानिक, भारत में एफएडब्ल्यू संक्रमण की पहचान करने वाले पहले विशेषज्ञ  ए.एन. शैलेश कहते हैं कि कई किसानों द्वारा एक कीट के हमले की शिकायत किए जाने के बाद हमने कर्नाटक के चिकबलपुर जिले का दौरा किया। प्रारंभ में हमें लगा कि खेतों पर ट्रू आर्मीवर्म या माइथिम्ना कीट द्वारा हमला है। हमने उन खेतों से नमूने एकत्र किए जो गंभीर रूप से प्रभावित थे। जांच के बाद हमने पाया कि संक्रमण के लिए फॉल आर्मीवर्म जिम्मेदार थे। ट्रू आर्मीवर्म के विपरीत, एफएडब्ल्यू के लार्वा के सिर पर अंग्रेजी वर्णमाला के उलटे वाई (Y) का निशान होता है और 4 काले धब्बे होते हैं जो इसके शरीर के अंत की ओर एक वर्ग बनाते हैं। एक वयस्क एफएडब्ल्यू हलके पीले या पुआल के रंग का होता है और एफएडब्ल्यू का रंग थोड़ा गहरा।

यह ट्रू आर्मीवर्म से अधिक खतरनाक भी है। पौधा एक बार एफएडब्ल्यू की चपेट में आ जाए तो इसे बचाया नहीं जा सकता है, क्योंकि पौधे के पूरे जीवनचक्र के दौरान यह एफएडब्ल्यू कई पीढ़ियों को जन्म दे चुका होता है। यह एफएडब्ल्यू पौधों के कई हिस्सों पर हमला करता है। लार्वा पत्तियों की सतह को खुरच कर उन्हें पपड़ीनुमा बना देता है। इसके अलावा यह पौधों के अंकुरों को भी चट कर जाता है, जिसके फलस्वरूप नए पत्ते भी बड़े-बड़े छेदों के साथ निकलते हैं।

एफएडब्ल्यू के प्रसार के लिए भारत का  तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियां आदर्श हैं। यहां तक कि तापमान के 15 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होने पर एक मादा एफएडब्ल्यू 1,500 तक अंडे दे सकती है। ये कीट लंबी दूरी तक उड़ भी सकते हैं जो इनके प्रसार में सहायक होता है।

हम वर्तमान में आणविक विश्लेषण करने के लिए नमूने एकत्र कर रहे हैं जो हमें यह पता लगाने में मदद करेगा कि एफएडब्ल्यू ने देश में कैसे प्रवेश किया है। इस विश्लेषण से कीट की सही प्रजाति का भी पता लगाया जा सकेगा। प्रारंभिक मूल्यांकन में कम से कम दो महीने लगेंगे और पूर्ण विश्लेषण में एक साल लगेगा। चावल खाने वाले एफएडब्ल्यू की प्रजाति अब तक भारत में नहीं पाई गई है।

हम किसानों को गंभीर संक्रमण वाले स्थानों में इमामेक्टिन बेंजोएट (0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी) का उपयोग करने की सलाह दे रहे हैं। नीम के योगों का उपयोग हल्के संक्रमण वाले स्थानों में किया जा सकता है। भारत समय रहते कार्रवाई करें तो इस कीट पर काबू पाया जा सकता है क्योंकि भारत में यह संक्रमण अफ्रीका की तरह के गंभीर स्तर तक नहीं पहुंचा है।

 

“पूर्वी भारत पर संक्रमण का अधिक खतरा”

गैर-लाभकारी संस्था एग्रीकल्चर एंड बायोसाइंस इंटरनेशनल में प्लांटवाइज (एशिया) की समन्वयक मालविका चौधरी का कहना है कि  फॉल ऑर्मीवर्म का पहली मर्तबा जुलाई, 2018 में कर्नाटक में देखा गया था। तब से एफएडब्ल्यू अन्य पड़ोसी राज्यों तक फैल गया है। अब पश्चिम बंगाल एवं बिहार से भी खबरें आ रही हैं। प्रारंभिक नुकसान व्यापक रहा है क्योंकि एफएडब्ल्यू की भूख अत्यधिक तेज है। लेकिन हमने त्वरित कार्रवाई की। उदाहरण के लिए, कर्नाटक सरकार ने इसके खिलाफ आपातकालीन कई सिफारिशें जारी की हैं। एफएडब्ल्यू के विकास के कुल 6चरण हैं और उनमें से हर एक पौधे के अलग भाग पर कब्जा करता है। अंडो से लार्वे पुराने पत्तों में निकलते हैं और फिर जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, वे पेड़ के ऊपरी हिस्सों की ओर रुख करते हैं। वयस्क लार्वा मक्के के फल को खाकर जमीन पर गिर जाता है और 10 दिनों के बाद वयस्क बनकर निकलता है। लेकिन त्वरित कदम बड़े नुकसान को टाल सकते हैं, भले ही संक्रमण कितना ही तीव्र क्यों न हो।

वर्तमान में कर्नाटक और तमिलनाडु में संक्रमण अपने चरम पर है लेकिन देश का पूर्वी हिस्सा एफएडब्ल्यू के हमले से सर्वाधिक असुरक्षित है क्योंकि वहां पर्यावरण अनुकूल है और कई मेजबान प्रजातियां भी हैं। गर्म तापमान से कीट के प्रजनन दर में वृद्धि होती है।

इसका मतलब है कि एफएडब्ल्यू का जीवनचक्र कम समय में पूरा हो जाएगा, जिससे प्रति फसल अधिक पीढ़ियां पैदा होंगी। इससे संक्रमण और तेज होगा। यहां तक कि वैश्विक तापमान में 10 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी से भी ऊष्म क्षेत्रों की संख्या तो बढ़ेगी ही, साथ ही साथ आर्द्रता का स्तर  भी बढ़ेगा जो एफएडब्ल्यू के पनपने में सहायक होगा। जलवायु परिवर्तन के कारण बेमौसम बारिश और हवा इस कीट को फायदा पहुंचाएगा।

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