राशन में मिला चावल बेच महंगा गेहूं खरीद रहे हैं लोग

किसानों ने गेहूं की बुआई की, लेकिन फसल खराब हो गई। सोचा था, राशन में गेहूं मिलेगा, लेकिन जब राशन में चावल मिला तो अब वे गेहूं खरीदने को मजबूर है

By Aman Gupta

On: Thursday 18 August 2022
 
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के सरीला क्षेत्र में रहने वाले पीर मुहम्मद चार बीघे के किसान हैं। फोटो: अमन गुप्ता

"मैंने अपने सात बीघा खेतों में गेहूं की फसल लगाई थी। लेकिन पहले पानी की कमी के कारण फसल खराब हो गई, थोड़ी बहुत जो बची थी वह समय से पहले हुई गर्मी ने खराब कर दी। कुल 20 क्विंटल गेहूं पैदा हुआ था, परिवार पालने के लिए काफी गेहूं बेच दिया। सोचा था कि राशन तो सरकार से मिल ही जाएगा, लेकिन जब सरकार ने चावल दिए तो खुद के खाने के लिए गेहूं खरीदना पड़ा और अब वही गेहूं महंगा मिल रहा है।"

उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के ऐंचाना गांव के सात बीघा जोत के किसान मदन की यह कहानी आसपास के कई किसानों से मिलती झुलती है। जैसे कि उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के सरीला क्षेत्र में रहने वाले पीर मुहम्मद कहते हैं कि वह चार बीघे के किसान हैं।

वह कहते हैं कि "सोचा था कि मटर-मसूर की बुआई करके कुछ पैसा कमा लेंगे, जो परिवार के काम आएगा, इसलिए रबी के सीजन में गेहूं की बुवाई नहीं की, क्योंकि गेहूं तो सरकारी राशन में मिल जाता है, लेकिन इस बार सरकार ने गेहूं की बजाय चावल दे दिया। चावल खाने की आदत नहीं है, इसलिए जब गेहूं खरीदने बाजार गया तो पता चला कि इस बार गेहूं का भाव बहुत बढ़ गया है।"

दरअसल रबी सीजन में भीषण गर्मी की वजह से गेहूं की उपज में कमी का असर अब दिखने लगा है। बाजार में गेहूं की कीमत बढ़ती जा रही है। इससे आम लोग तो प्रभावित हो ही रहे हैं, बल्कि वे लोग भी प्रभावित हो रहे हैं, जिन्हें सरकार की ओर से तय मात्रा में राशन का गेहूं मिलता है, क्योंकि सरकार ने उन्हें गेहूं की बजाय चावल दिया, लेकिन इन लोगों को चावल खाने की आदत नहीं है। 

पल्लेदारी करके जीवन यापन करके कर रहे हमीरपुर जिले की राठ तहसील के भागीरथ कुशवाहा कहते हैं, ‘हम हर रोज काम कारते हैं, जिससे घर का खर्च निकल सके। जिस दिन काम नहीं करते उस दिन शाम को सब्जी खरीदने के लिए पैसा नहीं होता है। हम लोग साल भर का राशन एक साथ खरीदने के लिए पैसा कहां से लाएंगे।

कोरोना के कारण दो साल से राशन कार्ड पर इतना गेहूं और चावल मिल रहा था कि उससे परिवार की जरूरत पूरी हो जाती थी। जो कम पड़ता था वो राशन कार्ड पर मिले चावल को बेचकर पूरी हो जाती थीं।‘ चावल क्यों बेच देते थे, इस सवाल पर भीगीरथ कहते हैं कि हम लोग रोटी खाने वाले लोग हैं। दिन के खाने में अगर रोटी न मिले तो लगता है कि खाना नहीं खाया है।

बुंदेलखंड और आसपास के क्षेत्र में इस साल गेंहू की फसल भी कम हुई थी, ऊपर से हीटवेव के कारण इस साल गेंहू उत्पादन कम हुआ है।

व्यापारी पहले से ही अंदाजा लगा रहे थे कि, इस साल गेहूं के महंगा रहेगा। तीन महीनों तक बाजार में कम ही सही लेकिन गेंहू बिकने आ रहा था, जिससे दामों में मामुली बढ़त रही, उसके बाद भी ये दो हज़ार रुपए से ऊपर नहीं गया। लेकिन अब जबकि बाजार में आवक कम हुई है तो इसका सीधा सा असर दाम बढ़ोत्तरी के तौर पर दिख रहा है।

गल्ला व्यापारी व्यापारी रामेश्वर राजपूत बताते हैं, 'बडे़ व्यापारी आसपास के पचास सौ किलोमीटर दूर सीधे किसानों के घर से गेंहू खरीद ला रहे हैं। इसके लिए वे बाजार भाव से पचास-सौ रूपये क्विंटल ज्यादा तक दे रहे हैं।' वे कहते हैं कि आगे आने वाले दिनों में गेंहू की कीमतें और बढ़ेंगी, अगर जल्दी ही कुछ नहीं किया गया तो तो 2700-2800 रुपए तक जाएंगी। 

 

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